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बाँधों के विशाल जलाशयों की गाद को कुदरती तरीके से निकाला जा सकता है। यह चमत्कार भी नहीं है। यह सुनकर या पढ़कर भले ही अटपटा लगे पर यह सम्भव है। चीन ने इसे बिना मानवीय श्रम या धन खर्च किये, कर दिखाया है। यह किसी भी देश में हो सकता है। भारत में भी ऐसा हो सकता है।
परिणाम पाने के लिये बरसात के चरित्र, जलस्रोत से पानी निकालने वाली व्यवस्था के इंजीनियरिंग पक्ष जैसे कुछ पहलुओं को ध्यान में रखने की आवश्यकता है।
जलाशय के लबालब भरने और गाद निकालने के साथ-साथ बारिश के टाइम-टेबल अर्थात मौसम विभाग की भविष्यवाणियों पर भी पूरा-पूरा ध्यान देना होगा। इस काम का सामाजिक और आर्थिक पक्ष भी है। जलाशय में पानी की उपलब्धता का असर किसान की माली हालत और कृषि उत्पादन पर पड़ता है।
दैनिक भास्कर (भोपाल संस्करण, 30 जून, 2016, पेज 14) में बाँध से गाद को निकालने के प्राकृतिक तरीके के बारे में समाचार छपा है। समाचार का लब्बोलुआब यह है कि चीन की यलो नदी मिट्टी और गाद से भरी हुई है। हैनान में यलो नदी पर शियाओलेंगडी बाँध बना है।
समाचार में बताया है कि बुधवार को शियाओलेंगडी बाँध के गेट खोले गए। हर साल बारिश के मौसम में गेट खोले जाते हैं। इसे देखने के लिये हजारों पर्यटक एकत्रित होते हैं। गेट खोलने से गाद मिला पानी बाहर आता है।
जलाशय की गाद को यथाशक्ति कम करता है। यह आशा की किरण है। जलाशय से अधिक-से-अधिक गाद कैसे निकले और उसका टाइम-टेबिल क्या हो, तकनीकी लोग बैठकर तय कर सकते हैं। सारी प्रक्रिया को यथाशक्ति निरापद बना सकते हैं।
यह अभिनव प्रयोग है। कुदरती है। हानिरहित है। पानी की गुणवत्ता को ठीक करने वाला है। इस विधि में बाढ़ के साथ आने वाली और बाँध में जमा गाद का कुछ हिस्सा बिना कुछ धन खर्च किये निकाला जा सकता है। यह नदी की कुदरती जिम्मेदारी को पूरा करता वैज्ञानिक तरीका है। इसी तरीके से नदियाँ, हर साल करोड़ो टन सिल्ट, चुपचाप समुद्र में पहुँचा देती हैं।
इस सिद्धान्त में कोई खोट या तकनीकी कमी नहीं है। इस तरीके को अपनाने से जलाशय में जमा गन्दगी कम होती है। गाद के निपटान में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं आती। बचाए मानव श्रम, ऊर्जा और धन को अन्य उत्पादक कामों में लगाया जा सकता है। विकास की योजना संचालित की जा सकती है। उपर्युक्त कारणों से चीन का अभिनव प्रयोग नजरे इनायत की अपेक्षा करता है।
पुराने समय में भारत में, बहुत सारे तालाबों का निर्माण हुआ था। कुछ तालाब हजार साल से भी अधिक पुराने हैं। विभिन्न कारणों से अधिकांश पुराने तालाब में गाद भर गई है। गाद भर जाने के कारण वे आंशिक या पूरी तरह अनुपयोगी हो गए हैं। उनके अलावा देश में बहुत बड़ी मात्रा में बाँधों, स्टापडैमों और तालाबों का निर्माण हुआ है।
अनुमान है कि अकेले मनरेगा की ही मदद से देश में 123 लाख जल संरचनाएँ बनी हैं। विभिन्न कारणों से उन सभी सतही जलस्रोतों में बड़ी मात्रा में गाद जमा हो रही है। गाद जमा होने के कारण, उनकी जलक्षमता और उम्र घट रही है। कुछ छोटे तथा मंझोले सतही जलस्रोत तथा स्टापडैम गाद से पटकर लगभग अनुपयोगी हो गए हैं।
भारत में ग्रामीण तालाबों से गाद निकालने की पुरानी परम्परा रही है। उस गाद का उपयोग घर की मरम्मत तथा खेतों को उपजाऊ बनाने में किया जाता था। अंग्रेजों के भारत में काबिज होने के बाद, समाज द्वारा स्वेच्छा से गाद निकालने की परम्परा घटी। धीरे-धीरे तालाब, गाद जमाव के शिकार होने लगे। अब, लोगों का ध्यान उनकी ओर गया है।
गाद निकालने के काम को धीरे-धीरे वरीयता मिल रही है। उसके लिये प्रयास प्रारम्भ हो गए हैं। यह काम मजदूर लगाकर या मशीनों की मदद से होने भी लगा है। अनुभव बताता है कि मौजूदा तरीका खर्चीला और अस्थायी है। इसके बावजूद देश के अनेक इलाकों में तालाबों से गाद निकालने के काम को किया जा रहा है।
तेलंगाना में इसे मिशन मोड में मिशन काकतीय का नाम देकर किया जा रहा है। इस मिशन के अन्तर्गत 45000 तालाबों को पुनः जीवित किया जाएगा। इस काम पर 20,000 करोड़ खर्च होने का अनुमान है। गौरतलब है कि तेलंगाना में काकतीय राजाओं द्वारा बनवाए बहुत सारे तालाब हैं।
भारत में ग्रामीण तालाबों से गाद निकालने की पुरानी परम्परा रही है। उस गाद का उपयोग घर की मरम्मत तथा खेतों को उपजाऊ बनाने में किया जाता था। अंग्रेजों के भारत में काबिज होने के बाद, समाज द्वारा स्वेच्छा से गाद निकालने की परम्परा घटी। धीरे-धीरे तालाब, गाद जमाव के शिकार होने लगे। अब, लोगों का ध्यान उनकी ओर गया है। गाद निकालने के काम को धीरे-धीरे वरीयता मिल रही है। उसके लिये प्रयास प्रारम्भ हो गए हैं। यह काम मजदूर लगाकर या मशीनों की मदद से होने भी लगा है। टाइम्स आफ इण्डिया की 31 मई, 2016 को छपी रिपोर्ट के अनुसार 2.8 करोड़ ट्रैक्टर फेरों द्वारा 7.3 करोड़ घन मीटर सिल्ट निकाली जा चुकी है। सरकार ने काकतीय योजना को दिये जाने वाले दान में आयकर की छूट घोषित की है। इस अभियान को भारत सरकार के नीति आयोग ने बहुत अच्छी पहल माना है। अखबार कहता है कि यह मिशन धीरे-धीरे समाज का कार्यक्रम बन रहा है। लोग स्वेच्छा से जुड़ रहे हैं। यथाशक्ति दान दे रहे हैं।
चीन का प्रयोग अभिनव है। उसे भारत में भी आजमाया जा सकता है। बड़े जलाशयों में माकूल डिजाइन के अभाव में गाद निकासी का काम कठिन हो सकता है। यदि उसे सिद्धान्ततः मान्यता मिलती है तो भी, जल निकासी की मौजूदा व्यवस्था के आगे जाकर, प्रस्तावित तकनीकी पक्ष पर पर्याप्त चिन्तन मनन आवश्यक होगा। गाद की भरपूर निकासी के लिये कुछ नया करना पड़े।
जलाशय के पानी के स्टाक का आवश्यकता से तालमेल बिठाकर ही यह काम करना होगा। चीन की नजीर और जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली तेज बारिश की सम्भावना के कारण यह सुझाव विचार योग्य लगता है। जहाँ तक पुराने परम्परागत तालाबों और ग्रामीण इलाकों में बने छोटे-छोटे तालाबों का प्रश्न है तो उन्हें आसानी से गादमुक्त कराया जा सकता है। उनमें लगने वाली इंजीनियरिंग आसान है। यही उचित समय भी है। इस कारण सारा मामला समाज की इच्छाशक्ति का है।
कई बार गाद निपटान समस्या बनता है। यह समस्या उसकी विशाल मात्रा या गलत निपटान के कारण भी होता है। उसके अवैज्ञानिक निपटान के कारण वह एक दो बरसात के बाद तालाब में वापिस आ जाती है। उस पर किया खर्च बेकार चला जाता है। विभिन्न कारणों से कुछ इलाकों के तालाबों की गाद में हानिकारक रसायनों, भारी धातुओं और गन्दगी की मौजूदगी की सम्भावना होती है।
ऐसी गाद से खेतों की मिट्टी की गुणवत्ता खराब होती है। उत्पादों में हानिकारक रसायनों के अंश मिलने के कारण वे मानवीय सेहत के लिये ठीक नहीं होते। इन सारी सम्भावनाओं को ध्यान में रखकर कहा जा सकता है कि चीन का प्रयोग काफी हद तक अनुकरणीय है। इसे आजमाया जाना चाहिए।