विनम्र श्रद्धांजलि- (16 फरवरी 2018), डॉ. ध्रुव ज्योति घोष के जाने से ईस्ट कोलकाता वेटलैंड आज अनाथ हो गया।
प्रकृति-पर्यावरण को लेकर कुछ लोगों के काम को देखकर अनायास ही यह ख्याल जेहन में कौंध जाता है कि उनका इस धरती पर आने का उद्देश्य ही यही रहा होगा।
पानी को लेकर काम करने वाले अनुपम मिश्र के बारे में ऐसा ही कहा जा सकता है। कोलकाता में रह रहे एक और शख्स के काम को देखकर यही ख्याल आता है। वह शख्स थे डॉ. ध्रुवज्योति घोष।
शुक्रवार (16 फरवरी 2018) को हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया। वह 71 साल के थे। कुछ समय से उनकी तबियत नासाज थी और वह अस्पताल में भर्ती थे। उनके जाने की खबर जब मुझ तक पहुँची, तो यक-ब-यक उनकी मखमली आवाज मेरे कानों में गूँजने लगी।
ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स को लेकर मैंने कई स्टोरीज लिखी और इस सिलसिले में उनसे कई दफे फोन पर बात हुई। हर बार की बातचीत में वह ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स पर अतिक्रमण के हमले और इस बड़ी आर्द्रभूमि को हो रहे नुकसान पर वह चिन्ता व्यक्त करते।
ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स पर कोई भी स्टोरी उनकी बातचीत के बिना मुकम्मल नहीं होती थी। यही वजह रही कि द गार्जियन ने दो साल पहले उन पर एक वृहत प्रोफाइल स्टोरी की थी।
वह एक साथ इंजीनियर, पर्यावरणविद, मानव विज्ञानी और वेटलैंड्स का चलता-फिरता शब्दकोश थे। उनके साथ काम करने वाली ध्रुवा दासगुप्ता कहती हैं, ‘उनके पास अनुभव का भण्डार था। उनसे सीखने को बहुत कुछ था।’
डॉ घोष इकोलॉजी में पीएचडी थे। यहाँ यह भी बता दें कि वह इकोलॉजी में पीएचडी करने वाले पहले इंजीनियर थे।
उन्होंने राज्य सरकार के पर्यावरण विभाग के मुखिया और नेशनल वेटलैंड कमेटी के सदस्य के बतौर भी कार्य किया था। यही नहीं, वह वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर के बोर्ड ऑफ ट्रस्टी के सदस्य भी रहे व इसके साथ ही इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के साथ भी काम किया।
बहुत कम लोगों को पता होगा कि ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स को यह नाम ध्रुव ज्योति घोष ने ही दिया था। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स कोलकाता शहर के अस्तित्व के लिये कितना जरूरी है, इसका पता पहले पहल उन्होंने लगाया। इस लिहाज से वह इस आर्द्रभूमि के अभिभावक भी थे। इस आर्द्रभूमि की चमत्कारिक प्रकृति की खोज भी उन्होंने ही की थी।
ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स की चमत्कारिक प्रकृति की खोज की कहानी भी बेहद दिलचस्प है जिसका यहाँ जिक्र जरूर किया जाना चाहिए ताकि हम समझ सकें कि ध्रुव ज्योति घोष किस समर्पण के साथ अपने दायित्व को अंजाम दिया था।
यह कोई साल 1981 की बात होगी। वह उस वक्त इंजीनियर थे। उन दिनों न तो सरकार और न ही कोलकाता के आम लोगों को ही पता था कि कोलकाता शहर से निकलने वाला हजारों लीटर गन्दा पानी आखिर जाता कहाँ है।
उन्हीं दिनों ध्रुवज्योति घोष को यह पता लगाने का दायित्व सौंपा गया कि आखिर कोलकाता का गन्दा पानी किस जगह जा रहा है और उसका क्या हो रहा है। इस टास्क को पूरा करने के लिये वह रोज कोलकाता से उस आर्द्रभूमि तक जाते थे, जिसको उस वक्त तक कोई नाम नहीं मिला था।
उन्होंने लम्बे समय तक शोध कर यह पाया कि आर्द्रभूमि में अद्भुत तरीके से प्राकृतिक तौर पर गन्दे पानी का परिशोधन हो जाता है। इसमें आर्द्रभूमि में मौजूद बैक्टीरिया व सूरज की रोशनी का अहम किरदार था। यह तथ्य मिलना था कि डॉ घोष चौंक गए और इस आर्द्रभूमि को न केवल नाम दिया बल्कि इसके संरक्षण का दायित्व भी अपने कंधे पर ले लिया।
उनके शोध के कारण ही दुनिया यह जान सकी कि इस आर्द्रभूमि में प्राकृतिक तरीके से सीवेज के पानी की सफाई हो जाती है और इसके साथ आने वाली गन्दगी मछलियों के भोजन के काम में आती है। इससे पहले इस आर्द्रभूमि की पहचान ऐसी जलाभूमि के रूप में थी जहाँ मछलीपालन किया जाता था।
शोध में उन्हें पता चला था कि आर्द्रभूमि में ऐसी बैक्टीरिया हैं जिनकी मदद से महज 20 दिनों में ही सूरज की रोशनी से गन्दा पानी परिशोधित होकर मछलियों के खाद्य में तब्दील हो जाता है। साथ ही इस पानी का इस्तेमाल फसलों की सिंचाई के लिये भी किया जाता है।
बताया जाता है कि एक मछुआरे ने इस तकनीक की शुरुआत की थी। यह तकरीबन 9 दशक पहले की बात होगी। यह तकनीक इतनी प्रख्यात हुई कि दूसरे मछुआरों ने भी इसे अपनाना शुरू कर दिया। कहते हैं इस तकनीकी से ही प्रभावित होकर उस वक्त इंजीनियर भूपेंद्रनाथ डे ने सीवेज पाइपलाइन का निर्माण किया था और उसे इस आर्द्रभूमि से जोड़ दिया गया था।
सबसे पहले उन्होंने ईस्ट कोलकाता वेटलैड्स का मैप तैयार किया और इसके क्षेत्रफल के बारे में पता लगाया। इसके बाद उन्होंने इसके संरक्षण का काम शुरू किया।
प्रसिद्ध कृषि विज्ञानि एमएस स्वामिनाथन ने 13 साल पहले ध्रुवज्योति घोष के बारे में लिखा था, ‘मेरी नजर में डॉ. घोष कल्याणकारी पारिस्थितिकी के लिये ठीक उसी तरह आन्दोलन चला रहे हैं, जिस तरह प्रो अमर्त्य सेन कल्याणकारी अर्थव्यवस्था के लिये आन्दोलनरत हैं।’
ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स को वह इतने करीब से जानते-समझते थे कि बीबीसी के साथ इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, ‘आप मुझे गरीबी व सूरज की रोशन दीजिए, मैं आपको साफ पानी दूँगा।’
यह उनके प्रयासों का ही परिणाम था कि ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स को 19 अगस्त 2002 को रामसर कनवेंशन में अन्तरराष्ट्रीय महत्त्व के वेटलैंड्स की सूची में शामिल किया गया।
सन 1990 में जब पश्चिम बंगाल में रीयल एस्टेट का कारोबार अपने उफान पर था तो राज्य सरकार ने इस आर्द्रभूमि पर वर्ल्ड ट्रेड सेंटर बनाने का फैसला लिया था। श्री घोष इस फैसले के खिलाफ खड़े हो गए थे और अन्त में मामला कलकत्ता हाईकोर्ट में पहुँचा जहाँ उनकी जीत हुई।
तब से लेकर अब तक वह लगातार ईस्ट कोलकाता वेटलैड्स को संरक्षित रखने के लिये चुपचाप काम करते रहे।
उनके काम के प्रसन्न संयुक्त राष्ट्र ने उन्हें ‘ग्लोबल 500’ अवार्ड से सम्मानित किया था।
उन्होंने समुदाय आधारित वेस्टवाटर ट्रीटमेंट व रियूज की डिजाइन तैयार की थी जिसका इस्तेमाल बाद में केन्द्र सरकार ने गंगा एक्शन प्लान के तहत किया।
डॉ घोष ‘ट्रैश डीगर्स: रीथिंकिंग सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट इन अर्बन इण्डिया’ व ‘ईकोसिस्टम मैनेजमेंट’ नाम की किताबें लिख चुके हैं। उन्होंने कई शोधपत्र भी तैयार किया है।
ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स को लेकर कई पर्यावरण विशेषज्ञों ने हाल ही में एक शोध पत्र तैयार किया था। रिपोर्ट तैयार करने में ध्रुवज्योति घोष भी शामिल थे।
शोध पत्र में बताया गया था कि किस तरह ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स के हिस्सों को पाटकर वहाँ निर्माण कार्य किया जा रहा है।
इस सिलसिले में जब उनसे फोन पर मैंने बात की थी, तो उन्होंने कहा था, ‘जिस तरह से वेटलैंड्स का अतिक्रमण किया जा रहा है, अगर ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो आने वाले 20-25 वर्षों में हम अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुके ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स को खो देंगे और अगर ऐसा होता है, तो हमारा बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा, जिसकी भरपाई कभी नहीं हो पाएगी।’
ध्रुवज्योति घोष का जाना ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स के अभिभावक का जाना है। उनके इस तरह चले जाने से ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स भी आज उदास होगा। उसकी रक्षा के लिये हमेशा दीवार की तरह खड़ा रहने वाला जो चला गया।
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