बहराइच…यूपी का वो जिला जो अपने खूबसूरत जंगलों और वाइल्ड लाइफ रिजर्व के लिये पूरे देश में जाना जाता है। यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता और कल-कल करती बहती सरयू नदी लोगों को अपनी ओर खींच लेती है। लेकिन ऐसी सुन्दरता के बीच एक अभिशाप भी इस जिले को है। वो है यहाँ के पानी में आर्सेनिक की मात्रा। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक जिले की 194 ग्राम पंचायत के 523 मजरों के पानी की 2013 में जाँच की गई थी। जाँच में जो तथ्य सामने आये वो हैरान करने वाले थे। जाँच में पाया गया कि 50 फीसदी से अधिक पानी में आर्सेनिक तत्व थे। जो अपनी तय मात्रा से काफी ज्यादा था।
जापान की यूनिवर्सिटी ऑफ मियाजॉकी और ईको फ्रेंड्स संस्था ने भी इस जिले के गाँवों में पानी में आर्सेनिक की जाँच की जो कि खतरनाक लेवल से ऊपर था। सरकार और जापान यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों की संयुक्त रूप से जाँच के बाद तय हुआ कि आर्सेनिक प्रभावित गाँवों के सरकारी नलों में आर्सेनिक फिल्टर लगाए जाएँ ताकि लोगों को साफ पानी पीने को मिल सके। फिल्टर लगाए भी गए लेकिन बदहाली के चलते इन गाँवों के फिल्टर एक बार खराब हुए वो फिर कभी दोबारा बने ही नहीं।
नतीजन आज भी गाँव के लोग आर्सेनिक का ‘स्लो प्वाइजन्स’ वॉटर पी रहे हैं और अलग-अलग तरह की बीमारियों से घिर रहे हैं। इतना सब कुछ होने के बाद भी अब तक स्वास्थ्य विभाग से लेकर जिम्मेदार महकमें की ओर से न तो इन गाँव के लोगों का कोई हेल्थ कैम्प लगवाकर चेकअप करवाया जा रहा है और न ही उनकी सेहत पर विशेष नजर रखी जा रही है।
यह है अभी हाल
सरकारी हैण्डपम्पों से पानी के साथ आ रहे जानलेवा आर्सेनिक तत्वों को बहराइच जिले की तेजवापुर तहसील के चेतरा व नेवादा के ग्रामीण पीने को मजबूर हैं। पानी में आर्सेनिक तत्वों की मौजूदगी की पहचान में यूपी के साथ-साथ जापान के विशेषज्ञों को पहचान करने में पाँच साल लगे तो उसके सॉल्यूशन के लिये जालीदार व टंकीवाले फिल्टर स्थापित किये गए। यह फिल्टर बमुश्किल पाँच-छः माह में कार्य कर सके। इसके बाद से फिर ग्रामीण वही दूषित आर्सेनिक युक्त घातक पानी पीने के लिये मजबूर हैं। पिछले तीन सालों के अन्तराल में दर्जनों लोग पेट विकार, हाथ पैर में चकत्ते और दाँतो में कालिख जैसे निशानों से पूरी आबादी स्लो प्वाइजन की गिरफ्त में है, पर जिम्मेदार चुप हैं।
लखनऊ से 140 किमी दूर बहराइच जिला मुख्यालय से 10 किमी की दूरी का चेतरा ग्राम पंचायत के चैनपुरवा, पुर्बिहन पट्टी, पासी पट्टी, कुट्टी व नरखोदवा मजरों व खुद चेतरा ग्राम पंचायत मुख्यालय आर्सेनिक युक्त पानी की चपेट में है। यहाँ के निवासी 60 वर्षीय शिवदयाल तिवारी ने बताया, ‘पिछले आठ वर्ष पहले जापान के विशेषज्ञों और सरकार के प्रतिनिधियों ने गाँव आकर हैण्डपम्पों के पानी की जाँच की थी। जिसमें उन्होंने बताया था कि यहाँ पर 100 फिट की गहराई के सभी सरकारी हैण्डपम्पों के पानी में घातक स्तर की आर्सेनिक मात्रा है। 2013 में हैण्डपम्पों के बगल में शोधक यंत्र के रूप में जालीदार व टंकी वाले यंत्र लगाए गए पर यह सफल नहीं रहे और खराब हो गए। अब इनमें पानी फिल्टर नहीं होता। मजबूरन लोग दूषित पानी पी रहे हैं।’
गाँव के ग्रैजुएट छात्र आशीष बताते हैं कि गाँव में लोग आर्थिक तंगी के कारण यह जानकर भी कि हैण्डपम्पों के पानी में घातक आर्सेनिक तत्व हैं फिर भी पानी पीते हैं। बिजली विभाग से रिटायर्ड लिपिक अभिमन्यु (63) ने बताया कि नौकरी के दौरान वह गाँव में नहीं रहे। रिटायर होने पर गाँव लौटे हैं। यहाँ आने पर मालूम हुआ कि हैण्डपम्प के पानी में आर्सेनिक तत्व है। इस पानी के प्रयोग से अक्सर उन्हें पेट दर्द की समस्या रहती है। पर डाक्टर सामान्य दवाएँ देकर वापस कर देते हैं। इससे बार बार यह बीमारी उन्हें और परिवार के लोगों को झेलनी पड़ती है।
महज खाना पूर्ति ही था फिल्टर लगाना
70 वर्षीय श्रीधर त्रिपाठी ने बताया कि इन हैण्डपम्पों में लगाए गए फिल्टर का प्रायोगिक तौर पर बहुत सम्भव नहीं था। यानी जाली वाले व टंकी वाले फिल्टर में हैण्डपम्प से पानी भरा जाना था। इसके बाद इसके पानी के साफ हो जाने के बाद प्रयोग करना था। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में 20 से 25 मिनट का समय लगता था। लोगों ने इतना लम्बा वक्त लगता देख और अशिक्षा के कारण भी इसका प्रयोग छोड़ दिया। उन्होंने बताया कि संस्थाओं से लेकर जिम्मेदारों ने भी फिल्टर लगाने के बाद उसकी देखरेख नहीं की। अब लोग मजबूरन आर्सेनिक युक्त पानी पी रहे हैं।
70 वर्षीय बाबूराम बताते हैं कि उनके शरीर में हमेशा तेज दर्द होता है। इसकी वजह आर्सेनिक युक्त पानी भी हो सकता है। लेकिन साफ पानी लाये भी तो कहाँ से।
पानी की टंकी को जमीन दे दी, लगी नहीं
प्रधान चेतरा बृजेश कुमार पुष्कर ने कहा कि गाँव के खराब पानी के कारण कुपोषण की समस्या बढ़ी है। 2000 आबादी और 1400 मतदाता वाले गाँव में कुपोषित बच्चों की संख्या चिन्ताजनक है। उन्होंने बताया कि हर तरफ से सिस्टम से निराशा ही मिल रही है। चुनाव जीते चार माह हो गए विलेज हेल्थ एंड न्यूट्रीशियन कमेटी का अभी खाता नहीं खुला है। गाँव में पानी टंकी लगनी थी। जमीन चिन्हित कर दे दिया लेकिन अधिकारी चुप हैं।
यहाँ के दीप नरायन तिवारी की बेटी 16 वर्षीय गुड़िया मानसिक मंदित है। तिवारी इसकी वजह आर्सेनिक को ही मानते हैं। गाँव की मुन्नी देवी बतातीं हैं कि उनके परिवार के लोग पेट दर्द से परेशान है। बड़ी बेटी तारा देवी (17) को उन्होंने हॉस्पिटल में दिखाया लेकिन बीमारी खत्म नहीं हुई।
…और खतरे के लाल निशान मिट गए
इस गाँव में 18 वर्ष तक प्रधान रहे अबुल खां ने बताया कि जापानी कम्पनी व एनजीओ ने ग्राम पंचायत के 50 प्रतिशत हैण्डपम्पों के पानी को जाँच में जानलेवा पाया था। हैण्डपम्पों पर लाल निशान लगाए थे और पानी पीने से प्रतिबन्धित किया था लेकिन अभी तक जो बचाव का फिल्टर लगाया है वह देखरेख के अभाव में चल नहीं सका।
कभी जाली खराब हुई और जल निगम को बताया तो उनके अधिकारियों ने यह कहकर हाथ खड़े कर लिये कि इसको दुरुस्त करना हमारा काम नहीं है। हम लोग मजबूर थे क्योंकि खामी दूर करना नहीं जानते। गाँव के 40 वर्षीय भुट्टू खां ने बताया कि मेरे हाथ व पैर में काले निशान बन गए हैं। डॉक्टर इसे आर्सेनिक युक्त पानी वजह बताते हैं।
जहर है गाँव का पानी लेकिन सब खामोश हैं
गाँव के एचवी (लेप्रोसी वर्कर) अभिमन्यु यादव कहते हैं कि मेरे पास काफी गाँव हैं। मैं एक गाँव का डाटा कैसे बता सकता हूँ कि किसको क्या बीमारी है।
नेवादा गाँव का भी कुछ ऐसा ही है हाल
कुछ ऐसा ही हाल नेवादा गाँव का भी है। नेवादा 22 मजरों से मिलकर बना है। यहाँ की आबादी सात हजार है और वोटर चार हजार। करीब सवा चार किमी क्षेत्रफल में बसी ग्राम पंचायत के मजरे बलवापुर की लक्ष्मी ने बताया कि उनके घर के सामने वर्ष 2013 में जापान कम्पनी ने एक जालीदार फिल्टर लगाया था। हैण्डपम्प चलाने पर पानी को पहले फिल्टर में डालना था फिर टोटी के माध्यम से बाहर आये पानी का उपयोग होना था। यह फिल्टर लगने के छः माह बाद खराब हो गया। हमें पानी की जरूरत थी इसलिये हैण्डपम्प को फिल्टर से अलग कर दिया और अब उससे मुर्चा लगा पानी आता है जो बाल्टी में रखने के कुछ देर बाद पीला पड़ जाता है।
यहीं के धनीराम बताते हैं कि उन्होंने सालों से हैण्डपम्पों का पानी पीना बन्द कर दिया और अब कुआँ का पानी पी रहे हैं।
पीला पानी आता है क्या यही आर्सेनिक है
धन्नी का पुरवा के निवासी और लालापुरवा स्थित नेवादा के रसोइयाँ राजाराम मौर्य बताते हैं कि पानी रखने पर पीला हो जाता है लेकिन और कोई उपाय भी तो नहीं है। उन्होंने पूछा कि क्या यही आर्सेनिक है।
अपर माध्यमिक स्कूल नेवादा की हेडमास्टर शिवांगी शर्मा ने बताया कि यहाँ के हैण्डपम्पों के पानी से स्मेल आती है। गला बैठ जाता है। लेकिन मैं अपना पानी बहराइच से थरमस में भरकर लाती हूँ।
जोगी सिंह का पुरवा के शुक्ल वर्मा ने बताया कि उनके 200 लोगों के आबादी के मजरे में फिल्टर ही नहीं लगाया गया है। कोरी का पुरवा की रूपा भी यही बात दोहराती हैं।
जिम्मेदार झाड़ लेते हैं पल्ला
यहाँ की ग्राम प्रधान प्रिया राजेश के पति डॉ. राजेश तिवारी सपा से 2017 के चुनाव के लिये विधायक के कैंडिडेट घोषित हुए हैं। प्रिया राजेश ने बताया कि पूरी ग्राम पंचायत के लोग अशिक्षा के शिकार हैं। एनजीओ ने जो फिल्टर लगाए थे उनसे निकले पानी को प्रयोग करना सम्भव नहीं था। वह यह भी बतातीं हैं कि गाँव में लोग शरीर में दर्द से पीड़ित हैं। अधिकांश लोगों के पैरों में छाले पड़ गए हैं। लेकिन लोग उसे चर्म रोग मानकर किसी को बताते नहीं है। उन्होंने बताया कि आर्सेनिक की समस्या को डीएम व सीडीओ को बताया लेकिन निदान नहीं मिला। जल निगम के अधिकारी यहाँ लगाए गए फिल्टर से खुद का कोई लेना-देना की बात कहकर आज तक देखने नहीं आये।
इसी ग्राम पंचायत के राम गाँव के हेडमास्टर श्याम वीर सिंह कहते हैं कि परिसर में लगे हैण्डपम्प में लाल निशान लगाए गए थे। इस पानी का उपयोग नहीं होना था। फिल्टर के लिये एक टंकी भी लगाई गई जिसमें हैण्डपम्प से पानी भरना था और कुछ देर बाद पानी के साफ होकर बाहर निकलने पर पीना था। लेकिन बच्चे इसका लम्बे समय तक उपयोग अधिक मेहनत लगने के कारण नहीं कर सके।
यहाँ की अनुदेशक सुनीता पाठक ने बताया कि तीन वर्ष से स्कूल में तैनात हैं इसके बाद से उनके दाँत में काले निशान हो गए हैं।
यह कहते हैं डॉक्टर
नेवादा के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में पिछले आठ वर्ष से तैनात चिकित्सक डॉ. प्रदीप सिंह ने बताया कि हम लोग चर्म रोग के एक्सपर्ट नहीं है। न ही कोई शख्स अब तक आर्सेनिक पानी से परेशान होकर यहाँ आया है। हाँ दाना और खुजली की शिकायत लेकर लोग आते रहते हैं जिससे उन्हें वही दवाएँ दे दी जाती है।
त्वचा रोग विशेषज्ञ
जिला चिकित्सालय बहराइच के स्किन रोग विशेषज्ञ डॉ. मुकेश जिन्दल ने बताया कि तीन वर्ष पहले जापान के एनजीओ के बुलावे पर वह गाँव गए थे इंफेक्टेड बताए गए 20 लोगों के बाल आदि लेकर कम्पनी के प्रतिनिधि जापान गए थे लेकिन रिजल्ट के बारे में जानकारी नहीं है।
सीएमओ ने कहा चेक करवाएँगे
डॉ. डीआर सिंह सीएमओ बहराइच ने बताया कि मुझे बताया गया है कि बहराइच के अधिकांश क्षेत्रों का पानी आर्सेनिक युक्त है। चूँकि मैंने अभी एक सप्ताह पहले कार्य भार सम्भाला है। इस इश्यू पर भी सम्बन्धित विभागों से बात करुँगा। जो उपाय किये जाने हैं उनको हर हाल में कराऊँगा।
जिले के आधे गाँवों में आता है आर्सेनिक वॉटर
आरबी राम अधिशाषी अभियन्ता जल निगम बहराइच ने बताया कि बहराइच जिले की 194 ग्राम पंचायत के 523 मजरों के पानी की वर्ष 2013 में परीक्षण हुआ था इसमें 50 फीसदी से अधिक आर्सेनिक तत्व पाए गए थे। 50 पीपीबी (पार्ट पर बिलियन) व उससे अधिक की मात्रा घातक है। उन्होंने बताया कि चेतरा गाँव में वर्ल्ड बैंक से एक पानी टंकी स्थापित होनी है। इसके अलावा नेवादा में गुणता प्रभावित स्कीम के अन्तर्गत पानी टंकी स्थापना की मंजूरी की दिशा में कार्य चल रहा है। यह भी बताया कि चेतरा के हैण्डपम्पों में 20 से 65 प्रतिशत व नेवादा में 63 से 96 प्रतिशत तक के आर्सेनिक तत्व पाए गए थे।
सहायक अभियन्ता जल निगम इकबाल हुसैन ने बताया कि वर्ष 2008 में आर्सेनिक रिमूवल के लिये जापान की यूनिवर्सिटी और एक एनजीओ नेतेजवापुर ब्लाक में सर्वे किया था। इसकी रिपोर्ट विभाग को दी थी। आर्सेनिक रिमूवल के रूप में फिल्टर लगाए थे। यह फिल्टर लगाने के बाद जब से गड़बड़ हुआ तब से कोई आया ही नहीं। जिससे यह फिल्टर लम्बे समय कार्य नहीं कर सका है।
कोई हेल्थ सर्वे नहीं हो रहा
तेजवापुर ब्लाक के पीएचसी अधीक्षक डॉ. अभिषेक अग्निहोत्री ने बताया कि कभी आर्सेनिक के ग्रामीणों पर असर को लेकर प्रशासन स्तर पर रिपोर्ट नहीं माँगी गई, इसलिये अभी ऐसा कुछ करने की जरूरत नहीं समझी गई है।
WHO के मानकों से कई गुना है आर्सेनिक का लेबल
ईको फ्रेंड्स संस्था के राकेश जायसवाल के मुताबिक जापान की यूनिवर्सिटी ऑफ मियाजॉकी और उनकी टीम ने यहाँ के चेत्रा और नेवादा ग्राम पंचायतों में आर्सेनिक की पहचान की थी। यहाँ की सॉइल प्रोफाइलिंग के बाद पता चला कि जिन हैण्डपम्प की सौ फीट से ज्यादा की गहराई पर बोरिंग है उनमें आर्सेनिक की मात्रा 250 पीपीबी तक पाई गई। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक यह मात्रा 10 पीपीबी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
जापान यूनीवर्सिटी के साथ काम करने वाले ईको फ्रेंड्स के राकेश कुमार कहते हैं कि फिल्टर सिस्टम के फेल होने की कई वजहें रहीं। उन्होंने बताया कि लोगों के सहयोग के अलावा सरकार का उदासीन रवैया भी इसका बहुत बड़ा कारण है। वह कहते हैं कि लोगों को पता है कि उनके गाँव में आर्सेनिक वॉटर आ रहा है बावजूद इसके लोग हैण्डपम्प का पानी पी रहे हैं। जिम्मेदार अधिकारियों को पता है कि गाँव में पानी से बड़ी समस्याएँ हो सकती है लेकिन सब-के-सब चुप हैं। राकेश के मुताबिक अगर ऐसे ही इसको नजरअन्दाज किया जाता रहा तो आने वाले वक्त में गम्भीर परिणाम सामने आ सकते हैं। उनका कहना है कि ऐसे हालातों के लिये सरकार की बाकायदा गाइडलाइंस हैं। अगर सरकार उनको ही अपना ले तो बहुत हद तक समस्याओं का निराकरण हो सकता है लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा हैं। हालांकि इलाके में प्रोजेक्ट को पूरा करने वाले राकेश का मानना है कि इससे बहुत हद तक लोगों को फायदा हुआ। लोग जागरुक हुए लेकिन अभी बहुत होना बाकी है। लोगों को चाहिए कि जिम्मेदार अधिकारियों को समय-समय पर अपनी समस्याओं के बावत बात करें। उनके निराकरण के लिये गाँव के समूह बनाए जाएँ।
यह वजहे रहीं फेल होने की
1. फिल्टर का ऑपरेशन और मेंटीनेंस सही ढंग से नहीं हुआ।
2. फिल्टर खराब हो गए तो उसको जिम्मेदार महकमें ने दोबारा दुरुस्त करवाने की जहमत नहीं उठाई।
3. लोगों को यूजर ट्रेनिंग दी गई लेकिन वो कारगर नहीं रही।
4. एक समय के बाद ये फिल्टर चेक होने थे लेकिन हुए ही नहीं।
5. फिल्टर की कुछ तकनीकी खामियाँ भी सामने आई। मसलन, गर्मी में पानी गर्म और ठंड में पानी बहुत ठंडा रहता है। ऐसे में लोगों ने इसका उपयोग करना बन्द कर दिया।
6. हैण्डपम्प चलाकर पहले फिल्टर को भरना पड़ता है। फिर फिल्टर में पानी स्वच्छ होता है। इस प्रक्रिया में वक्त लगता है। लोगों ने इसको ज्यादा वक्त लगना बताया और फिल्टर का उपयोग बन्द कर दिया।
7. गाँव के पढ़े-लिखे और जिम्मेदार लोगों ने लोगों को जागरूक भी नहीं किया। जबकि पानी में आर्सेनिक होने की जानकारी के बाद ऐसे लोगों को यह करने को कहा था। सरकारी स्तर पर भी जागरुक नहीं किया गया।
8. सरकार अगर अपनी ही गाइडलाइंस को फॉलो कर लेता तो शायद ये फिल्टर इन इलाकों में चल रहे होते और लोगों को प्वाइजन्स वाटर पीना न पड़ता।
9. तय हुआ था जिन हैण्डपम्प में आर्सेनिक की मात्रा ज्यादा होगी उनमें लाल रंग का निशान लगाया जाएगा। ऐसा हुआ लेकिन जब उनका रंग उतरा तो दोबारा कलर ही नहीं किया गया। नतीजा हुआ कि लोग बाद में वैसे ही नलों का पानी पीने लगे।
10. गाँवों में हेल्थ कैम्प और जागरुकता शिविर लगाए जाने थे। लगे ही नहीं।
11. लोगों को चाहिए था कि फिल्टर का पानी इकट्ठा करके अपने घरों में घड़े या किसी और बर्तन में रखें लेकिन लोगों ने ऐसा नहीं किया।
12. जिम्मेदार महकमों के साथ गाँव वालों ने भी बहुत सहयोग नहीं किया।
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