मानसून का बदलता मिजाज

Submitted by Hindi on Tue, 06/16/2015 - 09:03
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डेलीन्यूज एक्टिविस्ट, 16 जून 2015

देश में इस साल सूखा पड़ने की कोई सम्भावना नहीं है। मौसम वैज्ञानिकों के नए पूर्वानुमानों के अनुसार खूब वर्षा होगी। कई क्षेत्रों में सामान्य से अधिक तो कुछ में कम वर्षा हो सकती है। मौसम विभाग ने देश में सामान्य से कम 88 फीसदी मानसून की सम्भावना व्यक्त की है। लेकिन स्काइमेट के अनुसार, देशवासियों को आशंकित होने की जरूरत नहीं। मानसून इस वर्ष सामान्य रहने की उम्मीद है...

देश में इस साल सूखा पड़ने की कोई सम्भावना नहीं है। मौसम वैज्ञानिकों के नए पूर्वानुमानों के अनुसार खूब वर्षा होगी। कई क्षेत्रों में सामान्य से अधिक तो कुछ में कम वर्षा हो सकती है। भारत में दो तरह की हवाएँ अलग-अलग समय पर मानसून लाती हैं। एक जून के आस-पास अरब महासागर और हिन्द महासागर से चलने वाली दक्षिण पश्चिमी हवाएँ केरल में बारिश करती हैं। आगे बढ़कर यह हवाएँ दो दिशाओं में बँट जाती हैं। बंगाल की खाड़ी से होती हुई यह हवाएँ कोलकाता के नीचे मुड़कर दक्षिण पूर्वी हवाओं में बदल जाती हैं। केरल में बारिश दक्षिण पश्चिमी हवाओं के कारण होती है, जबकि बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश में बारिश दक्षिण पूर्वी हवाओं के चलते होती है।

उधर अमेरिकी एजेन्सी एक्यूवेदर के अनुसार, 2015 में गर्मियों के दौरान भारत में तूफान हलचल मचाते रहेंगे। अलनीनो का भी असर रहेगा। अलनीनो फैक्टर समुद्र तल के तापमान को सामान्य से थोड़ा ज्यादा गर्म कर देता है, जिसका नतीजा आखिरकार औसत से अधिक तूफान के रूप में सामने आता है। यह अलनीनो इंपैक्ट कितना मजबूत होता है, इसी पर यह निर्भर करता है कि दक्षिण और पूर्वी एशिया पर इसका प्रभाव कितना गम्भीर होगा। औसत से अधिक संख्या में तूफान आना तो एक बात है, इसके अलावा यह भी अपेक्षित है कि ये तूफान ज्यादा दूर तक असर दिखाएँगे।

इनमें से कुछ तूफान फिलीपींस और जापान से पूर्व की ओर मुड़ जाएँगे। इन तूफानों का परिणाम भारतीय उपमहाद्वीप में भूस्खलन के रूप में भी दिख सकते हैं। जिससे बड़े पैमाने पर बाढ़ और जान-माल का नुकसान झेलना पड़ सकता है। यूरोपीय कमीशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत कृषि योग्य भूमि के मामले में संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश है।

यह धान, गेहूँ और गन्ने का प्रमुख उत्पादक है। इस क्षेत्र में थोड़ी-बहुत बारिश तो होगी, लेकिन सूखे का व्यापक असर रहेगा। जिससे मध्य भारत और पाकिस्तान के अधिकांश हिस्सों में खेती प्रभावित होगी। मगर असल सवाल है कि सूखा कितना गम्भीर होगा। यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि हिन्द महासागर के पश्चिमी हिस्से में पानी का तापमान कैसा रहता है। जैसी अपेक्षा है, वैसा ही तापमान रहा तो सूखे की गम्भीर समस्या झेलनी पड़ेगी। लेकिन अगर यह तापमान अपेक्षा से अधिक तेजी से बढ़ा तो पूरे देश में बारिश की मात्रा बढ़ेगी और सूखे की आशंका भी टल जाएगी।

मौसम विभाग ने देश में सामान्य से कम 88 फीसदी मानसून की सम्भावना व्यक्त की है। लेकिन स्काइमेट के अनुसार, देशवासियों को आशंकित होने की जरूरत नहीं। मानसून इस वर्ष सामान्य रहने की उम्मीद है। अलनीनो के प्रभाव के चलते मौसम विभाग ने यह आशंका व्यक्त की है। लेकिन अलनीनो का प्रभाव इंडियन ओशन डाइपोल यानी आईओडी के चलते बेअसर हो जाएगा।

स्काइमेट ने भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की उस भविष्यवाणी को खारिज कर दिया है, जिसमें कहा गया है कि इस वर्ष कमजोर मानसून के कारण औसत से कम 88 फीसदी बारिश होगी। मौसम की भविष्यवाणी करने वाली निजी एजेन्सी स्काइमेट के अनुसार, इस साल मानसून सामान्य रहेगा। बारिश भी सामान्य होगी। मौसम विज्ञान की भाषा में 100-104 फीसदी बारिश को सामान्य कहा जाता है।

स्काइमेट के मुताबिक, 2015 में प्रभावी दिख रहा अलनीनो दरअसल 2014 से ही जारी है। पिछले वर्ष इसका असर अपने शबाब पर था और सामान्य से कम 88 फीसदी बारिश के कारण सूखा भी पड़ा था। इस वर्ष इसमें ज्यादा दम नहीं बचा है, जिससे यह बारिश को प्रभावित नहीं कर सके। मानसून विज्ञान के 140 वर्षों के इतिहास में एक के बाद लगातार दूसरे वर्ष में सूखा पड़ने की घटनाएँ केवल चार बार ही हुई हैं।

ऐसा केवल 1904-05, 1965-66 और 1985-86-87 में ही देखने को मिला है। पिछले वर्ष अलनीनो की तीव्रता अपने उभार पर थी और अब वह ढलान पर है। इसलिए इस साल मानसून की बारिश सामान्य होगी। इसके अलावा हिन्द महासागर में भी स्थितियाँ सामान्य मानसून के अनुकूल हैं। अलनीनो का असर नगण्य करने में सक्षम इंडियन ओशन डावपोल प्रक्रिया भी सकारात्मक है। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से ऐसे संकेत मिल रहे हैं। अरब महासागर और हिन्द महासागर से नमी लेकर आने वाली दक्षिण पश्चिमी हवाएँ दो भाग में बँट जाती हैं।

अरब सागर से आने वाली हवाएँ कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश में मानसून लाती हैं। वहीं बंगाल की खाड़ी से होकर आने वाली दक्षिण पश्चिमी हवाएँ पश्चिम बंगाल तक पहुँचकर कोलकाता के नीचे से मुड़कर दक्षिण पूर्वी हवाओं में बदल जाती हैं। यही उड़ीसा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश में बारिश की सौगात लाती हैं।

इन हवाओं को बंगाल की खाड़ी से अतिरिक्त नमी मिलती है, जिससे बादल बनते हैं। दरअसल उत्तर प्रदेश, दिल्ली, उड़ीसा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार आदि राज्यों में मानसून बंगाल की खाड़ी से री-चार्ज होकर आगे बढ़ता है। केरल में मानसून अलग हवाओं के कारण जल्दी पहुँचता है। उत्तर भारत का मानसून दूसरी हवाओं से बनता है, इसलिए इसकी रफ्तार देर से बनती है। कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में झमाझम बारिश शुरू भी हो चुकी है।

लेकिन उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, झारखंड और पश्चिम बंगाल, बिहार के बाशिन्दों को बारिश के लिए अभी थोड़ा इन्तजार करना पड़ेगा। हालाँकि इसके जल्द ही रफ्तार पकड़ने की उम्मीद है। लेकिन आगामी वर्षों में जलवायु में परिवर्तन होने से मानसून के पैटर्न में भारी बदलाव आएगा। इसके कारण कहीं भीषण वर्षा होगी तो कहीं कम वर्षा या सूखा पड़ सकता है।

पोस्टडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इंपैक्ट रिसर्च एंड पोस्टडैम यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने अपने ताजा शोध में पाया कि मानव जाति 21वीं सदी के अन्त तक पहुँचने की कगार पर है। लेकिन 22वीं सदी में ग्लोबल वार्मिंग की अधिकता के कारण दुनिया का तापमान हद से ज्यादा बढ़ चुका होगा। इनवायरमेंटल रिसर्च सेंटर नाम की पत्रिका में प्रकाशित इस शोध में बताया गया है कि बसंत ऋतु में प्रशांत क्षेत्र के वाकर सरकुलेशन की आवृत्ति बढ़ सकती है। इसलिए मानसूनी बारिश पर बहुत बड़ा फर्क पड़ सकता है। वाकर सरकुलेशन पश्चिमी हिंद महासागर में अक्सर उच्च दबाव लाता है। लेकिन जब कई सालों में अलनीनो उत्पन्न होता है, तब दबाव का ये पैटर्न पूर्व की ओर खिसकता जाता है।

इससे भारत के थल क्षेत्र में दबाव आ जाता है और मानसून का इलाके में दमन हो जाता है। ये स्थिति खासकर तब उत्पन्न होती है, जब बसंत में मानसून विकसित होना शुरू होता है। अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, भविष्य में जब तापमान और अधिक बढ़ जाएगा, तब वाकर सरकुलेशन औसत रहेगा और दबाव भारत के थल क्षेत्र पर पड़ेगा। इससे अलनीनो भी नहीं बढ़ पाएगा। इससे मानसून प्रणाली विफल हो जाएगी और सामान्य बारिश के मुकाबले भविष्य में 40 से 70 फीसदी बारिश ही होगी।

भारतीय मौसम विभाग ने सामान्य बारिश का पैमाना 1870 के शतक के अनुसार बनाया था। मानसूनी बारिश में कमी सब जगह समान रूप से नहीं होगी। जलवायु परिवर्तन के कारण मानसूनी बारिश कम होने से भी ज्यादा भयावह स्थितियाँ पैदा हो सकती हैं। इसलिए हमें एक ऐसी दुनिया में जीने की तैयारी कर लेनी चाहिए, जहां सबकुछ हमारे प्रतिकूल होगा।

प्राकृतिक आपदाओं से मुकाबला करना कोई आसान काम नहीं है। लेकिन ऐसे हालात प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन और आधुनिक तकनीक के कारण ही पैदा हो रहे हैं, इसलिए हम एक महाविनाश की ओर जा रहे हैं, जिसकी कल्पना हमारे पुराणों में कलयुग के अन्त के रूप में पहले से ही घोषित की जा चुकी है।

ईमेल- nirankarsi@gmail.com

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