महोना गाँव में अधिक आबादी होने के कारण यहाँ तालाबों की संख्या भी अन्य गाँवों की अपेक्षा सबसे ज्यादा है। कहावत है कि यहाँ हर बिरादरी के नाम से उनके मोहल्ले में एक तालाब है जिसमें लोग अपना पानी छोड़ते हैं। हर घर से एक-न-एक तालाब आपको जरूर दिखेगा। गाँव के लोगों के लिये ये गर्व की बात है कि उनका इकतौला ऐसा गाँव है जहाँ पर इतने तालाब हैं। गाँव का हर शख्स इस बात की कोशिश में लगा रहता है कि वह अपनी इस विरासत को बचाए रखे।
जब शहरों से लेकर गाँवों तक तालाबों पर कब्जे हो रहे हैं। उनको बन्द कर कहीं प्लाटिंग तो कहीं मकान बनाए जा रहे हैं। ऐसे दौर में लखनऊ से चन्द किलोमीटर की दूरी पर बसा गाँव महोना एक अलग ही नजीर पेश कर रहा है। इस गाँव में आज भी दो दर्जन से ज्यादा तालाब हैं। जो न सिर्फ बारहों महीने पानी से लबालब भरे रहते हैं बल्कि ये सूखने न पाएँ इसके लिये बाकायदा जिम्मेदारी तक तय की गई है।इस गाँव की खासियत यह है कि यहाँ के हर घर से एक-न-एक तालाब दिखता है। जो इटौंजा से तकरीबन तीन किलोमीटर दूर कुर्सी रोड पर बसा है। तकरीबन चालीस साल पहले इस गाँव को नगर पंचायत का दर्जा मिला था लेकिन सरकारी बदहाली के चलते प्रदेश के इस खूबसूरत तालाबों वाले गाँवों की ओर सरकार की नजरें इनायत नहीं हुई।
इस गाँव के अतीक अली ने बताया कि गाँव में हर मोहल्ले में एक बड़ा तालाब होने के कारण और उसमें साल भर पानी भरे रहने के कारण गाँव का वाटर लेबल मात्र 15 फिट पर है। यही वजह है कि इस पूरे इलाके में खेती भी बेहतर होती है। गाँव के ही जगदीश मौर्या ने बताया कि जितना पुराना महोना का इतिहास है उतना ही पुराना इतिहास यहाँ के तालाबों का है। जगदीश के अनुसार महोना ऐसा गाँव है जहाँ अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी हुए।
गाँव के लोगों के लिये ये गर्व की बात है कि उनका इकतौला ऐसा गाँव है जहाँ पर इतने तालाब हैं। गाँव का हर शख्स इस बात की कोशिश में लगा रहता है कि वह अपनी इस विरासत को बचाए रखे। महोना के दर्जिन टोला निवासी शब्बो ने बताया कि गर्मियों के मौसम में अगर गरीबों का सबसे हमदर्द है तो ये तालाब ही है। शब्बो के अनुसार भीषण गर्मी में जब पक्की दीवालों की गर्मी बर्दाश्त नही होती तब इन तालाबों के किनारे लगे पेड़ों के नीचे चारपाई डालकर जन्नत का मजा मिलता है।
लखनऊ और आस पास के लोग इस गाँव को मायावती के करीबी और बसपा नेता सतीश चंद्र मिश्रा के गाँव के नाम पर जानते हैं लेकिन किसी को इस बात का अन्दाजा नहीं है कि यह गाँव तालाबों की एक विरासत को भी सम्भाले हुए है। गाँव के बिंदादीन कहते हैं कि वह चाहते हैं कि उनका गाँव पर्यटन के नक्शे पर आये लेकिन सरकारी प्रयासों को देखते हुए ऐसा नहीं लगता है कि इस गाँव को यह दर्जा मिल सकेगा। गाँव के लोग जरूर मिलकर अपनी विरासत को सम्भालते हैं। गाँव के ही लोगों को जिम्मेदारी दी गई है कि वह इस पर नजर बनाए रखें, ताकि तालाबों में पानी की कोई कमी न रहे। गाँव के लोग इसको मेहनत के साथ पूरा भी करते हैं।
थोड़ा सुधार हो जाये तो बात बने
गाँव के अजय मिश्र 'बाबा' ने बताया कि गाँव के अन्दर बने तालाबों में नगर पंचायत द्वारा कोई सफाई से जुड़ा कार्य नहीं करवाया जाता। उन्होंने बताया कि अगर नगर पंचायत द्वारा इन तालाबों के चारों तरफ बाउंड्री वाल बनाकर रखा जाये तो और भी सुन्दरता बढ़ जाएगी।
महोना गाँव में अधिक आबादी होने के कारण यहाँ तालाबों की संख्या भी अन्य गाँवों की अपेक्षा सबसे ज्यादा है। कहावत है कि यहाँ हर बिरादरी के नाम से उनके मोहल्ले में एक तालाब है जिसमें लोग अपना पानी छोड़ते हैं। नगर पंचायत अध्यक्ष रेशम देवी का कहना है कि तालाबों के लिये कोई बजट नहीं है। अगर बजट अलग से मिल जाये तो इनका सौन्दर्यीकरण भी हो सकेगा। हमारी कोशिश है कि तालाबों की विरासत को हम बचा सकें।
गोमती का इलाका लेकिन तालाबों की कमी
यह पूरा इलाका गोमती का इलाका कहलाता है। इटौंजा और आस-पास के इलाकों से गोमती नदी तो निकलती है लेकिन कहीं पर पोखर और तालाबों की इतनी संख्या नहीं है। हालांकि इटौंजा के पास में ही एक गाँव है पकड़रिया। कभी इस गाँव के किनारे से गोमती बहा करती थी। बाद में गोमती नदी का रुख मोड़ कर गाँव से कुछ किलोमीटर दूर कर दिया। लेकिन नदी का जो पहले का रास्ता था वहाँ पर अभी भी गोमती का पानी नेचुरल रूप से बहता रहता है।
इस गाँव में भी कुछ तालाब हैं लेकिन गाँव वालों का कहना है कि नदी के प्राकृतिक स्वरूप के छेड़खानी का असर यह हुआ कि अभी भी बरसात के दिनों में यहाँ पर बाढ़ आ जाती है। गाँव के लोग इलाके छोड़ जाते हैं। उसके बाद जब दोबारा बसाए जाते हैं तो कुछ वक्त लग जाता है इनको सेट होने में।
अवैध तालाबों पर कब्जे को लेकर प्रशासन ने फटकार भी लगाई
राजधानी के इलाकों में तालाबों के पाटने पर जिला प्रशासन ने फटकार तब लगाई है, जब कइयों के खिलाफ मामले में भी दर्ज किये गए हैं। लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों की सुस्ती का आलम यह है कि लखनऊ विकास प्राधिकरण जैसे महकमों ने तालाबों को पाटकर लोगों को जमीन दे दी। प्राधिकरण के जनता दरबार में ऐसे आवंटियों ने जब शिकायतें कराईं तो उम्मीद थी कि कुछ कार्रवाई होगी लेकिन अब तक न तो कोई कार्रवाई की गई और न ही कोई कड़ा एक्शन लिया गया।