-देवकरण सैनी
जयपुर-अजमेर राजमार्ग पर दूदू से 25 किलोमीटर की दूरी पर राजस्थान के सूखाग्रस्त इलाके का एक गांव है - लापोड़िया। यह गांव ग्रामवासियों के सामुहिक प्रयास की बदौलत आशा की किरणें बिखेर रहा है। इसने अपने वर्षों से बंजर पड़े भू-भाग को तीन तालाबों (देव सागर, फूल सागर और अन्न सागर) के निर्माण से जल-संरक्षण, भूमि-संरक्षण और गौ-संरक्षण का अनूठा प्रयोग किया है।
इतना ही नहीं, ग्रामवासियों ने अपनी सामूहिक बौद्धिक और शारीरिक शक्ति को पहचाना और उसका उपयोग गांव की समस्याओं का समाधान निकालने में किया। आज गोचर का प्रसाद बांटता यह गांव दूसरे गांवों को प्रेरणा देने एवं आदर्श प्रस्तुत करने की स्थिति में आ गया है। 1977 में अपनी स्कूली पढ़ाई के दौरान गांव का एक नवयुवक लक्ष्मण सिंह गर्मियों की छुट्टियां बिताने जयपुर शहर से जब गांव आया तो वहां अकाल पड़ा हुआ था। उसने ग्रामवासियों को पीने के पानी के लिए दूर-दूर तक भटकते व तरसते देखा। तब उसने गांव के युवाओं की एक टीम तैयार की, नाम रखा, ग्राम विकास नवयुवक मंडल, लापोड़िया। शुरूआत में जब वह अपने एक-दो मित्रों के साथ गांव के पुराने तालाब की मरम्मत करने में जुटा तो बुजुर्ग लोग साथ नहीं आए। बुजुर्गों के इस असहयोग के कारण उसे गांव छोड़कर जाना पड़ा। कुछ वर्षों बाद जब वह वापस गांव लौटा तो इस बार उसने अपने पुराने अधूरे काम को फिर से शुरू करने के लिए अपनी टीम के साथ दृढ़ निश्चय किया कि अब कुछ भी करना पडे पर पीछे नहीं हटेंगे। कुछ दिनों तक उसने अकेले काम किया।
उसके काम, लगन और मेहनत से प्रभावित होकर एक के बाद एक गांव के युवा, बुजुर्ग, बच्चे और महिलाएं उससे जुड़ते चले गए। देव सागर की मरम्मत में सफलता मिलने के बाद तो सभी गांव वालों ने देवसागर की पाल पर हाथ में रोली मोली लेकर तालाब और गोचर की रखवाली करने की शपथ ली। इसके बाद फूल सागर और अन्न सागर की मरम्मत का काम पूरा किया गया। उन्हें गोचर की सार संभाल करने, खेतों में पानी का प्रबंध करने, सिंचाई कर नमी फैलाने का अनुभव तो पीढ़ियों से था किन्तु इस बार उन्होंने पानी को रोकने और इसमें घास, झाड़ियां, पेड़-पौधे पनपाने के लिए चौका विधि का नया प्रयोग किया। इससे भूमि में पानी रुका और खेतों की बरसों की प्यास बुझी। इसके बाद भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए विलायती बबूल हटाने का देशी अभियान चलाया गया।
उनकी वर्षों की कठोर तपस्या पूरी हुई थी। पहले स्त्रियों को रोजाना रात को दो बजे उठकर पानी की व्यवस्था के लिए घर से निकलना पड़ता था। उनका अधिकांश समय इसी काम में व्यर्थ हो जाता था। किन्तु अब तालाबों में लबालब पानी भरने से पीने के पानी की समस्या से तो निजात मिली ही, क्षेत्र में गोचर, पशुपालन और खेती-बाड़ी का धन्धा भी विकसित होने लगा। गांव वालों ने उजड़ चुके गोचर को फिर से हरा-भरा करने का संकल्प लिया। अब तक गांव वालों को अपनी क्षमता पर भरोसा हो चला था। गांव का नक्शा बनाकर चौका पद्धति से पेड़ (विशेषकर देशी बबूल और कैर) लगाकर पानी का सम्पूर्ण उपयोग किया गया। एक समय सूखाग्रस्त रहे इस गांव को सभी के सम्मिलित प्रयास ने ऊर्जा ग्राम में बदल दिया। इसके बाद भूमि सुधार कर मिट्टी को उपजाऊ बनाया गया और गांव के बहुत बड़े क्षेत्र को चारागाह के रूप में विकसित किया गया। आज इस गोचर में गांव के सभी पशु चरते हैं। उधर गोपालन से दुग्ध व्यवसाय अच्छा चल पड़ा। परिवार के उपयोग के बाद बचे दूध को जयपुर सरस डेयरी को बेचा गया, जिससे अतिरिक्त आय हुई। इससे कितने ही परिवार जुड़े और आज स्थिति यह है कि 2000 की जनसंख्या वाला यह गांव प्रतिदिन 1600 लीटर दूध सरस डेयरी को उपलब्ध करा रहा है। इस वर्ष 34 लाख रूपए का दूध सरस डेयरी को बेचा गया। जब भूख-प्यास मिटी तो लोगों का धयान शिक्षा व स्वास्थ्य की ओर भी गया। पिछले छ: वर्षों से आस-पास के गांव अकाल जैसी स्थिति से जुझ रहे हैं, किन्तु लापोड़िया में अन्न सागर से सिंचित फसल अकाल को हर बार झुठला देती है।
ग्रामीण विकास नवयुवक मंडल को अपने कार्यों के संचालन के लिए देशी-विदेशी विभिन्न स्रोतों से अब तक 3 करोड़ 10 लाख 54 हजार चार सौ सत्तावन रूपये प्राप्त हो चुके हैं जिसमें से लगभग आधा (1 करोड़ 54 लाख, 14 हजार पांच सौ उनहत्तर रूपये) विदेशी संस्थाओं से मिला है। गांव की प्रेरणा से आस-पास के गांवों के युवक काम देखने लापोडिया आए और लापोडिया के कुछ कार्यकर्ता दूसरी जगहों पर गए और लोगों के साथ अपने अनुभवों को आदान प्रदान किया। परिणामस्वरूप आज ग्रामीण विकास नवयुवक मण्डल का काम पाली, टोंक, जयपुर, दौसा, अलवर और नागौर सहित 400 से भी अधिक गांवों में चल रहा है और निरंतर प्रगति पर है।
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