प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुन्देलखण्ड में एक रैली में कहा था जो सेटेलाइट छोड़े गए हैं उनसे बुन्देलखण्ड में अवैध खनन रोका जाएगा। सेटेलाइट से पता किया जाएगा कि कहाँ पर कैसे अवैध खनन हो रहा है। सेटेलाइट जब होगा तब होगा बेहतर हो कि अधिकारियों पर नकेल कसी जाये। ताकि यहाँ हो रहे अवैध खनन को रोका जाये। अवैध खनन से नदियों का रुख मुड़ जाता है और जरूरत के मुताबिक लोगों को पानी नहीं मिल पाता। नतीजतन लोग बर्बाद हो रहे हैं। खेती किसानी सब बन्द है। करीब डेढ़ दशक हो चुका है बुन्देलखण्ड को सूखे की मार झेलते हुए। न जाने कितने किसानों ने असमय ही मौत को गले लगा लिया। न जाने कितने घर परिवार बर्बाद हो गए लेकिन आज तक यहाँ पर पानी कभी भी चुनावी मुद्दा नहीं बना। कहने को एक दशक पहले इस इलाके को सूखाग्रस्त घोषित किया गया। उम्मीद की गई थी हालात सुधरेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। गुरुवार को बुन्देलखण्ड के सात जिलों की विधानसभा सीटों पर वोट पड़े। नतीजे क्या होंगे इसका कोई अन्दाजा नहीं लेकिन इतना तय है कि एक बार फिर से सूखे की मार झेल रहे इस इलाके में नेताओं की 'राजनैतिक फसल' खूब लहलाहाएगी।
कई दशक से इस इलाके में रिपोर्टिंग कर रहे बांदा के अशोक निगम कहते हैं कि किसी भी राजनेता ने यहाँ के लोगों के दर्द को अपना दर्द नहीं समझा। यही वजह है कि पानी का मुद्दा नहीं बना। राजनैतिक पार्टियों के मैनिफेस्टो में जो वायदे नोएडा के लिये तैयार होते हैं वहीं बुन्देलखण्ड के लिये तो बताइए भला कैसे यहाँ के किसानों का दर्द समझा जाएगा।
बुन्देलखण्ड में चित्रकूट सहित कई जगहों का धार्मिक महत्त्व है। यहाँ फॉरेस्ट, झीलें, नदियाँ, वाटर फॉल, किले सहित कई दर्शनीय स्थल हैं। लेकिन रखरखाव और आवागमन के साधन न होने की वजह से सभी बदहाल हैं। अगर राजनेता इनको ही तवज्जो दें तो बहुत हद तक पानी की समस्या को दूर किया जा सकता है। लेकिन राजनैतिक मंशा के चलते ऐसा नहीं हो पा रहा है।
सूखे का मुद्दा तो बस राजनीति की 'खाद पानी' है
बुन्देलखण्ड के सात जिलों में अभी 19 विधानसभाएँ हैं। कभी यहाँ पर 21 विधानसभा क्षेत्र होते थे। सभी नेताओं ने अपनी-अपनी 'राजनैतिक जमीन' पर सूखे और पानी जैसे मुद्दों को बस 'खाद पानी' ही समझा। बुन्देलखण्ड किसान मोर्चा के अध्यक्ष महेन्द्र शर्मा कहते हैं कि नेता मौकापरस्त हैं। बुन्देलखण्ड के नाम पर राजनीति तो करते हैं लेकिन जीतने के बाद कुछ नहीं करते।
शर्मा नाराज होकर कहते हैं कि नेताओं को पता है कि अगर भुखमरी खत्म हो जाएगी तो फिर राजनीति क्या करेंगे। हमीरपुर में पानी को लेकर संघर्ष करने वाले हेमंत कहते हैं कि नेता जब गांव में जाते हैं तो किसानों से उनके दर्द को दूर करने की बाते करते हैं। हकीकत यह है कि आज भी इस इलाके के कई गाँव ऐसे हैं जहाँ पर कमाने खाने दूर दराज के शहरों में गए लोग वापस ही नहीं आये। गुरुवार को चुनाव खत्म हो गया लेकिन वो लोग नहीं आये। उनको पता है कि नेता उनकी कभी नहीं सुनेंगे।
न मंशा है और न मैनेजमेंट
इलाके के किसान नेता ओमप्रकाश कहते हैं कि जो बड़ा आदमी है वो बहुत बड़ा है। जो गरीब है वो बहुत गरीब है। क्योंकि अधिकारियों की मंशा ही नहीं है कि किसानों को और गरीबों को ऊपर उठाया जाये। वह कहते हैं कि बुन्देलखण्ड में नदियाँ और प्राकृतिक जलस्रोत खूब हैं लेकिन इनकी देखरेख करने वाले जिम्मेदारों का प्रबन्धन बहुत घटिया है। यही वजह है कि लोग पानी को तरसते हैं। हालात ऐसे हो गए हैं कि पिछले साल केन्द्र सरकार को पीने के पानी की वाटर ट्रेन भेजनी पड़ी थी। यहाँ के कालिंजर और फतेहगंज तक पानी के नाम पर कुछ नहीं है।
अवैध खनन से नदियों का रुख मुड़ता है अब सेटेलाइट से रोंकेंगे
चार दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुन्देलखण्ड में एक रैली में कहा था जो सेटेलाइट छोड़े गए हैं उनसे बुन्देलखण्ड में अवैध खनन रोका जाएगा। सेटेलाइट से पता किया जाएगा कि कहाँ पर कैसे अवैध खनन हो रहा है। इलाके के लोग कहते हैं कि सेटेलाइट जब होगा तब होगा बेहतर हो कि अधिकारियों पर नकेल कसी जाये। ताकि यहाँ हो रहे अवैध खनन को रोका जाये। अवैध खनन से नदियों का रुख मुड़ जाता है और जरूरत के मुताबिक लोगों को पानी नहीं मिल पाता। नतीजतन लोग बर्बाद हो रहे हैं। खेती किसानी सब बन्द है।
बुन्देलखण्ड हमेशा गरीबी और भुखमरी के लिये सुर्खियों में रहता है लेकिन यहाँ उतरने वाले प्रत्याशी अमीर हैं। एडीआर और इलेक्शन वॉच की रिपोर्ट के अनुसार चौथे चरण के 12 जिलों में 189 प्रत्याशी करोड़पति हैं। इनमें से सात जिले इसी बुन्देलखण्ड के हैं।