जल संरक्षण, बेकार पानी में कमी, सीवेज शोधन और पौधा रोपण
परमाणु ऊर्जा विभाग के कोटा के परमाणु ऊर्जा के लिए गुरु जल उत्पादन संयंत्र ने अपने पर्यावरणीय दुष्परिणामों में कमी करने के लिए कई कदम उठाए हैं। ये कदम बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह देश का पहला स्वदेशी गुरु जल संयंत्र है। पहले इस संयंत्र में शीतलता के लिए सीएफसी आधारित इकाई लगी थी जिसे बदल दिया गया। नई इकाई जल उत्सर्जन से निकली गर्मी का इस्तेमाल शीतलता के लिए किया जाता है। सीवेज शोधन प्लांट, संयंत्र और आवासीय कॉलोनी में लगाया गया है। पुनर्चक्रण के बाद सीवेज उत्सर्जन का इस्तेमाल बागवानी में किया जा रहा है। संयंत्र में रसायनिक पदार्थ के इस्तेमाल में कमी लाने के लिए कई तकनीकी बदलाव किये गए हैं। हाइड्रोजन सल्फाइड (एच२एस) और अम्लीय तेल जैसे इस्तेमाल हो चुके रसायनों के पुनर्चक्रण की भी व्यवस्था की गई है। परमाणु उद्योग को बॉयलर फीड के रूप में ठंडे उत्सर्जन की आपूर्ति की जा रही है। इसके अलावा कूलिंग टावर के कुछ हिस्सों का इस्तेमाल आग बुझाने में किया जा रहा है। सीलेंट जल का दोबारा इस्तेमाल प्रोसेस फीड ज़रूरतों के लिए किया जा रहा है। इसके अलावा पेड लगाने के अभियान, जल संरक्षण जागरुकता अभियान के साथ-साथ कई अन्य कार्यक्रम भी आयोजित किए गए।
परमाणु ऊर्जा विभाग के कोटा के परमाणु ऊर्जा के लिए गुरु जल उत्पादन संयंत्र ने अपने पर्यावरणीय दुष्परिणामों में कमी करने के लिए कई कदम उठाए हैं। ये कदम बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह देश का पहला स्वदेशी गुरु जल संयंत्र है। पहले इस संयंत्र में शीतलता के लिए सीएफसी आधारित इकाई लगी थी जिसे बदल दिया गया। नई इकाई जल उत्सर्जन से निकली गर्मी का इस्तेमाल शीतलता के लिए किया जाता है। सीवेज शोधन प्लांट, संयंत्र और आवासीय कॉलोनी में लगाया गया है। पुनर्चक्रण के बाद सीवेज उत्सर्जन का इस्तेमाल बागवानी में किया जा रहा है। संयंत्र में रसायनिक पदार्थ के इस्तेमाल में कमी लाने के लिए कई तकनीकी बदलाव किये गए हैं। हाइड्रोजन सल्फाइड (एच२एस) और अम्लीय तेल जैसे इस्तेमाल हो चुके रसायनों के पुनर्चक्रण की भी व्यवस्था की गई है। परमाणु उद्योग को बॉयलर फीड के रूप में ठंडे उत्सर्जन की आपूर्ति की जा रही है। इसके अलावा कूलिंग टावर के कुछ हिस्सों का इस्तेमाल आग बुझाने में किया जा रहा है। सीलेंट जल का दोबारा इस्तेमाल प्रोसेस फीड ज़रूरतों के लिए किया जा रहा है। इसके अलावा पेड लगाने के अभियान, जल संरक्षण जागरुकता अभियान के साथ-साथ कई अन्य कार्यक्रम भी आयोजित किए गए।