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जनसत्ता, 22 मार्च 2012

रिपोर्ट के मुताबिक जहां तक भारत का सवाल है यहां दुनिया के मात्र चार फीसद नवीनीकरणीय जल स्रोत हैं जबकि जनसंख्या विश्व की कुल आबादी की 17 फीसद है। राष्ट्रीय जलनीति प्रारूप – 2012 के मुताबिक भारत में 4000 अरब घनमीटर (बीसीएम) वर्षा होती है। इसमें से उपयोग में लाया जाने वाला जल संसाधन लगभग 1123 बीसीएम ही है। भारत के दो तिहाई भूजल भंडार खाली हो चुके हैं और जो बचे हैं वे प्रदूषित होते जा रहे हैं। नदियों का पानी पीने लायक नहीं बचा है।
संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट के मुताबिक कृषि में करीब 70 फीसद जल का उपयोग होत है जिसमें से अमीर देशों में यह उपयोग 44 फीसद और अल्प विकसित देशों में 90 फीसद से ज्यादा है। देश की मौजूदा जल प्रबंधन व्यवस्था की आलोचना करते हुए मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित राजेंद्र सिंह कहते हैं- ‘भारत में जल प्रबंधन और संरक्षण का जो काम है वह नेताओं ठेकेदारों, अफसरों को फायदा पहुंचाने वाला है। जबकि यह समुदाय केंद्रित नहीं है।’
वे कहते हैं कि सरकारें जल की बढ़ती समस्या से वाकिफ हैं। कई अधिकारी हमारे यहां दौरे पर आते हैं और इसे अपनाने की बातें करते हैं। लेकिन वे अब भी समाज को गुमराह करने में लगे हैं। सरकारों को जल की बढ़ती किल्लत को गंभीरता से लेना होगा।