जल संस्कृति को बचाना होगा

Submitted by editorial on Sat, 06/09/2018 - 15:52
Source
कादम्बिनी, मई, 2018

एक तरफ हम जल को देवता मानकर उसकी पूजा करते हैं, तो दूसरी तरफ इस देवता का निरादर करने में किसी भी तरह पीछे नहीं रहते हैं। कारण व्यक्ति हो या बाजार, हर कोई अपनी-अपनी तरह से इस कुकृत्य में शामिल है। आज जरूरत है कि हम जल के प्रति अपने संस्कार और संस्कृति को पुनर्जीवित करें

पानी के बिना मनुष्य जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। जन्म से लेकर मृत्यु तक पानी का हमारे जीवन में बहुत बड़ा स्थान है, बल्कि कह सकते हैं कि पानी ही उसकी धुरी है। हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि पानी में ही सारे देवता रहते हैं। इसीलिये जब कोई धार्मिक अनुष्ठान होता है, तो सबसे पहले कलश यात्रा निकलती है।

हम किसी पवित्र सरोवर या जलाशय में जाते हैं और वहाँ से अपने कलश में जल भरकर ले आते हैं। चूँकि जल में हमारे सभी देवता बसते हैं इसलिये हम उसकी पूजा करते हैं और फिर उसी जलाशय में उसका विसर्जन कर देते हैं। इस तरह व्यष्टि को समष्टि में मिला देते हैं। अमरकोश में पानी के कई नाम गिनाये गये हैं। उसमें पानी के लिये एक नाम जीवन भी है। जीवन जलम।

अब सवाल यह है कि पानी जो हमारी संस्कृति में इतना अहम स्थान रखता रहा है, उसकी इतनी दुर्दशा क्यों हो रही है? कारण दैवीय और आसुरी शक्तियों के संघर्ष में छिपा है। यह संघर्ष सनातन है। कभी एक पक्ष की शक्ति बढ़ती है, कभी दूसरे की। जो जल संरक्षण के लोग हैं वे दैवीय शक्ति के लोग हैं। दूसरी तरफ आसुरी शक्तियाँ हैं जो जल को नष्ट करने का स्वाभाविक रूप से प्रयास करती रहती हैं।

जब हम पूजा में बैठते हैं, तो सबसे पहले कलश में जल की उपासना करते हैं और गंगा, यमुना, सरस्वती का आह्वान करते हैं कि वे कलश में आकर विराजमान हों। इस समय हम एक मंत्र पढ़ते हैं जिसमें सभी नदियों, जलाशय और समुद्र का आह्वान करते हैं कि वे इस कलश में विराजें और देवी पूजा में सहायक हों।

जब हम ऐसा करते हैं तो हमें इस बात का भी एहसास होता है कि देवी पूजा के लिये जिस जल का हम आह्वान कर रहे हैं, उसे प्रदूषणमुक्त बनाना भी हमारा कर्तव्य है। अन्यथा प्रदूषित पानी कलश में आएगा और हमें उसी से देवी की पूजा करनी पड़ेगी। हम मानते हैं कि पानी में दो प्रकार की शक्ति है। एक तो वह भौतिक मैल को धोता है।

दूसरा उसमें अभौतिक मैल धोने की भी शक्ति है। वह मन का मैल भी धोता है, लेकिन यह दुर्भाग्य है कि अब पानी का भविष्य बहुत खराब नजर आ रहा है। पानी कम होता जा रहा है और प्रदूषित हो रहा है। चूँकि पानी सबसे जरूरी चीज है और उसकी कमी हो रही है। ऐसे में व्यापारी इसमें अपना लाभ देख रहे हैं।

हमारे गुरुजी बताते थे कि एक बार वे राजस्थान में रेलगाड़ी से यात्रा कर रहे थे तो, एक पानी बेचने वाला लड़का ट्रेन में चढ़ा। वह ‘पानी ले लो, पानी ले लो’, कह रहा था। वहीं एक सेठ बैठा था। उसने पूछा कि- ‘कितने का पानी है?’ लड़के ने कहा, ‘एक रुपये का।’ सेठ बोला, ‘एक गिलास पानी एक रुपये का, भाग यहाँ से।’ लड़का मुस्कुराकर आगे बढ़ गया। गुरुजी ने सोचा कि इसका पानी तो बिका नहीं, फिर भी वह मुस्कुराकर आगे क्यों बढ़ा? गुरुजी ने इस बारे में जब लड़के से पूछा तो लड़के ने कहा कि- “मैं इसलिये मुस्कुराया, क्योंकि सेठ को प्यास नहीं थी। अगर प्यास होती तो एक रुपये का पानी वह दस रुपये में भी खरीदता।”

इस बात को अब व्यापारी जान गये हैं कि पानी को प्रदूषित कर दिया जाए, तो उसका व्यापार किया जा सकता है। दो-ढाई साल पहले हमने एक प्रयोग किया। हमने एक गिलास में गटर का पानी भरा। दूसरे गिलास में साफ पानी भरा और मेज पर एक चम्मच रख दिया, फिर दिनभर जो भी हमसे मिलने आता, उससे हम कहते कि- “गटर के पानी से एक चम्मच पानी लेकर साफ पानी में डाल दो।” अधिकांश लोगों ने ऐसा नहीं किया और हमसे पूछा कि- “साफ पानी में गन्दा पानी डालने को क्यों कह रहे हैं?”

कहने का मतलब यह है कि हर आदमी यह समझता है कि साफ पानी को गन्दा नहीं करना चाहिए। फिर हमने सोचा कि जब सब इस बात को जानते हैं कि साफ पानी में गन्दा पानी नहीं मिलाना चाहिए, तो म्यूनिसिपैलिटी वाले ऐसा नाला क्यों बनाते हैं जिसका गन्दा पानी हमारा साफ नदियों में आकर मिल जाता है? बाद में एक व्यक्ति ने बताया कि- “पानी को गन्दा करने के लिये बड़े-बड़े लोग, बड़ी-बड़ी आसुरी शक्तियाँ लगी हैं और वे चाहती हैं कि हमारे देश का पानी गन्दा हो जाए।” इसी तरह ट्यूबवेल बनाकर हमारे कुओं को सुखा दिया गया। पानी प्रदूषित हो गया, तो बोतलबन्द पानी का बाजार बढ़ गया।

अब तो डॉक्टर तक कहते हैं कि बोतलबन्द पानी ही पीजिए। बोतलबन्द पानी को अब जीवन स्तर और हैसियत से भी जोड़ दिया गया है, इसीलिये एक बोतल पानी हजार रुपये का भी मिल रहा है, सौ और बीस रुपये का भी। जहाँ तक जल-संरक्षण को लेकर सरकारी प्रयासों की बात है, तो एक बात तो साफ है कि चुनाव लड़ने के लिये पैसा चाहिए। सत्ता में आने और सत्ता में बने रहने के लिये भी पैसा चाहिए। यह पैसा भ्रष्टाचार से आता है। पानी के मामले में भी सरकारें उन्हीं प्रोजेक्ट को मंजूरी देती हैं जिनमें पैसा हो।

जितनी भी योजनाएँ पानी को लेकर बनी हैं, उन सबमें जबर्दस्त भ्रष्टाचार हुआ है। सन्त समाज शुरू से पानी के महत्त्व को समझता रहा है। हर मन्दिर में पुजारी आचमनी से चार बूँद पानी सबको जरूर देता है, ताकि लोग पानी का महत्त्व समझें। लेकिन अब सन्त समाज को भी राजसत्ता की बीमारी लग गई है। जो सन्त पहले राजा को उसकी गलती पर निर्देश दिया करता था, अब वह राजा का मंत्री बनता है, तो वह कैसे राजा की गलती बताएगा?

ऐसे में जल-संरक्षण के लिये लोगों को किसी से उम्मीद नहीं करनी चाहिए, बल्कि खुद आगे आना चाहिए। हमारे शास्त्रों में कुआँ खुदवाने, तालाब बनाने को स्वर्ग की सीट पक्का होना बताया गया है। हमें खुद व आने वाली पीढ़ियों के लिये जल-संरक्षण के काम को बढ़ाना होगा। धन-दौलत, गाड़ी-बंगला किसी काम नहीं आएगा। अगर जल ही न बचा तो।

(शंकराचार्य प्रतिनिधि- ज्योतिष पीठ)