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सप्रेस/थर्ड वर्ल्ड नेटवर्क फीचर्स, जनवरी 2015
भूमि हड़पने के अलावा ये कम्पनियाँ भूमि और पानी पर नियंत्रण के माध्यम से गम्भीर पारिस्थितिकीय संकट भी पैदा कर रही हैं। ऊर्जा फ़सलों के कारण क्षेत्र का विकास तो तेजी से हुआ है लेकिन स्थानीय कृषि प्रणाली कमजोर पड़ गई है और उपज में परिवर्तन आने से खाद्य सार्वभौमिकता समाप्त हो गई है। इसके परिणामस्वरूप खाद्य पदार्थों के लिये दूसरे क्षेत्रों पर निर्भर रहने से मूल खाद्य पदार्थाें के मूल्यों में भारी वृद्धि हुई है। वैश्विक जलवायु संकट से मुक्ति के लिये ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी के फार्मूले को व्यापक प्रचारित किया जा रहा है। इसके बावजूद संयुक्त राष्ट्र संघ के अन्तर्गत पिछले 20 वर्षों से हो रहे समझौतों के चलते प्रदूषण के उत्सर्जन में बढ़ोत्तरी हो रही है।
वहीं दूसरी ओर वैश्विक दक्षिण (विकासशील) में जीवश्म (फाजिल) ईंधन बड़ी रफ्तार से निकाला जा रहा है जबकि वैश्विक उत्तर (विकसित) से ऊर्जा के बढ़ते उपभोग को लेकर सवाल जवाब नहीं किये जा रहे हैं। जलवायु समझौतों की एकमात्र उपलब्धि झूठे समाधान भर है।
पर्यावरण संकट से ‘निपटने’ के लिये ऐसा ही एक झूठा समाधान जैव ईंधन (बायोफ्यूल) के नाम से सामने आया है। इसे विश्व भर में इन तर्कों के आधार पर प्रोत्साहित किया जा रहा है कि यह ऊर्जा संकट और ईंधन की कमी से निपटने का एक ‘टिकाऊ’ माध्यम है, इससे ग्रीन हाउस गैसों में कमी आती है और यह विश्व भर के ग्रामीण समुदायों विशेषकर उष्णकटिबन्धीय देशों एवं वैश्विक दक्षिण को विकास के अवसर प्रदान करता है।
इसके अलावा कोलम्बिया में जैव ईंधन को सार्वजनिक नीतियों के तंत्र, कृषि व्यापार (एग्रीबिजनेस) के पक्ष में सब्सिडी एवं कर छूट और हाइड्रोकार्बन (पेट्रोल आदि) में अनिवार्य मिलावट (ब्लेंडिग) के माध्यम से प्रोत्साहित किया जा रहा है।
कोलम्बिया में कृषि ईंधन (एग्रोफ्यूल) को पाम एवं गन्ने की एकल खेती के विस्तार से प्रोत्साहित किया जा रहा है। कुछ इलाकों में तो एक दशक में ही इनका उत्पादन क्षेत्र दुगना हो गया है और इस वजह से कोलम्बिया लेटिन अमेरिका में जैव ईंधन का दूसरा सबसे बड़ा निर्माता बन गया है।
सन् 2014 में तो कोलम्बिया में जैसे गन्ने की खेती का विस्फोट सा हो गया और इसके अन्तर्गत 2,30,000 हेक्टेयर का क्षेत्र आ गया। इसमें से 45000 हेक्टेयर एथनाल के लिये आबंटित हुआ जिससे कि प्रतिदिन 1.145 मिलियन (करीब 1.1 करोड़) लीटर एथनाल तैयार होता था। इसके अतिरिक्त 470000 हेक्टेयर में आइल पाम का रोपण किया गया।
इसमें से 2,90,000 हेक्टेयर क्षेत्र उत्पादन हेतु तैयार हो गया है और इससे अन्य उत्पादों के अलावा करीब 1.5 मिलियन (15 लाख) लीटर एग्रोडीजल तैयार होता है।
सन 2012 में खनिज एवं ऊर्जा और कृषि मंत्रालयों ने घोषणा की थी कि अगले 10 वर्षों में 3 करोड़ हेक्टेयर में ऊर्जा फसल लगाने का लक्ष्य है। इसमें से 1 करोड़ हेक्टेयर एथनाल के निर्माण हेतु कच्चा माल तैयार करने एवं बीस लाख हेक्टेयर एग्रोडीजल हेतु कृषि उत्पाद में इस्तेमाल किया जाएगा।
उम्मीद है इस कृषि-उद्योग मॉडल को आगामी वर्षों में और भी बढ़ाया जाएगा। हालांकि कोलंबिया के क़ानूनों में भूमि की खरीदी की अधिकतम सीमा तय है। इसकी वजह है भूमि वर्ग विशेष के पास इकट्ठा न हो पाये और अपने सामाजिक सरोकारों को संरक्षित बनाए रखना। लेकिन कृषि व्यापार की वृद्धि में भूमि हड़प का प्रमुख योगदान है।
पेसिफिक रुबिअलेस, मानुइलिटा, रिओपैला-केस्टीला, इंडुपाल्मा, बायोएनर्जी-ईकोपेट्रोल जैसी तमाम बड़ी कम्पनियों ने अवैधानिक गतिविधियों के माध्यम से आल्टिल्लनुआरा क्षेत्र (पूर्वी मैदानी क्षेत्र) में 10 लाख हेक्टेयर ज़मीन हथिया ली है।
इन कम्पनियों में सबसे ज्यादा नुकसान बायोएनर्जी नामक कम्पनी पहुँचा रही है जो कि गन्ने के साथ-ही-साथ रबड़ का रोपण भी करती है। इसके अलावा यहाँ पर ला-फाझेण्डा जैसे अन्य क्षेत्रों में ढेरों प्रसंस्करण संयंत्र हैं। इस इलाके में अब गाएँ दिखती ही नहीं, केवल बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण और छुट्टा-मुट्टा चावल का क्षेत्र दिखाई देता है। इस ‘प्रगति’ के चलते नदियाँ तो पहले ही प्रदूषित हो चुकी हैं।
भूमि हड़पने के अलावा ये कम्पनियाँ भूमि और पानी पर नियंत्रण के माध्यम से गम्भीर पारिस्थितिकीय संकट भी पैदा कर रही हैं। ऊर्जा फ़सलों के कारण क्षेत्र का विकास तो तेजी से हुआ है लेकिन स्थानीय कृषि प्रणाली कमजोर पड़ गई है और उपज में परिवर्तन आने से खाद्य सार्वभौमिकता समाप्त हो गई है।
इसके परिणामस्वरूप खाद्य पदार्थों के लिये दूसरे क्षेत्रों पर निर्भर रहने से मूल खाद्य पदार्थाें के मूल्यों में भारी वृद्धि हुई है। सूखे की वजह से पाम के क्षेत्र में पानी के नियंत्रण को लेकर हो रहे विवाद का असर स्थानीय समुदायों पर पड़ रहा है।
अन्तरराष्ट्रीय ऊर्जा समिति के अनुमानों को ठीक मानें तो सन 2030 तक ऊर्जा के कुल बाजार में जैव ईंधन की हिस्सेदारी 4 प्रतिशत तक हो जाएगी। इसी के साथ खाद्य उत्पादन के लिये भूमि की कमी और बड़ी मात्रा में वनों का एवं जैवविविधता के विनाश भी हमारे सामने आएँगे।
गम्भीर पर्यावरणीय विश्लेषण बताते हैं कि यातायात प्रणाली में हेतु बड़े पैमाने पर बायोमास को प्रोत्साहन देना दक्षिण में (विकासशील देशों) कृषि व्यापार बढ़ाने की नीति का हिस्सा है। ग़ौरतलब है भीमकाय बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ इस हेतु बीज, कीटनाशक आदि उपलब्ध कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
जाहिर सी बात है इस रणनीति का क्रियान्वयन कृषि एवं पर्यावरणीय सीमाओं का उल्लंघन, क्षेत्रों पर कब्ज़ा एवं समुदायों और संस्कृति की लूट, भूमि की हड़प एवं कीटनाशक तथा पानी को प्रदूषित कर एकल कृषि को स्थापित कर, स्थानीय प्रजातियों के पारिस्थितिकीय चक्र एवं रहवास में बाधा डालकर तथा भूमि उपयोग एवं दृश्यबन्ध में परिवर्तन कर किया जा सकता है।
इसकी वजह से पदार्थ एवं ऊर्जा का प्रवाह अनेक स्थानों से होने लगता है जिसके कि नकारात्मक सामाजिक एवं पर्यावरणीय प्रभाव पड़ते हैं। अतएव विशिष्ट क्षेत्र पर गम्भीर परिणाम डालने के साथ-ही-साथ कृषि ईंधन वनों के विनाश और भूमि के उपयोग में परिवर्तन के कारण ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन का कारण भी बनता है।
वे पर्यावरणीय समझौते के अन्तर्गत उत्सर्जन में कमी का अपना दायित्त्व पूरा नहीं करते और जलवायु संकट के किसी भी समाधान पर नहीं पहुँचते।
झूठे समाधान वैश्विक पर्यावरणीय संकट के वास्तविक विकल्पों से ध्यान हटाने का एक रास्ता है इसका सही रास्ता पेट्रोल की लत के शिकार समाज के रूपान्तरण, कारों के उपयोग में विश्वव्यापी कमी, ऊर्जा का अत्यधिक इस्तेमाल करने वाले वैश्विक उत्तर से सवाल-जवाब एवं वैश्विक उत्सर्जन को लेकर उसकी ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी से निकलता है।
दुर्भाग्य से संयुक्त राष्ट्र संघ के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में इसकी झलक नहीं दिखाई दी। वास्तविक समाधान तो कहीं और पाये जा रहे हैं और इन्हें तमाम तरीकों से अभिव्यक्त भी किया जा रहा है। इन्हें समुदायों, सामाजिक आन्दोलनों, प्रचार अभियानों, संगठनों व पर्यावरणविदों एवं छात्रों के बीच पाया जा सकता है।
ये सब स्थानीय कृषि प्रणाली, खाद्य एवं ऊर्जा सार्वभौमिकता, समुदाय एवं जल प्रबन्धन तथा वनों के माध्यम से पर्यावरणीय संकट के समाधान खोज रहे हैं। इसी के माध्यम से हम एक ऐसे विश्व को प्राप्त कर सकते हैं जो अधिक न्यायपूर्ण और आनन्द देने वाला होगा। ऐेसे प्रस्ताव लगातार सामने आएँगे और मानवता की बेहतरी के लिये कार्य करते रहेंगे भले ही जलवायु समझौते अपने झूठे समाधानों की रट लगाते रहें।
वहीं दूसरी ओर वैश्विक दक्षिण (विकासशील) में जीवश्म (फाजिल) ईंधन बड़ी रफ्तार से निकाला जा रहा है जबकि वैश्विक उत्तर (विकसित) से ऊर्जा के बढ़ते उपभोग को लेकर सवाल जवाब नहीं किये जा रहे हैं। जलवायु समझौतों की एकमात्र उपलब्धि झूठे समाधान भर है।
पर्यावरण संकट से ‘निपटने’ के लिये ऐसा ही एक झूठा समाधान जैव ईंधन (बायोफ्यूल) के नाम से सामने आया है। इसे विश्व भर में इन तर्कों के आधार पर प्रोत्साहित किया जा रहा है कि यह ऊर्जा संकट और ईंधन की कमी से निपटने का एक ‘टिकाऊ’ माध्यम है, इससे ग्रीन हाउस गैसों में कमी आती है और यह विश्व भर के ग्रामीण समुदायों विशेषकर उष्णकटिबन्धीय देशों एवं वैश्विक दक्षिण को विकास के अवसर प्रदान करता है।
इसके अलावा कोलम्बिया में जैव ईंधन को सार्वजनिक नीतियों के तंत्र, कृषि व्यापार (एग्रीबिजनेस) के पक्ष में सब्सिडी एवं कर छूट और हाइड्रोकार्बन (पेट्रोल आदि) में अनिवार्य मिलावट (ब्लेंडिग) के माध्यम से प्रोत्साहित किया जा रहा है।
कोलम्बिया में कृषि ईंधन (एग्रोफ्यूल) को पाम एवं गन्ने की एकल खेती के विस्तार से प्रोत्साहित किया जा रहा है। कुछ इलाकों में तो एक दशक में ही इनका उत्पादन क्षेत्र दुगना हो गया है और इस वजह से कोलम्बिया लेटिन अमेरिका में जैव ईंधन का दूसरा सबसे बड़ा निर्माता बन गया है।
सन् 2014 में तो कोलम्बिया में जैसे गन्ने की खेती का विस्फोट सा हो गया और इसके अन्तर्गत 2,30,000 हेक्टेयर का क्षेत्र आ गया। इसमें से 45000 हेक्टेयर एथनाल के लिये आबंटित हुआ जिससे कि प्रतिदिन 1.145 मिलियन (करीब 1.1 करोड़) लीटर एथनाल तैयार होता था। इसके अतिरिक्त 470000 हेक्टेयर में आइल पाम का रोपण किया गया।
इसमें से 2,90,000 हेक्टेयर क्षेत्र उत्पादन हेतु तैयार हो गया है और इससे अन्य उत्पादों के अलावा करीब 1.5 मिलियन (15 लाख) लीटर एग्रोडीजल तैयार होता है।
सन 2012 में खनिज एवं ऊर्जा और कृषि मंत्रालयों ने घोषणा की थी कि अगले 10 वर्षों में 3 करोड़ हेक्टेयर में ऊर्जा फसल लगाने का लक्ष्य है। इसमें से 1 करोड़ हेक्टेयर एथनाल के निर्माण हेतु कच्चा माल तैयार करने एवं बीस लाख हेक्टेयर एग्रोडीजल हेतु कृषि उत्पाद में इस्तेमाल किया जाएगा।
उम्मीद है इस कृषि-उद्योग मॉडल को आगामी वर्षों में और भी बढ़ाया जाएगा। हालांकि कोलंबिया के क़ानूनों में भूमि की खरीदी की अधिकतम सीमा तय है। इसकी वजह है भूमि वर्ग विशेष के पास इकट्ठा न हो पाये और अपने सामाजिक सरोकारों को संरक्षित बनाए रखना। लेकिन कृषि व्यापार की वृद्धि में भूमि हड़प का प्रमुख योगदान है।
पेसिफिक रुबिअलेस, मानुइलिटा, रिओपैला-केस्टीला, इंडुपाल्मा, बायोएनर्जी-ईकोपेट्रोल जैसी तमाम बड़ी कम्पनियों ने अवैधानिक गतिविधियों के माध्यम से आल्टिल्लनुआरा क्षेत्र (पूर्वी मैदानी क्षेत्र) में 10 लाख हेक्टेयर ज़मीन हथिया ली है।
इन कम्पनियों में सबसे ज्यादा नुकसान बायोएनर्जी नामक कम्पनी पहुँचा रही है जो कि गन्ने के साथ-ही-साथ रबड़ का रोपण भी करती है। इसके अलावा यहाँ पर ला-फाझेण्डा जैसे अन्य क्षेत्रों में ढेरों प्रसंस्करण संयंत्र हैं। इस इलाके में अब गाएँ दिखती ही नहीं, केवल बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण और छुट्टा-मुट्टा चावल का क्षेत्र दिखाई देता है। इस ‘प्रगति’ के चलते नदियाँ तो पहले ही प्रदूषित हो चुकी हैं।
भूमि हड़पने के अलावा ये कम्पनियाँ भूमि और पानी पर नियंत्रण के माध्यम से गम्भीर पारिस्थितिकीय संकट भी पैदा कर रही हैं। ऊर्जा फ़सलों के कारण क्षेत्र का विकास तो तेजी से हुआ है लेकिन स्थानीय कृषि प्रणाली कमजोर पड़ गई है और उपज में परिवर्तन आने से खाद्य सार्वभौमिकता समाप्त हो गई है।
इसके परिणामस्वरूप खाद्य पदार्थों के लिये दूसरे क्षेत्रों पर निर्भर रहने से मूल खाद्य पदार्थाें के मूल्यों में भारी वृद्धि हुई है। सूखे की वजह से पाम के क्षेत्र में पानी के नियंत्रण को लेकर हो रहे विवाद का असर स्थानीय समुदायों पर पड़ रहा है।
अन्तरराष्ट्रीय ऊर्जा समिति के अनुमानों को ठीक मानें तो सन 2030 तक ऊर्जा के कुल बाजार में जैव ईंधन की हिस्सेदारी 4 प्रतिशत तक हो जाएगी। इसी के साथ खाद्य उत्पादन के लिये भूमि की कमी और बड़ी मात्रा में वनों का एवं जैवविविधता के विनाश भी हमारे सामने आएँगे।
गम्भीर पर्यावरणीय विश्लेषण बताते हैं कि यातायात प्रणाली में हेतु बड़े पैमाने पर बायोमास को प्रोत्साहन देना दक्षिण में (विकासशील देशों) कृषि व्यापार बढ़ाने की नीति का हिस्सा है। ग़ौरतलब है भीमकाय बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ इस हेतु बीज, कीटनाशक आदि उपलब्ध कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
जाहिर सी बात है इस रणनीति का क्रियान्वयन कृषि एवं पर्यावरणीय सीमाओं का उल्लंघन, क्षेत्रों पर कब्ज़ा एवं समुदायों और संस्कृति की लूट, भूमि की हड़प एवं कीटनाशक तथा पानी को प्रदूषित कर एकल कृषि को स्थापित कर, स्थानीय प्रजातियों के पारिस्थितिकीय चक्र एवं रहवास में बाधा डालकर तथा भूमि उपयोग एवं दृश्यबन्ध में परिवर्तन कर किया जा सकता है।
इसकी वजह से पदार्थ एवं ऊर्जा का प्रवाह अनेक स्थानों से होने लगता है जिसके कि नकारात्मक सामाजिक एवं पर्यावरणीय प्रभाव पड़ते हैं। अतएव विशिष्ट क्षेत्र पर गम्भीर परिणाम डालने के साथ-ही-साथ कृषि ईंधन वनों के विनाश और भूमि के उपयोग में परिवर्तन के कारण ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन का कारण भी बनता है।
वे पर्यावरणीय समझौते के अन्तर्गत उत्सर्जन में कमी का अपना दायित्त्व पूरा नहीं करते और जलवायु संकट के किसी भी समाधान पर नहीं पहुँचते।
झूठे समाधान वैश्विक पर्यावरणीय संकट के वास्तविक विकल्पों से ध्यान हटाने का एक रास्ता है इसका सही रास्ता पेट्रोल की लत के शिकार समाज के रूपान्तरण, कारों के उपयोग में विश्वव्यापी कमी, ऊर्जा का अत्यधिक इस्तेमाल करने वाले वैश्विक उत्तर से सवाल-जवाब एवं वैश्विक उत्सर्जन को लेकर उसकी ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी से निकलता है।
दुर्भाग्य से संयुक्त राष्ट्र संघ के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में इसकी झलक नहीं दिखाई दी। वास्तविक समाधान तो कहीं और पाये जा रहे हैं और इन्हें तमाम तरीकों से अभिव्यक्त भी किया जा रहा है। इन्हें समुदायों, सामाजिक आन्दोलनों, प्रचार अभियानों, संगठनों व पर्यावरणविदों एवं छात्रों के बीच पाया जा सकता है।
ये सब स्थानीय कृषि प्रणाली, खाद्य एवं ऊर्जा सार्वभौमिकता, समुदाय एवं जल प्रबन्धन तथा वनों के माध्यम से पर्यावरणीय संकट के समाधान खोज रहे हैं। इसी के माध्यम से हम एक ऐसे विश्व को प्राप्त कर सकते हैं जो अधिक न्यायपूर्ण और आनन्द देने वाला होगा। ऐेसे प्रस्ताव लगातार सामने आएँगे और मानवता की बेहतरी के लिये कार्य करते रहेंगे भले ही जलवायु समझौते अपने झूठे समाधानों की रट लगाते रहें।