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तारीख : 14 अप्रैल - बाबा साहब अम्बेडकर की 125वीं जन्मतिथि;
स्थान : परम्परागत तरीकों से जल संकट के समाधान की पैरोकारी के लिये विश्व विख्यात जलपुरुष राजेन्द्र सिंह की अध्यक्षता वाले संगठन तरुण भारत संघ का गाँव भीकमपुरा स्थित तरुण आश्रम;
मौका : 130 संगठनों के जमावड़े का अन्तिम दिन; जारी हुई एक अपील।
केन्द्रीय जल संसाधन सचिव के बयान के बाद पानी पर काम कर रहे संगठनों के पास मौका है कि वे जल विधेयक का प्रारूप बनाने में न सिर्फ अपनी सहभागिता सुनिश्चित करें, बल्कि सरकारों को ऐसा करने के लिये विवश भी करें। वे ऐसा प्रारूप हेतु दबाव बनाएँ, जो प्रकृति तथा दलित-वंचित व जरूरतमन्द समुदाय हितैषी तो हो; साथ पानी के लेन-देन का सन्तुलन बनाने में स्थानीय समुदाय, शासन तथा प्रशासन..सभी की जवाबदेही भी सुनिश्चित करता हो। अपील में आह्वान किया गया श्रम आधारित जल संचयन संकल्प सत्याग्रह के लिये एकजुट हों। बारिश आने से पहले वर्षाजल संचयन के निजी ढाँचों को खुद दुरुस्त करें। उपयोग का अनुशासन बनाएँ। पंचायत, स्थानीय निकाय, शासन, प्रशासन को सूचित करें कि उनके अधिकार वाले ढाँचों की दुरुस्ती के काम में लगे। सुनिश्चित करें कि सभी सरकारी इमारतों, शैक्षणिक व औद्योगिक संस्थानों में छत पर बरसा पानी एकत्र करने का ढाँचा बन जाये।
यदि 30 अप्रैल, 2016 तक वे ऐसा नहीं करते हैं, तो स्थानीय समुदाय एक मई, 2016 को ऐसे ढाँचों को अपने अधिकार में ले और उन्हें दुरुस्त करे। श्रम सहयोग व निगरानी के काम में युवा विशेष जिम्मेदारी निभाएँ। यदि शासन, प्रशासन या स्थानीय निकाय न स्वयं ऐसा करें और न समुदाय को करने दें, तो पानी के प्रति सभी का दायित्व व अधिकार सुनिश्चित करने के लिये भिन्न समुदाय व संगठन पाँच मई, 2016 को दिल्ली कूच कर ‘जल सुरक्षा अधिनियम’ की माँग करे। अपील में कहा गया कि अपील करने वाले 130 संगठनों ने स्वयं अपने लिये ऐसा करना तय किया है।
130 संगठनों की ओर से जलपुरुष श्री राजेन्द्र सिंह और एकता परिषद के संस्थापक श्री पी.वी. राजागोपाल ने यह अपील जारी की।
इस अपील के जारी होते ही खासकर शासन व सामाजिक संगठनों की ओर से प्रतिक्रियाएँ आईं, वे सचमुच गौर फरमाने लायक है:
1. बाबा साहब के नाम पर आएगी जल संकटग्रस्त दलित गाँवों के लिये केन्द्रीय जल योजना
सबसे पहली प्रतिक्रिया 17 अप्रैल को केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती की ओर से आई। बाबा साहब पर आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि पानी की कम उपलब्धता या अपर्याप्त जल भण्डारण ढाँचों की कमी के कारण जल संकट का सामना कर रहे दलित बहुल गाँवों के लिये वह बाबा साहब अम्बेडकर के नाम से एक योजना शुरू करने पर विचार कर रही हैं।
2. 15 मई तक जल विधेयक प्रारूप तैयार करने का ऐलान
दूसरी अहम प्रतिक्रिया भी 17 अप्रैल को ही आई। रविवार का दिन होने के बावजूद केन्द्रीय जल संसाधन सचिव ने बयान दिया कि पानी के गम्भीर संकट को ध्यान में रखते हुए सरकार जल्द ही एक ऐसा आदर्श विधेयक ला सकती है, जो जल जैसे बेशकीमती संसाधन का भण्डारण सुनिश्चित करके इसके प्रभावी प्रबन्धन हेतु राज्यों के लिये दिशा-निर्देश तय करेगा। उन्होंने जानकारी दी कि यह काम 15 मई तक पूरा कर लिया जाएगा। उन्होंने जनता के बीच व्याप्त मिथक को तोड़ने की जरूरत बताई कि देश में पानी के प्रचुर भण्डार हैं और ये मुफ्त उपलब्ध हैं। उन्होंने लातूर का जिक्र किया और कहा कि हमें कम-से-कम अगले दस वर्ष तक जल प्रबन्धन को लेकर व्यापक सोच की जरूरत है। वाष्पीकरण रोकना होगा; वर्षाजल भण्डारण बढ़ाना होगा।
3. विचार करेगी दिल्ली सरकार
तीसरी प्रतिक्रिया, 19 अप्रैल को दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री कार्यालय से मेरी मेल पर आई। अपील को आवश्यक कार्रवाई के लिये जल संसाधन मंत्री को भेजा जा रहा है।
4. प्रधानमंत्री ने की अगले महीनों में मनरेगा के तहत जल संरक्षण व भण्डारण का व्यापक करने की घोषणा
चौथी प्रतिक्रिया स्वयं प्रधानमंत्री कार्यालय से आई। 19 अप्रैल को प्रधानमंत्री कार्यालय ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का एक बयान जारी किया- “अगले कुछ महीनों में मनरेगा के तहत जल संरक्षण एवं भण्डारण के लिये बड़े पैमाने पर कोशिश शुरू की जाएगी।’’
5. प्रधानमंत्री ने की युवा संगठनों से जल संरक्षण में योगदान की अपील
जारी बयान में प्रधानमंत्री श्री मोदी ने क्रमशः एन. सी.सी., राष्ट्रीय सेवा योजना, भारत स्काउट एंड गाइड्स और नेहरु युवा केन्द्र संगठन से जुड़े युवाओं से स्वयं अपील की कि वे जल संरक्षण व वर्षाजल भण्डारण में योगदान दें।
6. एक सप्ताह के भीतर मनरेगा मजदूरी भुगतान के लिये 90,000 करोड़ होंगे जारी
कई जिलाधिकारियों ने सूचना दी कि भुगतान नहीं होने के कारण मनरेगा के काम के लिये मजदूर नहीं मिल रहे। पाँचवी प्रतिक्रिया के रूप में प्राप्त एक खबर के अनुसार राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि इस मनरेगा में होने वाले काम की मजदूरी एक सप्ताह के भीतर हो जाये। भुगतान में विलम्ब रोकने के लिये केन्द्र सरकार ने इसके लिये 90,000 करोड़ की धनराशि जल्द जारी करेगी।
7. महाराष्ट्र में 200 फीट से गहरे बोरवेलों पर पाबन्दी
छठी प्रतिक्रिया के रूप में महाराष्ट्र शासन ने 200 फीट से अधिक गहरे बोरवेलों पर पाबन्दी लगा दी।
सातवीं प्रतिक्रिया की रूप में 20 अप्रैल को अखिलेश सरकार का विज्ञापन दिखा। अखबारों को जारी विज्ञापन में बुन्देलखण्ड में 2000 खेत-तालाबों को बनाने की घोषणा छपी; महोबा में 500 और झाँसी, जालौन, ललितपुर, चित्रकूट और हमीरपुर में 250-250 खेत-तालाब। जाहिर है कि खेत-तालाब किसानों की निजी भूमि पर ही निर्मित किये जाएँगे। विज्ञापन में घोषणा का लाभ लेने के लिये पंजीकरण तथा खुदाई खर्च पर 50 प्रतिशत अधिकतम 52,500 रुपए तक का भुगतान डीबीटी द्वारा सीधे किसान के खाते में भेजने की भी सूचना छपी।
9. मीडिया में आया पानी के लेन-देन में असन्तुलन का नजरिया
आठवीं प्रतिक्रिया का मीडिया की ओर आना लगातार जारी है। तमाम अखबारों में इस आशय के आकलनों को आना जारी है कि खासकर महाराष्ट्र में मची पानी को लेकर चीख-पुकार का कारण जलवायु परिवर्तन से ज्यादा, स्थानीय स्तर पर घटा वर्षाजल संचयन और व्यावसायिक फसलों व उद्योगों के लिये बढ़ी जल निकासी है।
10. मुख्य अपर महानिदेशक (एस. आई. टी) मुख्यालय, उ. प्र. भी हुए जल संरक्षण में सक्रिय
नौंवी प्रतिक्रिया एक अनापेक्षित ठिकाने से आई। उत्तर प्रदेश के मुख्यालय अपर महानिदेशक, विशेष अनुसन्धान दल (स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम) लखनऊ से अपर महानिदेशक श्री महेन्द्र मोदी ने सूचना दी कि जल संरक्षण प्रशिक्षण हेतु 20-21 अप्रैल को उनके मार्गदर्शन में झाँसी शहर में राष्ट्रीय जल संरक्षण महाकुम्भ होगा। श्री मोदी ने तालाबी, मेड़बन्दी, वर्षाजल टंकी आदि के जरिए वर्षाजल संरक्षण हेतु बुन्देलखण्ड के झाँसी जिले के गाँव रक्शा, अम्बाबाई, कंचनपुरा, खैरा, बाजना, रुन्द करारी, चन्द्रा गोपालपुरा, बनगुआ और सिमराहा आदि गाँवों को गोद लेने की जानकारी दी। उन्हें बताया कि उक्त गाँवों के अतिरिक्त उन्होंने उत्तर प्रदेश के जिला लखनऊ और अमेठी के एक-एक गाँव तथा झारखण्ड के दो गाँवों का चयन किया है।
11. सामुदायिक जवाबदेही और सक्रियता के समाचार बढ़े
दसवीं और आगे की गिनती वाली प्रतिक्रिया के रूप में संगठनों और समुदायों द्वारा वर्षाजल संचयन ढाँचों की दुरुस्ती की तैयारी के समाचार हैं। बुन्देलखण्ड के जिला छतरपुर से श्री भगवान सिंह परमार द्वारा भेजी जानकारी के अनुसार, जल बिरादरी ने स्थानीय प्रशासन व जनप्रतिनिधियों को अपील के सम्बन्ध में न सिर्फ ज्ञापन सौंपा, बल्कि 25 अप्रैल से श्रमदान शुरू कर 100 एकड़ वर्ग क्षेत्रफल में फैले खौंप तालाब की दुरुस्ती अपने हाथ में लेने का ऐलान किया। इसके अलावा उत्तराखण्ड, चम्पारण, भुवनेश्वर, महोबा,
मीन-मेख निकालने की दृष्टि से जहाँ अपील पर सवाल सम्भव है, वहीं इस सक्रियता पर भी। सवाल पूछने वाले पूछ सकते हैं कि कहीं यह अपील और एकजुटता, पानी से ज्यादा गैर सरकारी संगठनों के अस्तित्व की रक्षा के लिये तो नहीं? ’हिडन एजेंडा’ तलाशने वाले इस एकजुटता में राजनीतिक सम्भावना तलाशने में लग गए हैं। अपील पर आई केन्द्र सरकार की प्रतिक्रिया व सक्रियता को लेकर वे कह रहे हैं कि यह संगठनों को आन्दोलन करने से रोकने के लिये की गई कोरी बयानबाजी है।
ये कोरी बयानबाजी हो, तो भी क्या यह एक अवसर नहीं देती कि हम इन्हीं बयानों को पकड़कर बारिश से पहले वर्षाजल भण्डारण ढाँचों को दुरुस्त कर दें। मनरेगा के अलावा, केन्द्र सरकार द्वारा इस वित्त वर्ष के बजट में प्रत्येक ग्राम पंचायत को न्यूनतम 80 लाख और नगर निकाय को न्यूनतम 25 करोड़ रुपए का घोषित आवंटन गाँवों और नगरों के पास है।
इस आवंटन की खास बात यह है कि इसके खर्च का मद व योजना स्वयं ग्राम पंचायत/नगर निकाय को तय करने हैं। प्रधानमंत्री जी के बयान के बाद एन.सी.सी. और एन.एस.एस आदि युवा इकाइयों के पास मौका है कि वर्षाजल संचयन ढाँचों की दुरुस्ती के लिये श्रम आधारित कैम्प लगाएँ। नेहरु युवा केन्द्र संगठन के युवा क्लब अगले दो महीने इसी काम हेतु समर्पित कर दें।
केन्द्रीय जल संसाधन सचिव के बयान के बाद पानी पर काम कर रहे संगठनों के पास मौका है कि वे जल विधेयक का प्रारूप बनाने में न सिर्फ अपनी सहभागिता सुनिश्चित करें, बल्कि सरकारों को ऐसा करने के लिये विवश भी करें। वे ऐसा प्रारूप हेतु दबाव बनाएँ, जो प्रकृति तथा दलित-वंचित व जरूरतमन्द समुदाय हितैषी तो हो; साथ पानी के लेन-देन का सन्तुलन बनाने में स्थानीय समुदाय, शासन तथा प्रशासन..सभी की जवाबदेही भी सुनिश्चित करता हो।
यह वक्त न किसी की ओर ताकने का है और न यह भूलने का कि भारत का राष्ट्रीय वार्षिक वर्षा औसत 40 प्रतिशत तक घट गया है। वितरण असमान हुआ है, सो अलग। अतः वर्षाजल संचयन और उपयोग में अनुशासन का कोई विकल्प नहीं है। जाहिर है कि संकल्प और सकारात्मकता जरूरी है। ऐसे में न यह अपील नजरअन्दाज करने वाली है और न ये प्रतिक्रयाएँ। आइए, इन्हें अपने अन्दाज में ज़मीन पर उतार लाएँ।
स्थान : परम्परागत तरीकों से जल संकट के समाधान की पैरोकारी के लिये विश्व विख्यात जलपुरुष राजेन्द्र सिंह की अध्यक्षता वाले संगठन तरुण भारत संघ का गाँव भीकमपुरा स्थित तरुण आश्रम;
मौका : 130 संगठनों के जमावड़े का अन्तिम दिन; जारी हुई एक अपील।
जारी जल अपील
केन्द्रीय जल संसाधन सचिव के बयान के बाद पानी पर काम कर रहे संगठनों के पास मौका है कि वे जल विधेयक का प्रारूप बनाने में न सिर्फ अपनी सहभागिता सुनिश्चित करें, बल्कि सरकारों को ऐसा करने के लिये विवश भी करें। वे ऐसा प्रारूप हेतु दबाव बनाएँ, जो प्रकृति तथा दलित-वंचित व जरूरतमन्द समुदाय हितैषी तो हो; साथ पानी के लेन-देन का सन्तुलन बनाने में स्थानीय समुदाय, शासन तथा प्रशासन..सभी की जवाबदेही भी सुनिश्चित करता हो। अपील में आह्वान किया गया श्रम आधारित जल संचयन संकल्प सत्याग्रह के लिये एकजुट हों। बारिश आने से पहले वर्षाजल संचयन के निजी ढाँचों को खुद दुरुस्त करें। उपयोग का अनुशासन बनाएँ। पंचायत, स्थानीय निकाय, शासन, प्रशासन को सूचित करें कि उनके अधिकार वाले ढाँचों की दुरुस्ती के काम में लगे। सुनिश्चित करें कि सभी सरकारी इमारतों, शैक्षणिक व औद्योगिक संस्थानों में छत पर बरसा पानी एकत्र करने का ढाँचा बन जाये।
यदि 30 अप्रैल, 2016 तक वे ऐसा नहीं करते हैं, तो स्थानीय समुदाय एक मई, 2016 को ऐसे ढाँचों को अपने अधिकार में ले और उन्हें दुरुस्त करे। श्रम सहयोग व निगरानी के काम में युवा विशेष जिम्मेदारी निभाएँ। यदि शासन, प्रशासन या स्थानीय निकाय न स्वयं ऐसा करें और न समुदाय को करने दें, तो पानी के प्रति सभी का दायित्व व अधिकार सुनिश्चित करने के लिये भिन्न समुदाय व संगठन पाँच मई, 2016 को दिल्ली कूच कर ‘जल सुरक्षा अधिनियम’ की माँग करे। अपील में कहा गया कि अपील करने वाले 130 संगठनों ने स्वयं अपने लिये ऐसा करना तय किया है।
130 संगठनों की ओर से जलपुरुष श्री राजेन्द्र सिंह और एकता परिषद के संस्थापक श्री पी.वी. राजागोपाल ने यह अपील जारी की।
प्राप्त प्रतिक्रियाएँ
इस अपील के जारी होते ही खासकर शासन व सामाजिक संगठनों की ओर से प्रतिक्रियाएँ आईं, वे सचमुच गौर फरमाने लायक है:
1. बाबा साहब के नाम पर आएगी जल संकटग्रस्त दलित गाँवों के लिये केन्द्रीय जल योजना
सबसे पहली प्रतिक्रिया 17 अप्रैल को केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती की ओर से आई। बाबा साहब पर आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि पानी की कम उपलब्धता या अपर्याप्त जल भण्डारण ढाँचों की कमी के कारण जल संकट का सामना कर रहे दलित बहुल गाँवों के लिये वह बाबा साहब अम्बेडकर के नाम से एक योजना शुरू करने पर विचार कर रही हैं।
2. 15 मई तक जल विधेयक प्रारूप तैयार करने का ऐलान
दूसरी अहम प्रतिक्रिया भी 17 अप्रैल को ही आई। रविवार का दिन होने के बावजूद केन्द्रीय जल संसाधन सचिव ने बयान दिया कि पानी के गम्भीर संकट को ध्यान में रखते हुए सरकार जल्द ही एक ऐसा आदर्श विधेयक ला सकती है, जो जल जैसे बेशकीमती संसाधन का भण्डारण सुनिश्चित करके इसके प्रभावी प्रबन्धन हेतु राज्यों के लिये दिशा-निर्देश तय करेगा। उन्होंने जानकारी दी कि यह काम 15 मई तक पूरा कर लिया जाएगा। उन्होंने जनता के बीच व्याप्त मिथक को तोड़ने की जरूरत बताई कि देश में पानी के प्रचुर भण्डार हैं और ये मुफ्त उपलब्ध हैं। उन्होंने लातूर का जिक्र किया और कहा कि हमें कम-से-कम अगले दस वर्ष तक जल प्रबन्धन को लेकर व्यापक सोच की जरूरत है। वाष्पीकरण रोकना होगा; वर्षाजल भण्डारण बढ़ाना होगा।
3. विचार करेगी दिल्ली सरकार
तीसरी प्रतिक्रिया, 19 अप्रैल को दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री कार्यालय से मेरी मेल पर आई। अपील को आवश्यक कार्रवाई के लिये जल संसाधन मंत्री को भेजा जा रहा है।
4. प्रधानमंत्री ने की अगले महीनों में मनरेगा के तहत जल संरक्षण व भण्डारण का व्यापक करने की घोषणा
चौथी प्रतिक्रिया स्वयं प्रधानमंत्री कार्यालय से आई। 19 अप्रैल को प्रधानमंत्री कार्यालय ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का एक बयान जारी किया- “अगले कुछ महीनों में मनरेगा के तहत जल संरक्षण एवं भण्डारण के लिये बड़े पैमाने पर कोशिश शुरू की जाएगी।’’
5. प्रधानमंत्री ने की युवा संगठनों से जल संरक्षण में योगदान की अपील
जारी बयान में प्रधानमंत्री श्री मोदी ने क्रमशः एन. सी.सी., राष्ट्रीय सेवा योजना, भारत स्काउट एंड गाइड्स और नेहरु युवा केन्द्र संगठन से जुड़े युवाओं से स्वयं अपील की कि वे जल संरक्षण व वर्षाजल भण्डारण में योगदान दें।
6. एक सप्ताह के भीतर मनरेगा मजदूरी भुगतान के लिये 90,000 करोड़ होंगे जारी
कई जिलाधिकारियों ने सूचना दी कि भुगतान नहीं होने के कारण मनरेगा के काम के लिये मजदूर नहीं मिल रहे। पाँचवी प्रतिक्रिया के रूप में प्राप्त एक खबर के अनुसार राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि इस मनरेगा में होने वाले काम की मजदूरी एक सप्ताह के भीतर हो जाये। भुगतान में विलम्ब रोकने के लिये केन्द्र सरकार ने इसके लिये 90,000 करोड़ की धनराशि जल्द जारी करेगी।
7. महाराष्ट्र में 200 फीट से गहरे बोरवेलों पर पाबन्दी
छठी प्रतिक्रिया के रूप में महाराष्ट्र शासन ने 200 फीट से अधिक गहरे बोरवेलों पर पाबन्दी लगा दी।
8. उत्तर प्रदेश सरकार बुन्देलखण्ड में बनाएगी 2000 खेत-तालाब
सातवीं प्रतिक्रिया की रूप में 20 अप्रैल को अखिलेश सरकार का विज्ञापन दिखा। अखबारों को जारी विज्ञापन में बुन्देलखण्ड में 2000 खेत-तालाबों को बनाने की घोषणा छपी; महोबा में 500 और झाँसी, जालौन, ललितपुर, चित्रकूट और हमीरपुर में 250-250 खेत-तालाब। जाहिर है कि खेत-तालाब किसानों की निजी भूमि पर ही निर्मित किये जाएँगे। विज्ञापन में घोषणा का लाभ लेने के लिये पंजीकरण तथा खुदाई खर्च पर 50 प्रतिशत अधिकतम 52,500 रुपए तक का भुगतान डीबीटी द्वारा सीधे किसान के खाते में भेजने की भी सूचना छपी।
9. मीडिया में आया पानी के लेन-देन में असन्तुलन का नजरिया
आठवीं प्रतिक्रिया का मीडिया की ओर आना लगातार जारी है। तमाम अखबारों में इस आशय के आकलनों को आना जारी है कि खासकर महाराष्ट्र में मची पानी को लेकर चीख-पुकार का कारण जलवायु परिवर्तन से ज्यादा, स्थानीय स्तर पर घटा वर्षाजल संचयन और व्यावसायिक फसलों व उद्योगों के लिये बढ़ी जल निकासी है।
10. मुख्य अपर महानिदेशक (एस. आई. टी) मुख्यालय, उ. प्र. भी हुए जल संरक्षण में सक्रिय
नौंवी प्रतिक्रिया एक अनापेक्षित ठिकाने से आई। उत्तर प्रदेश के मुख्यालय अपर महानिदेशक, विशेष अनुसन्धान दल (स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम) लखनऊ से अपर महानिदेशक श्री महेन्द्र मोदी ने सूचना दी कि जल संरक्षण प्रशिक्षण हेतु 20-21 अप्रैल को उनके मार्गदर्शन में झाँसी शहर में राष्ट्रीय जल संरक्षण महाकुम्भ होगा। श्री मोदी ने तालाबी, मेड़बन्दी, वर्षाजल टंकी आदि के जरिए वर्षाजल संरक्षण हेतु बुन्देलखण्ड के झाँसी जिले के गाँव रक्शा, अम्बाबाई, कंचनपुरा, खैरा, बाजना, रुन्द करारी, चन्द्रा गोपालपुरा, बनगुआ और सिमराहा आदि गाँवों को गोद लेने की जानकारी दी। उन्हें बताया कि उक्त गाँवों के अतिरिक्त उन्होंने उत्तर प्रदेश के जिला लखनऊ और अमेठी के एक-एक गाँव तथा झारखण्ड के दो गाँवों का चयन किया है।
11. सामुदायिक जवाबदेही और सक्रियता के समाचार बढ़े
दसवीं और आगे की गिनती वाली प्रतिक्रिया के रूप में संगठनों और समुदायों द्वारा वर्षाजल संचयन ढाँचों की दुरुस्ती की तैयारी के समाचार हैं। बुन्देलखण्ड के जिला छतरपुर से श्री भगवान सिंह परमार द्वारा भेजी जानकारी के अनुसार, जल बिरादरी ने स्थानीय प्रशासन व जनप्रतिनिधियों को अपील के सम्बन्ध में न सिर्फ ज्ञापन सौंपा, बल्कि 25 अप्रैल से श्रमदान शुरू कर 100 एकड़ वर्ग क्षेत्रफल में फैले खौंप तालाब की दुरुस्ती अपने हाथ में लेने का ऐलान किया। इसके अलावा उत्तराखण्ड, चम्पारण, भुवनेश्वर, महोबा,
नकारात्मक पहलू
मीन-मेख निकालने की दृष्टि से जहाँ अपील पर सवाल सम्भव है, वहीं इस सक्रियता पर भी। सवाल पूछने वाले पूछ सकते हैं कि कहीं यह अपील और एकजुटता, पानी से ज्यादा गैर सरकारी संगठनों के अस्तित्व की रक्षा के लिये तो नहीं? ’हिडन एजेंडा’ तलाशने वाले इस एकजुटता में राजनीतिक सम्भावना तलाशने में लग गए हैं। अपील पर आई केन्द्र सरकार की प्रतिक्रिया व सक्रियता को लेकर वे कह रहे हैं कि यह संगठनों को आन्दोलन करने से रोकने के लिये की गई कोरी बयानबाजी है।
सकारात्मक पहलू
ये कोरी बयानबाजी हो, तो भी क्या यह एक अवसर नहीं देती कि हम इन्हीं बयानों को पकड़कर बारिश से पहले वर्षाजल भण्डारण ढाँचों को दुरुस्त कर दें। मनरेगा के अलावा, केन्द्र सरकार द्वारा इस वित्त वर्ष के बजट में प्रत्येक ग्राम पंचायत को न्यूनतम 80 लाख और नगर निकाय को न्यूनतम 25 करोड़ रुपए का घोषित आवंटन गाँवों और नगरों के पास है।
इस आवंटन की खास बात यह है कि इसके खर्च का मद व योजना स्वयं ग्राम पंचायत/नगर निकाय को तय करने हैं। प्रधानमंत्री जी के बयान के बाद एन.सी.सी. और एन.एस.एस आदि युवा इकाइयों के पास मौका है कि वर्षाजल संचयन ढाँचों की दुरुस्ती के लिये श्रम आधारित कैम्प लगाएँ। नेहरु युवा केन्द्र संगठन के युवा क्लब अगले दो महीने इसी काम हेतु समर्पित कर दें।
केन्द्रीय जल संसाधन सचिव के बयान के बाद पानी पर काम कर रहे संगठनों के पास मौका है कि वे जल विधेयक का प्रारूप बनाने में न सिर्फ अपनी सहभागिता सुनिश्चित करें, बल्कि सरकारों को ऐसा करने के लिये विवश भी करें। वे ऐसा प्रारूप हेतु दबाव बनाएँ, जो प्रकृति तथा दलित-वंचित व जरूरतमन्द समुदाय हितैषी तो हो; साथ पानी के लेन-देन का सन्तुलन बनाने में स्थानीय समुदाय, शासन तथा प्रशासन..सभी की जवाबदेही भी सुनिश्चित करता हो।
बयानों को ज़मीन पर उतार लाने का वक्त
यह वक्त न किसी की ओर ताकने का है और न यह भूलने का कि भारत का राष्ट्रीय वार्षिक वर्षा औसत 40 प्रतिशत तक घट गया है। वितरण असमान हुआ है, सो अलग। अतः वर्षाजल संचयन और उपयोग में अनुशासन का कोई विकल्प नहीं है। जाहिर है कि संकल्प और सकारात्मकता जरूरी है। ऐसे में न यह अपील नजरअन्दाज करने वाली है और न ये प्रतिक्रयाएँ। आइए, इन्हें अपने अन्दाज में ज़मीन पर उतार लाएँ।