अमरूद प्रजनन की नई तकनीक

Submitted by editorial on Sat, 09/01/2018 - 13:33
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विज्ञान प्रगति, अगस्त, 2018

अमरूदअमरूद अमरूद पोषकता से भरपूर होने के कारण देश के साथ-साथ बाहर के देशों में भी लोकप्रिय है। जब से जैव प्रौद्योगिकी की लहर आई है इस फल में भी जैविक और अजैविक प्रतिबलों के विरुद्ध प्रतिरोध की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाये जा रहे हैं ताकि उच्च गुणवत्ता वाले साथ ही अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों को तैयार किया जा सके।

गरीबों का सेब के रूप में पसन्दीदा अमरूद भारत का एक लोकप्रिय फल है। अमरूद उष्ण-उपोष्ण कटिबन्धीय देशों का एक महत्त्वपूर्ण फल फसल है। अमरूद अक्सर कटिबन्धों के सेब के रूप में जाना जाता है। यह मिर्टेसी परिवार की सबसे मूल्यवान उगाई जाने वाली प्रजाति के रूप में जानी जाती है। यह मूलतः उष्ण कटिबन्धीय अमरीका से है और वर्तमान में कई उष्ण कटिबन्धीय देशों में वितरित है।

यह व्यावसायिक रूप से भारत, चीन, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, फ्लोरिडा, हवाई, मिस्र, यमन, ब्राजील, मैक्सिको, कोलम्बिया, वेस्टइंडीज, क्यूबा, वेनेजुएला, न्यूजीलैंड, फिलीपींस, वियतनाम और थाईलैंड की मुख्य फसल है और इसकी वजह साल भर उपलब्धता, उच्च पोषण स्तर, औषधीय मूल्य, वहन करने योग्य कीमत, परिवहन, हैंडलिंग आदि है। यह भारत के लगभग सभी राज्यों में उगाया जाता है।

भारतीय अमरूद की सभी किस्में एक ही प्रजाति से है जो की गुआजावा (Guajava) है। हालांकि, सीडियम कैटिलयेनम, सीडियम एराका, सीडियम चाइनेन्सिस, सीडियम प्यूमिलम, सीडियम मोले आदि जातियाँ हैं, कई सीडियम प्रजातियाँ विश्व स्तर पर और भारत में विभिन्न अनुसन्धान स्टेशन पर उपलब्ध हैं। भारत में 160 से अधिक अमरूद की किस्में हैं जिनकी राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय बाजार में माँग है। ब्राजील, मैक्सिको, थाइलैंड, पेरू और फिलीपींस प्रमुख निर्यातक देशों के रूप में जाने जाते हैं।

अमरूद में छिपे गुण

अमरूद अक्सर अमीर फल के रूप में जाना जाता है क्योंकि इसके बीज ओमेगा 3 और ओमेगा 6 संतृप्त वसा अम्लों से भरपूर हैं। विशेष रूप से फल में रेशे, विटामिन ए और सी पाया जाता है। यह पोटैशियम, मैग्नीशियम आवश्यक पोषक तत्वों से अभिग्रहीत है साथ ही कैरोटीन, पॉलीफीनोल, एंटीअॉक्सिडेंट का भी अच्छा स्रोत है। अमरूद की तीन फसलें आती हैं परन्तु सर्दियों की फसल सबसे अच्छी मानी जाती है, लेकिन बहुत से लोग इसे ठंडी तासीर समझ कर इसका सेवन नहीं करते हैं जबकि यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है। नियमित रूप से इसका सेवन करने से सामान्य मौसमी बीमारियों से बचा जा सकता है। यह विटामिन सी का अच्छा स्रोत है जो कि सफेद रक्त कणों को तेजी से संक्रमण से लड़ने में मदद करता है। इस तरह हमारी प्रतिरोधक क्षमता में कई गुना वृद्धि हो जाती है।

इसमें फाइबर का भी प्रचुर भंडार है। यह कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करता है साथ ही दिल के रोगों से बचाव करता है। विटामिन ए कीटाणु को रोककर शरीर में प्रवेश करने से पहले ही खत्म कर देता है इसमें उपस्थित लायकोपीन सूरज की हानिकारक किरणों से बचाता है तथा त्वचा कैंसर से भी सुरक्षा करता है। इसे इसकी प्राकृतिक अवस्था में खाना सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है सुबह के समय इसके रस को पीना भी काफी लाभकारी होता है।

बहुत सारे आर्थिक और स्वास्थ्य लाभ होते हुए भी कई ऐसे अवरोध हैं जो अमरूद के विकास में बाधा पैदा करते हैं। यह बहुत कम देखभाल में भी आसानी से लग जाता है परन्तु बहुत सी बीमारियों से प्रभावित होता है जिनमें से कवक का प्रमुख है। अतः इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाने जरूरी है।

अमरूद में संकरीकरण एवं संकरों के मूल्यांकन का मुख्य उद्देश्य पौधों और फल विशेषताओं दोनों में सुधार लाना है। शोधकर्ता मुख्यतया एक समान आकार वाले अधिक उपज देने वाले, उच्च गुणवत्ता वाली बौनी किस्मों के साथ आकर्षक त्वचा, कम और नरम बीज प्रतिरोधी किस्मों को चयनित और विकसित करने में लगे हैं। परम्परागत प्रजनन से एक सीमित हद तक सफलता मिली है और इस दिशा में जैव प्रौद्योगिकी एक नींव का पत्थर साबित हो सकती है। आणविक प्रजनन की सफलता काफी हद तक उपलब्ध जनन द्रव्य एवं जीनोमिक संसाधनों पर निर्भर करती है। अमरूद में जीनोमिक संसाधन हालांकि दुर्लभ हैं परन्तु इस दिशा में निरन्तर प्रयास जारी है।

अमरूद के विकास हेतु परम्परागत तकनीक

चयनित प्रजनन में अमरूद की परम्परागत फसल का उपयोग होता है। फलों की अच्छी उपज और गुणवत्ता के लिये इसे प्रयोग में ला सकते हैं। लखनऊ-49, इलाहाबाद सुर्ख, पलुमा, अर्का मिरदुला, पन्त प्रभात आदि इसी तरह से तैयार की गई हैं।

अमरूद की संकर किस्मों को हाथ परागण के माध्यम से विकसित करने के लिये कृत्रिम चयन और आनुवंशिक विविधता को व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है। नियंत्रित कृत्रिम परागण के माध्यम से जनन द्रव्य संरक्षण और विभिन्न अमरूद सुधार कार्यक्रम न केवल भारत में है अपितु अन्य देश जैसे- क्यूबा, कोलम्बिया, वेनेजुएला, अमरीका, मलेशिया, नाइजीरिया आदि में भी बड़े स्तर पर प्रयासरत हैं।

अमरूद सुधार कार्य से सफेद जैम, कोहिर सफेदा और भारत में अर्का अमूल्य जैसी संकर किस्में विकसित हुई हैं। सीडियम मोले और सीडियम गुआजावा के बीच इंटर विशिष्ट संकरण से ऐसे संकर उत्पन्न हुए हैं जो विल्ट के लिये प्रतिरोधी होने के साथ-साथ संगत कलम का भी काम कर रहे हैं। अमरूद की द्विगुणित वाणिज्यिक किस्मों से गुणवत्ता फल तैयार हुए हैं लेकिन कठोर बीजों के कारण पूरे विश्व में अभी भी इसके अभिग्रहण में समस्या है। अतः इस दिशा में शोध हेतु महत्त्वपूर्ण कदम उठाने होंगे।

अमरूद सुधार के लिये आणविक दृष्टिकोण

अमरूद में परम्परागत तरीके से प्रजनन एक दीर्घकालिक और बोझिल प्रक्रिया है। मोर्फो एग्रोनॉमिक और डीएनए आणविक मार्कर के संयोजन से अमरूद जनन द्रव्य विशेषताएँ, किस्मों के बीच विविधता स्तर और पितृत्व सम्बन्ध का अनुमान लगाने, संरक्षण और प्रजनन क्षमता के साथ जीनोटाइप सुधार की सिफारिश भी की जा सकती है। क्लोनल पहचान पहले मॉर्फ लक्षणों (बाहरी लक्षणों) के आधार पर ही की जाती थी लेकिन यह उतना विश्वसनीय तरीका नहीं है। आणविक मार्कर जीनोमिक्स सर्वेक्षण के लिये मुख्य उपकरण की तरह काम कर रहे हैं।

आणविक चिन्हक और घने आणविक आनुवंशिक नक्शे की उपलब्धता से मार्कर चयन सम्भव हो गया है। मार्कर की मदद से होने वाले चयन में डी.एन.ए. मार्कर प्रमुख हैं। हर मार्कर की अपनी कमियाँ और लाभ हैं।

पिछले कुछ दशकों में बहुत से मार्कर विकसित हुए हैं जिनमें से आर.ए.पी.डी., आई.आई.एस.एस.आर, एस.एस.आर., वी.एन.टी.आर., ए.एफ.एल.पी., आर.एल.एफ.पी. हैं जो आनुवंशिक विविधता को जानने, किस्मों के चयन एवं आनुवंशिक नक्शे बनाने में महत्त्वपूर्ण हैं। आजकल एस.एम.पी. का बहुत प्रचलन है क्योंकि यह अकेले न्यूक्लियोटाइड की पहचान भी कर सकता है।

आणविक मार्कर आनुवंशिक परिवर्तन, पहचान, प्रजनन और उत्पादन आबादी में सम्बन्धों के प्रबन्धन से सम्बन्धित सवालों के जवाब देने के लिये इस्तेमाल किए जाते हैं। यह पौधों की वृद्धि के दौरान किसी भी समय पर और किसी भी ऊतक पर इस्तेमाल किए जा सकते हैं।

अमरूद में जीनोमिक उपक्रम

मिर्टेसी परिवार की प्रजातियाँ जीनोमिक उपक्रमों के लिये मजबूत उम्मीदवार हैं जो स्थितीय क्लोनिंग के लिये अच्छा स्रोत हैं। यूकेलिप्टस के लिये एक सन्दर्भ जीनोम अनुक्रम की आगामी उपलब्धता तथा तेजी से शक्तिशाली कम लागत और उच्च अनुक्रमण प्रौद्योगिकी से मिर्टेसी में अन्य वंशों के भी पूरे जीनोम की जानकारी तुलनात्मक अध्ययन से प्राप्त की जा सकती है।

दूसरी पीढ़ी के अनुक्रमण (आर.एन., और चिप अनुक्रमण, इलूमिना, सॉलिड, रॉश 454 आदि) और हाल ही में तीसरी पीढ़ी के अनुक्रमण प्रौद्योगिकी जैसे उन्नत स्वचालित जीनोम अनुक्रमण प्रौद्योगिकी के उपयोग के कुछ ही घंटों में समवर्ती अनुक्रम हजारों या लाखों की संख्या में प्राप्त किए जा सकते हैं। जैव प्रौद्योगिकी सूचना के लिये राष्ट्रीय केन्द्र (एन.सी.बी.आई.) दुनिया का सबसे बड़ा डेटाबेस है जिसमें जीनोमिक और प्रोटियोमिक अनुक्रम से सम्बन्धित सभी जानकारी है। कार्यात्मक जीनोमिक्स दृष्टिकोण के माध्यम से महत्त्वपूर्ण जीनों की पहचान की जा सकती है जो काफी उपयोगी है।

भावी सम्भावनाएँ

अमरूद फसल पारम्परिक रूप से ग्राफ्टिंग काटने, स्टूलिंग और गूटी विधि से लगाया जाता है जिसकी अपनी सीमाएँ हैं। पारम्परिक प्रजनन से अमरूद में तृतीयक उत्पादन में कई कठिनाइयाँ आती हैं। इस दिशा में ऊतक संवर्धन और जैव प्रौद्योगिकी एक मील का पत्थर साबित हो सकती है। अभी तक शूट टिप संवर्धन में इस दिशा में सफलता मिली है। ऐसे पौधों में कायिक प्रतिरूप भिन्नता मिलती है जो विल्ट प्रतिरोधी पौधे विकसित करने के काम आ सकती है। साथ ही बहुत से जैविक और अजैविक प्रतिरोधी पौधों का भी चयन किया जा सकता है। साथ ही ऊतक संवर्धन से बनाये पौधे एक समान होते हैं। परागकण को भी अगुणित संवर्धन के लिये उपयोग में लाया जाता है। अतः सूक्ष्म प्रवर्धन से अमरूद के एक जैसे बहुत सारे पौधे तैयार किए जा सकते हैं जिनका आनुवंशिक संघटन एक जैसा होता है और उपयोगी गुणों से युक्त पौधे मिल जाते हैं।

जेनेटिक मैपिंग

जीन अनुक्रमण की आधुनिक तकनीकों जैसे माइक्रो एरे द्वारा एक जीव की कोशिका में जीन और प्रोटीन की अभिव्यक्ति समझी जा सकती है। इस तरह से फलों में भी जेनेटिक मैपिंग की जा सकती है जिससे उपयोगी जीनों का पता लगाया जा सकता है जो मात्रात्मक गुणों को निर्धारित करते हैं। जीनोटिपिकली गुणों का पता लगाना ज्यादा अच्छा है क्योंकि फलों में बाहरी तौर पर पता लगाने के लिये फल आने तक इन्तजार करना पड़ता है साथ ही जमीन की भी ज्यादा जरूरत पड़ती है जिससे लागत अधिक आती है।

अमरूद में जेनेटिक परिवर्तन के अध्ययन

जेनेटिक इंजीनियरिंग प्रजनन की अवधि को छोटा करने में महत्त्वपूर्ण विकल्प के तौर पर सामने आया है। जेनेटिक परिवर्तन कोशिकीय स्तर पर पौधों की आनुवंशिक फेरबदल के लिये अवसर उपलब्ध कराता है। यह एकल बागवानी लक्षण को बिना दूसरे गुणों को बदले परिवर्तित कर सकता है। इस क्रिया हेतु एक अच्छे एक्स प्लांट की जरूरत होती है। अमरूद में ऊतक संवर्धन अध्ययन परिवर्तन के अध्ययन के लिये एक अनिवार्य पूरक हैं। अमरूद में एच.पी.एल. जीन के लिये पौधा तैयार किया गया है। भविष्य में इस तकनीक द्वारा और भी पराजीनी पौधे बनाने की दिशा में कार्य जारी है।

अमरूद पोषकता से भरपूर होने के कारण देश के साथ-साथ बाहर के देशों में भी लोकप्रिय है। जब से जैव प्रौद्योगिकी की लहर आई है इस फल में भी जैविक और अजैविक प्रतिबलों के विरुद्ध प्रतिरोध की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाये जा रहे हैं ताकि उच्च गुणवत्ता वाले साथ ही अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों को तैयार किया जा सके।

आनुवंशिक सुधार में तेजी लाने के लिये नये तरीकों का पता लगाना तथा साथ ही ऊतक संवर्धन और बेहतर अमरूद की खेती सूक्ष्म प्रवर्धन द्वारा करना भी जरूरी है। उभरती जैव तकनीकी से शोधकर्ताओं द्वारा परखनली प्रवर्धन द्वारा अमरूद के अंकुर पौधों का तेजी से गुणन किया जाता है। जैव प्रोद्योगिकी तकनीक का उपयोग अमरूद में प्रगति के नये आयाम खोलता है।

सुश्री निमिषा शर्मा एवं श्री संजय कुमार सिंह फल और बागवानी सम्भाग
भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान नई दिल्ली 110012

सुश्री मीनाक्षी मलिक
राष्ट्रीय समेकित नाशीजीन प्रबंधन संस्थान नई दिल्ली 110012


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