उल्लेखनीय है कि पिछले लगभग दो माह से बिहार के कुछ प्रबुद्ध जनों द्वारा प्रदेश की पांच नदियों (भागलपुर में चम्पा, पूर्णिया में साऊरा, चम्पारण में धनौती, रोहतास में काव और नवादा में काव नदी) पर नदी चेतना यात्रा के लिए होमवर्क चल रहा है। यह होमवर्क रोज सबेरे 8.30 पर प्रांरंभ होता है और आधा घंटे से लेकर एक घंटे तक चलता है। इस दौरान सारे लोग नदी पर अपनी समझ को परिमार्जित तथा परिष्कृत करने के साथ-साथ समाज के नदी से सम्बन्ध को समझने का प्रयास करते हैं। पंकज मालवीय जो मूलतः पत्रकार हैं, इस अभियान के संयोजक हैं। यह अभियान पानी रे पानी अभियान जो 2014 से चल रहा है, का हिस्सा है।
आज दिनांक 25 जुलाई 2020 को समाज की दैनिक चर्चा में भारत सरकार के जलशक्ति मंत्रालय के डायरेक्टर जनरल राजीव रंजन मिश्र ने शिरकत की। बैठक में उनकी शिरकत ने सबको कस्तूरी की सुगंध का अहसास कराया। हम सब जानते हैं कि कस्तूरी की सुगंध को फैलने या फैलाने के लिए व्यक्ति या अभियान या साथियों को मार्केटिंग की आवश्यकता नहीं होती। वह स्वाभाविक रुप से वातावरण में फैलकर अपनी उपस्थिति का अहसास कराती है जबकि मुलम्मा चढ़ा मार्केटिंग का जलवा कुछ दिनों में चमक खो देता है। परिणाम - समाज अपने को ठगा अनुभव करता है।
नदी चेतना यात्रा की बैठक में जलशक्ति मंत्रालय के डायरेक्टर जनरल की शिरकत और उनकी प्रस्तुति ने आज लगभग यही सन्देश दिया कि कस्तुरी की सुगंध फैल रही है। वह सुगंध दिल्ली तक पहुँच चुकी है। लोगों को लुभा रही है। सुगंध का फैलाव, नदी चेतना यात्रा की सामाजिक ग्राह्यता और नदियों की अविरलता तथा निर्मलता के प्रति समाज के आग्रह का स्पष्ट संकेत है। वह जनअभियान का आकार ले रहा है। कुछ लोगों को लग सकता है कि यह यात्रा परम्पराओं तथा पर्यावरण को बिसराए समाज की घर वापसी का अभियान है। यह अभियान तकनीक प्रेम और विकास की मौजूदा अवधारणा को पुनःपरिभाषित करने और उचित मार्ग पकड़ने की जद्दोजहद की कोशिश भी हो सकती है। सभी जानते हैं कि पर्यावरणीय मुद्दों की अभिव्यक्ति विद्वानों की गोष्ठियों के स्थान पर समाज की स्वीकार्यता से ही रेखांकित होती है। समाज की स्वीकार्यता में ही इतिहास और भूगोल, को बदलने की ताकत होती है।
आज की बैठक में भारत सरकार के जलशक्ति मंत्रालय के डायरेक्टर जनरल ने राज, समाज और नदी पुनर्जीवन के मुद्दे से पूरी स्पष्टता और विस्तार से लम्बी चर्चा की। उनका वक्तव्य अनुभवों का निचोड था जिसमें उन्होंने अठारहवीं सदी में अंग्रेजों द्वारा विकसित गंगा केनाल सिस्टम के उल्लेख के बाद नदी को जीवन्त सिस्टम मानने और सात आई.आईटी. की रिपोर्ट का उल्लेख किया। गंगा की निर्मलता को बहाल करने के प्रयास में अलग-अलग अजेन्डा पर काम करने वाले विभागों की भूमिका की भी विस्तार से चर्चा की। प्रयासों के केन्द्र में नदी को गंदगी मुक्त बनाने पर ही ध्यान देने की बात कही। गाद और आजीविका की चर्चा की। गंगा की निर्मलता के लिए अलग-अलग राज्यों में बनाये जाने वाले ‘एसटीपी’ का भी जिक्र किया। उन्होंने भविष्य में एस.टी.पी. को चलाने के लिए किए जाने वाले नीतिगत बदलावों से भी प्रतिभागियों को अवगत कराया। उन्होंने गंगा के पर्यावरणीय प्रवाह को सुनिश्चित करने की जानकारी दी। उसे और आगे तक बिठाने तथा छोटी नदियों तक ज्ञात करने की आवश्यकता भी प्रतिपादित की। खेती में सुधार, नदियों के आसपास उचित किस्म के वृक्षों के रोपण की भी चर्चा की। भूजल के बढ़ते दोहन और उसके नदियों के प्रवाह पर पड़ने वाले कुप्रभाव का भी उल्लेख किया। छोटी नदियों पर ध्यान देने की बात भी कही। जिला स्तर पर बनने वाली कमेटियों का भी उल्लेख किया। संक्षेप में, जलशक्ति मंत्रालय के डायरेक्टर जनरल ने उस हर महत्वपूर्ण बिंदु को छुआ जो राज, समाज और नदी पुनर्जीवन का अविभाज्य अंग है एवं सरकार की सोच और कार्यक्रमों का आईना है। आईए अब कुछ चर्चा करें नदी चेतना यात्रा के होमवर्क से उपजे बिन्दुओं की।
पहला बिन्दु है बरसात बाद बिहार की छोटी नदियों के प्रवाह के कम होने तथा सूखने का मामला। यह मामला साल -दर -साल लगातार बढ़ रहा है। चर्चा से स्पष्ट हो रहा है कि यदि छोटी नदी पानी देना चालू रखे तो बडी नदी कभी भी नहीं सूख सकती। दूसरा बिन्दु जो लगातार स्पष्ट हो रहा है कि यदि नदी के कछार में भूजल दोहन को लक्ष्मण रेखा पार नहीं करने दिया जाए तो कछार की मुख्य नदी, पोखर, चापाकल या कुआ कभी नहीं सूखेगा। यदि वे संरचनायें जिन्दा रहती हैं तो नदी की अविरलता, निर्मलता, वायोडायवर्सिटी या उसका पर्यावरणीय प्रवाह कभी भी समस्या नहीं बन सकता। चर्चा में यह भी लगातार स्पष्ट हो रहा है कि केवल मुख्य नदी की एक समस्या को ठीक करने से नदी तंत्र कभी भी ठीक नहीं हो सकता। अर्थात अधूरा इलाज कभी भी कारगर नही होगा। वह आई.सी.यू. में ही ले जाता है। अर्थात केवल एस.टी.पी. बनाने से काम नहीं चलेगा। पूरे नदी तंत्र को समग्रता में देखना और समझना होगा। व्हिजन विकसित करना होगा।
दैनिक चर्चा में लगभग रोज ही समाज और राज की भूमिका की बात सामने आती है। धीरे-धीरे स्पष्ट हो रहा है कि समाज को अपनी और सरकार को अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करना होगा। उनकी जिम्मेदारियाँ अलग-अलग हैं। अर्थात उनकी जिम्मदारियों का निर्धारण आवश्यक है। सरकार उन कामों को करेगी जिससे अविरलता और निर्मलता सुनिश्चित होती है। समाज पानी के उपयोग में समझदारी दिखावेगा। अर्थात समाज को जितनी चादर उतना पैर पसारने के सिद्धान्त पर काम करना होगा। अपने- अपने दायित्वों का निर्वहन ही राज और समाज की जिम्मेदारी है। एक बात और जो तीन सीजन की नदी चेतना यात्रा से उभर सकती है - वह है रोडमेप के स्थान पर पहले दृष्टिबोध या व्हिजन तैयार करना और उसके बाद प्रत्येक नदी काी विशिष्टता के आधार पर रोडमेप अर्थात हस्तक्षेप या काम तय करना। नदी के कुदरती पर्यावरण की सीमा में रहकर नदी को अविरल तथा निर्मल रखना। उपर्युक्त समझ के आधार पर कहा जा सकता है कि-
- छोटी नदियों के प्रवाह की बहाली द्वारा ही बडी नदी के प्रवाह में वृद्धि की जा सकती है।
- छोटी नदियों की निर्मलता की बहाली द्वारा ही बडी नदी की गन्दगी को कम किया जा सकता है।
- गन्दगी का प्रतिशत घटाकर वायोडायवर्सिटी और पर्यावरणी प्रवाह पर सकरात्मक असर डालना संभव है। हरियाली को बढ़ाया जा सकता है। आजीविका तथा खेती को बेहतर बनाया जा सकता है। और भी लाभ सुनिश्चित किए जा सकते हैं।
अन्त में, भूजल के दोहन के मामले में गंगा का कछार संवेदनशील है। यदि भूजल दोहन लक्ष्मण रेखा पार करता है तो समाज को आर्सेनिक की त्रासदी भोगना पड सकता है। इसके संकेत भी दिखने लगे हैं। इसलिए बिहार में भूजल के दोहन को नियंत्रण में रखना होगा। भूजल को नियंत्रण में रखने का अर्थ है नदियों को सूखने से बचाए रखना। गंगा के गैर-मानसूनी प्रवाह में वृद्धि। समाज की सेहत को यथासंभव ठीक रखना। संवाद का सबक है नदियों की समस्याओं को समग्रता में देखना और फिर उसके उपचारों के रोडमेप पर पूरे कछार की हर समस्या पर काम करना। यह समाज का नजरिया है।