नदी के समग्र सर्वेक्षण हेतु नागरिक पहल

Submitted by Editorial Team on Mon, 10/19/2020 - 12:06

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लोगों का एक तबका, नदियों के साल दर साल कम होते गैर-मानसूनी प्रवाह, उनके प्रदूषित होने और कछार के बिगड़ते पर्यावरण को लेकर काफी अरसे से चिंतित है। यह सही है कि अनेक जगह नदी की गन्दगी को ठीक करने के लिए सीवर ट्रीटमेंट प्लान्ट लगाए जा रहे हैं, पर गैर-मानसूनी प्रवाह बहाली के लिए लगभग कुछ नहीं हो रहा है। वस्तुस्थिति यह है कि गंगा सहित देश की सभी नदियों का प्रदूषण घटने के स्थान पर बढ़ रहा है तथा देश की लगभग हर नदी का गैर-मानसूनी प्रवाह कम हो रहा है। इस कारण कछार में जिस संकट की संभावना हर दिन बलवती हो रही है, उसके कारण जीवन की मूलभूत आवष्यकताओं पर जो प्रभाव पड़ेगा वह अकल्पनीय है। यह भी सही है कि उपर्यक्त पर्यावरणी कारकों की अनदेखी के कारण कुछ लोगों ने अपने स्तर पर अनुकरणीय प्रयास भी प्रारंभ किए हैं पर लगातार गंभीर होती समस्या के आकार को देखते हुए वे नाकाफी हैं। यह भी देखने में आया है कि अनेक जगह सही निदान की जानकारी के अभाव के कारण सतही प्रयास भी हो रहे हैं। कुछ लोग नदी की तली को खोद कर पानी दिखा रहे हैं तो कुछ लोग स्टाप-डेमों की श्रंखला बनाकर नदी के जिन्दा होने का भ्रम पैदा कर रहे हैं। लेखक का मानना है कि इस कमी को दूर करने और अपने नागरिक दायित्वों की पूर्ति के लिए देश भर में नदी मित्रों द्वारा नदी के समग्र सर्वेक्षण हेतु नागरिक पहल हो। नागरिक पहल की मदद से नदी और उसके घर-परिवार अर्थात नदी कछार की बेहतरी का समाज सम्मत अभिमत पेश हो। उसे सरकार के साथ साझा किया जाए। उसे योजना का हिस्सा बनाया जाए। विदित है कि कछार की बेहतरी का अर्थ है कछार में रहने वाले लोगों और कुदरती संसाधनों की बेहतरी और समाज का निरापद कल। इस हेतु जो नागरिक पहल की जाना चाहिए उसका रोडमेप निम्नानुसार हो सकता है।


नदी और उसकी समस्याओं के सर्वे के लिए सबसे पहले भारत सरकार के नेशनल वाटरशेड एटलस की पांचवी इकाई की मुख्य नदी का चयन होना चाहिए। उसी के उद्धार के लिए पहल होनी चाहिए। समाज को उसकी तकनीकी पहचान अर्थात कोड नम्बर से परिचित कराना चाहिए। यह काम नदी मित्रों द्वारा किया जा सकता है। नदी के चयन के साथ ही उसकी और उसके कछार की प्रमुख जानकारी से लोगों को परिचित कराने के लिए नदी चेतना यात्रा निकाली जाना चाहिए। समस्याओं को समझने के लिए कछार के कुछ नक्षों (टोपोशीट, नदी तंत्र, ढ़ाल, भूमि उपयोग और भूवैज्ञानिक नक्शा) इन नक्शों की मदद से जल संचय, भूजल रीचार्ज, मिट्टी का कटाव कम करने तथा हरियाली बढ़ाने प्रयासों के लिए मौटी-मौटी जानकारी मिल जाती है। उस जानकारी को कछार के लोगों से साझा किया जाना चाहिए और सुझावों के लिए आधार तैयार किया जाना चाहिए।  
लोगों की भागीदारी से बरसात, शीत ऋतु और ग्रीष्म ऋतु में नदी के उदगम से प्रारंभ कर संगम तक सर्वेक्षण किया जाना चाहिए। सर्वेक्षण को प्रमाणिक बनाने के लिए संवेदनशील स्थानों की समुद्र की सतह से ऊँचाई. और उसके अक्षांश देशांश ज्ञात करना चाहिए। उल्लेखनीय है कि यह जानकारी जी.पी.एस स्टेटस एप द्वारा आसानी से प्राप्त की जा सकती है। यह एप मोबाईल के प्लेस्टोर पर उपलब्ध है। कछार की सालाना औसत वर्षा और जलवायु की जानकारी कृषि विभाग या जल संसाधन विभाग से प्राप्त की जा सकती है। कछार में आने वाले गांवों की मूलभूत जानकारी सांख्यिकी विभाग या उस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों, ऐजेन्सियों या पटवारी से मिल सकती है। इस जानकारी का उपयोग सुझावों को अंतिम रुप देने में किया जा सकता है। 

मुख्य नदी सहायक नदियों के सूखने और प्रदूषित होने की जानकारी को जुटाने के लिए उनके उदगम से लेकर बड़ी नदी से संगम तक के पानी के प्रवाह की स्थिति और जल-शुद्धता की स्थिति को देखा और परखा जाना चाहिए। यह काम तीनों मौसम में किए जाने वाले सर्वे से पता चलेगी। इस सर्वे से वन क्षेत्र और राजस्व क्षेत्र में आने वाले कछार में हरियाली, प्रवाह और प्रदूषण की स्थिति ज्ञात होगी। प्रदूषण के कारणों और उसके कारण होने वाली बीमारियों के बारे में संकेत मिलेंगे। नदी के पानी के घटते उपयोग के बारे में जानकारी मिलेगी। नागरिक पहल और विचार मन्थन के कारण मुख्य नदी और सहायक नदियों के प्रवाह बढ़ाने और प्रदूषण कम करने बावत समाज के व्यावहारिक सुझाव मिलेंगे। इन सुझावों का संकलन वन क्षेत्र और राजस्व क्षेत्र के लिए अलग अलग किया जाना उपयोगी होगा। 

मुख्य नदी सहायक नदियों के सूखने और प्रदूषित होने की जानकारी को जुटाने के लिए उनके उदगम से लेकर बड़ी नदी से संगम तक के पानी के प्रवाह की स्थिति और जल-शुद्धता की स्थिति को देखा और परखा जाना चाहिए। यह काम तीनों मौसम में किए जाने वाले सर्वे से पता चलेगी। इस सर्वे से वन क्षेत्र और राजस्व क्षेत्र में आने वाले कछार में हरियाली, प्रवाह और प्रदूषण की स्थिति ज्ञात होगी। प्रदूषण के कारणों और उसके कारण होने वाली बीमारियों के बारे में संकेत मिलेंगे। नदी के पानी के घटते उपयोग के बारे में जानकारी मिलेगी।

जल स्त्रोतों की मौजूदा जानकारी से नदी कछार में जल संचय तथा रीचार्ज के बारे में मोटी-मोटी जानकारी मिलेगी। वहीं भूजल वैज्ञानिकों से वाटरटेबिल एक्वीफर की मौजूदगी और पानी की गुणवत्ता, कुओं तथा नलकूपों का योगदान, कछार के विकास खंडों में भूजल की स्थिति (कुल रीचार्ज, दोहन की मात्रा, स्टेज आफ डेव्लपमेंट और सालाना विकास वृद्धि की मात्रा) ज्ञात हो सकेगी। भूजल रीचार्ज के लिए उपयुक्त संभावित क्षेत्रों की जानकारी मिल सकेगी। वन विभाग और राजस्व विभाग से नदी कछार के वन क्षेत्र और राजस्व क्षेत्र की हरियाली, भूमि कटाव और पानी की उपलब्धता की स्थिति ज्ञात हो सकेगी। उनकी वृद्धि के लिए किए जाने वाले प्रयासों की जानकारी, नागरिक पहल आधारित रणनीति का मार्ग प्रषस्त करेगी। वन क्षेत्र में पानी की स्थिति को जानने का अर्थ है, भविष्य की प्लानिंग में मदद और जलवायु बदलाव के संदर्भ में पानी की कमी को दूर करने हेतु उपयोगी पहल तथा आगे के काम का रोडमेप बनाने में आसानी। ऐसा करते समय जल स्त्रोतों की बेहतरी एवं रीचार्ज तथा भूमि कटाव के लिए किए जाने वाले पुराने प्रयासों की समीक्षा आवश्यक है। इस समीक्षा से कम उपयोगी या अनावश्यक कामों के स्थान पर सही कामों को प्राथमिकता मिलती है। वन क्षेत्र में वन्य जीवों और जैवविविधता को फलने-फूलने का अवसर मिलता है। वन क्षेत्र की आबादी की आजीविका को सम्बल मिलता है। वन में कार्यरत कमेटियाँ मजबूत होती हैं। वहीं राजस्व क्षेत्र में पर्यावरणी परिस्थितियाँ बेहतर होती हैं। जल संकट कम होता है। उत्पादन बढ़ता है तथा नदियों के गैर-मानसूनी प्रवाह में बढ़ोत्तरी होती है। प्रदूषण कम होता है। कछार निरापद होने लगता है।


नागरिक पहल का उजला पक्ष भी है। उसे मानवीय हस्तक्षेप और उसके परिणाम की वास्तविक जानकारी मिलती है। सोचने-समझने का अवसर मिलता है। उसके कारण मानवीय हस्तक्षेपों यथा स्टाप डेमों, सडकों, पुलों, बैराजों के निर्माण, नई बसाहटों, पुरानी बसाहटों के विस्तार, जल स्रोतों पर अतिक्रमण. कारखानों तथा उद्योगों की स्थापना, रेत खनन इत्यादि में विसंगतियों को नकारने और पर्यावरण हितैषी विकास का मार्ग प्रशस्त होता है। कछार के घरेलू, कल-कारखानों, उद्योगों इत्यादि के प्रदूषित पानी और ठोस अपशिष्टों के निपटारे में समाज के व्यावहारिक सुझावों पर अमल की संभावना बनती है। समाज की समझदारी बढ़ती है। बेहतर कामों का मार्ग प्रशस्त होता है। मनमानी कम होती है। 


उपरोक्त विवरण नदी पर काम करने वाले लोगों को कुछ तकनीकी तथा व्यावहारिक सुझाव देता है। कामों में पारदर्शिता को बढ़ाता है और नदी के समग्र सर्वेक्षण हेतु नागरिक पहल की आवश्यकता को बखूबी रेखांकित करता है। ध्यान आकर्षित करता है।