शिव की जटा से उत्पन्न, पर्वतों को चूमती हुई,
घाटियों में अठखेलियां करती, दूध की तरह धवल,
अग्नि की तरह पवित्र है जो।
सैकड़ों गुणों की खान है और मासूमियत से भरी है वो।
सबकी आवश्यकताओं को पूरा करती, सर्वत्र अपनी पवित्रता फैलाती।
कभी इठलाती, कभी बलखाती, अपनी ममता को दर्शाती,
मां की तरह आंचल में समेटे हुए सैकड़ों सौगातें वितरित करते हुए,
प्रयाग में यमुना और सरस्वती के साथ अद्भुत मिलन करते हुए,
हर की पौड़ी पर लाखों लोगों को आशीर्वाद दिया है जिसने,
न जाने कितने लोगों को मोक्ष प्रदान किया है इसने।
स्वभाव से है वो सरल, सादगी से है वो भरी हुई।
लाखों श्रद्धालुओं की श्रद्धा से सराबोर हुई।
ऐसी निर्मल थी हमारी मां गंगा।
आज शिव की गंगा मैली हो गई है।
देखकर यह विकृत रूप उसका देवनगरी बनारस भी शर्मसार हो गई है।
वह अबला, दरिद्रता रूपी, दुखों से भरी है।
और अपने इस रूप पर स्वयं अश्रु बहा रही है।
आज उसकी पवित्रता पर लाखों सवाल खड़े हैं।
कल भी उसका हृदय निर्मल था, आज भी निर्मल है।
बस बाह्य सौंदर्य हमने कर दिया तार-तार है।
हम सबको मिलकर अथक प्रयास करना होगा।
गंगा को निर्मल कर उसकी आत्मा को जिंदा करना होगा।
और फिर नए परिवेश में गंगा का श्रृंगार करना होगा।
वह दिन दूर नहीं, जब अच्छे दिन आएंगे।
और हम स्वच्छ पारदर्शी गंगाजल अवश्य पाएंगे।
द्वारा - ले. जनरल चंदेल घूमता, सुकना, सिलिगुड़ी (पश्चिम बंगाल), ईमेल-veenagsc@gmail.com
Source
दैनिक जागरण सप्तरंग, 22 सितंबर, 2014