झारी भर नर्मदा

Submitted by birendrakrgupta on Fri, 07/25/2014 - 16:40
Source
नया ज्ञानोदय, अंक 136, जून 2014
वर्षों पूर्व जुहू के समन्दर में
नहाया था पहली बार
तब नमकीन हथेलियों से
पल्लर पल्लर सहलाते हुए
पूछा था सागर ने कि-
मुझमें नहाने के पहले कहां
सेनहा कर आया हूं मैं

तब मैंने अपनी नर्मदा में
डुबकियां लगाकर बम्बई आने
काबताया था उसे
जिसे सुनते ही
रेत तक मेरा बदन पोंछता
ले आया जुहू का सागर प्यार से बाहर

और बोला-
पहली बार महसूस किया
मेरी खारी जुबान ने कि
कोई अनूठा स्वाद भी है पृथ्वी पर

जब लौटा वहां से तो
चौपाटी तक छोड़ने आया सागर
और लौटते हुए आग्रह करता गया
कि जब भी आओ यहां
झारी भर नर्मदा जरूर लेते आना मेरे लिए

मैं तो असीम होकर भी
सीमित हूं
वरना मैं ही चलता.......तक
मीठा जल पीने
और नहाने तुम्हारे साथ!!

कवि, आलोचक व लेखक।