जलवायु परिवर्तन के दौर में यह स्थिति कभी बढ़ेगी तो कभी घट भी सकती है। अब अनियमित वर्षा को जल संरचनाए ही समेट पायेंगी। यह ध्यान देने योग्य है कि पहाड़ी राज्यों को ढालदार पहाड़ियों पर जल संरचनायें बनाकर धरती में जलधारण क्षमता को भी बढ़ाया जा सकता है। धरती के ऊपर पुराने समय में लोगों ने स्वयं के उपयोग एवं पशुओं के पेयजल के लिए चाल-खाल बनाये थे। इसमें से अब अधिकांश संरचनायें सीमेंटेड हो गयी है। फलस्वरूप इनका पानी सूख गया है। अब ऊपरी ढालदार पहाड़ियों पर उगने वाली चौड़ी पत्तियों के जंगल भी कम हो गये हैं।
चौड़ी पत्ती के जंगलों की कमी के कारण पानी का भण्डार भी प्रभावित हुआ है, लेकिन जंगल और पानी का आपस में एक ऐसा रिश्ता है, जो जमीन को टिकाकर रखते है। और जमीन भी जंगलों और पानी की संरचनाओं को धारण कर रखती है। जमीन के अन्दर नमी भी जंगल और पानी के कारण है। वह भी इसलिए संभव है कि जब ऊपरी ढालदार क्षेत्रों में जलग्रहण संरचनायें (चाल-खाल) मौजूद हो। वहां पर जंगल भी हो, जिसके कारण नीचे बसे गांवों के जलस्रोतों की जलराशि में वृद्धि होगी। इसी को ध्यान में रखते हुए हिमालयी पर्यावरण शिक्षा संस्थान ने जल संरचनाओं को बनाने का बीड़ा उठाया है। मनरेगा में भी यही कोशिश की जानी चाहिये कि चालों का निर्माण जलराशि को बढ़ाने के उद्देश्य से किया जाये। हिमालयी पर्यावरण शिक्षा संस्थान ने जुगुल्डी, पंजियाला, चिणाखोली, धरपुर, चौंडियाट गांव, ल्वरखा, आदि कई गांवों में अब तक 400 तालाब बना दिये हैं। तालाबों का यह अभियान जारी रहेगा।