चमोलीः वनसंपदा और गांव के एकमात्र जलस्रोत को तबाह कर बनाई जा रही सड़क

Submitted by Shivendra on Tue, 05/19/2020 - 11:33

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो - डाउन टू अर्थ

उत्तराखंड का अधिकांश क्षेत्र वनों से घिरा है। पर्वतीय इलाकों के लोगों के लिए पानी का मुख्यस्रोत नौले-धारे और गाड़-गदेरे हैं। इन्हीं प्राकृतिक स्रोतों पर कई पेयजल योजनाएं संचालित की जा रही हैं, तो वहीं नदियों के प्रवाह में स्रोतों का अहम योगदान है, लेकिन उत्तराखंड में मसूरी, नैनीताल, अल्मोड़ा, बागेश्वर, देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़, चमोली सहित विभिन्न स्थानों पर प्राकृतिक स्रोत सूख रहे हैं। अल्मोड़ा में 83 प्रतिशत स्प्रिंग्स सूख चुके हैं। स्रोतों के सूखने का सबसे बड़ा कारण अनियोजित विकास, निर्माण और वनों का कटान है, लेकिन हमारी सरकारें इससे सीख लेती नहीं दिख रही हैं, जिस कारण गांव के लोगों को कई स्थानों पर बूंद बूंद पानी के लिए तरसना पड़ता है, जबकि कई स्थानों पर समस्या धीरे-धीरे गहरा रही है। पानी की समस्या बढ़ती है तो खेत बंजर हो जाते हैं। पानी और आजीविका न रहने से भी लोग पलायन कर रहे हैं। गंभीर होती इस समस्या को कम करने के बजाए, विभिन्न योजनाओं और शासन-प्रशासन के कई कर्मचारियों में पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता का अभाव एक बड़े संकट की ओर ले जा रहा है। ये संकट केवल पूरी हिमालयन रीजन पर गहरा रहा है, जिसमें इंडियन हिमालयन रीजन के उत्तराखंड सहित 12 राज्य शामिल हैं। जिसका प्रमाण बागेश्वर की सूखती सरयू नदी और नैनीताल सूखती नैनीझील, सूखाताल, भीमताल तथा रामगंगा, मंदाकिनी, नंदाकिनी, पिडर नदी, अलकनंदा आदि नदियों का कम होता पानी है, लेकिन योजनाओं के नाम पर प्रकृति के साथ खिलावाड़ और जल स्रोतों को खत्म करने का जीता-जागता उदाहरण सरकोट-देवसारी मोटर मार्ग है।   

चमोली जनपद के विधानसभा क्षेत्र थराली के अंतर्गत प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत सरकोट-देवसारी मोटर मार्ग का कार्य चल रहा है, जो ग्वालदम-नंदकेशरी मोटर मार्ग से प्रारंभ होकर देवसारी प्राथमिक विद्यालय तक जाएगा। यानी ये मार्ग करीब 8.125 किलोमीटर लंबा होगा। लोक निर्माण विभाग की टीम ने 16 सितंबर 2015 को मार्ग के लिए स्थल का संयुक्त निरीक्षण किया था। निरीक्षण में पाया गया कि सड़क बनने से 1791 मीटर नाप भूमि, 1413 मीटर सिविल भूमि और 4921 मीटर आरक्षित वन भूमि प्रभावित होगी। इसके लिए 5.964 हेक्टेयर भूमि हस्तांतरण करने की जरूरत होगी। इस चयनित स्थल में चीड़, बुरांश, अंयार, बांज, तुन, मेहल, फल्याट, सौंड़, काफल, दुदीला, उतीस, प्रजाति के 1118 पेड़ प्रभावित होंगे, जिनमें 125 पेड़ बांज के हैं। तो वहीं, देखे गए वैकल्पिक स्थल में 1000 मीटर नाप भूमि, 3000 मीटर सिविल भूमि और 6000 मीटर आरक्षित वन की भूमि प्रभावित होगी। साथ ही 7.000 हेक्टेयर भूमि हस्तांतरण करने की आवश्यकता होगी। इसमें चीड़, बुरांश, अंयार, बांज, तुन, मेहल, फल्याट, सेड़, शहतुत, काफल, दुदीला प्रजाति के 1440 पेड़ प्रभावित होंगे, जिनमें बांज के 205 पेड़ शामिल हैं। हालांकि इस रिपोर्ट में वृक्षों का आच्छादन नहीं दर्शाया गया है। प्राकृतिक जलस्रोत को भी इससे खतरा है।   

वनों को नुकसान और एकमात्र प्राकृतिक जलस्रोत को नुकसान पहुंचने की आशंका से संयुक्त टीम की रिपोर्ट से मामला ग्रामीणों को खटकने लगा। 10 सिंतबर 2019 को विधायक मुन्नी देवी शाह ने चिनाखेत-गजाखरक-देवसारी मोटरमार्ग के समरेखण के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के मुख्य अभियंता, देहरादून को पत्र लिखा। ग्राम सभा ने भी अपने वन और जलस्रोत को बचाने के लिए 11 सितंबर 2017 को चमोली के तत्कालीन जिलाधिकारी को पत्र लिखकर मामले से अवगत कराया गया। 30 सितंबर 2019 को एक पत्र अपर प्रमुख वन संरक्षण देहरादून को लिखा। सड़क निर्माण में वन संपदा और पानी के स्रोत को नुकसान पहुंचने का अंदेशा जताते हुए सभी ने इसका विरोध किया और सरकोट के प्रधान ने मामले की शिकायत की। एक पत्र 22 फरवरी 2020 को सांसद तीरथ सिंह रावत को भी लिखा गया।

शिकायत पत्र के आधार पर 9 सितंबर 2019 को देवसारी मोटर मार्ग का पुनः संयुक्त निरीक्षण किया गया। इस रिपोर्ट में बताया गया कि ग्राम सभा सरकोट को जिस स्रोत से पानी सप्लाई किया जाता है, वो सड़क से करीब 225 मीटर दूरी पर है। सड़क से स्रोत को नुकसान पहुंचने की संभावना नहीं है। वहीं गदेरे में 6 मीटर की पुलिया भी स्वीकृत है। मार्ग ग्रामीणों के अनापत्ति के बाद ही बनाया जा रहा है, लेकिन ग्रामीण इस रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं हैं और ग्रामीण कुछ और ही हकीकत बयां कर रहे हैं।

ग्रामीणों का कहना है कि दमुथोल तोक से आगे फ़णा गदेरा है, जो सरकोट ग्राम सभा का एकमात्र पानी का प्राकृतिक स्रोत है, जिस पर 50 परिवार आश्रित हैं। वर्ष 1972 से जल संस्थान द्वारा बनाई गई पाइपलाइन से ही पानी पी रहे हैं, जो इस गदेरे पर ही बनी है। गांव वालों के अलावा पूरे जंगल में जीव-जंतुओं के लिए पानी का एकमात्र स्रोत ये गदेरा ही है। इसी ये यहां की जैव-विविधता बनी हुई है। ग्रामीण कहते हैं कि सर्वे में सड़क से स्रोत की दूरी 225 मीटर बताई गई है, जबकि दूरी 50 मीटर से भी कम है। बांज और बुरांश के सैंकड़ों पेड़ों को काटा जाएगा। ये पेड़ भूजल रिचार्ज करने और मृदा अपरदन को रोकने में अहम योगदान देते हैं। 

सरकोट ग्राम सभा के  सरपंच महेशानंद कुन्याल ने इंडिया वाटर पोर्टल (हिंदी) से बात करते हुए बताया कि ‘‘रोड़ यहां से नहीं बननी चाहिए। गदेरे को नुकसान होने से ग्रामीणों के सामने पानी के लिए जिंदगी भर का रोना होगा। बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी। यहां से सड़क न बने। अन्य विकल्प वाले स्थानों पर सड़क बनाई जाए। ग्राम सभा देवसारी दूसरे स्थान से सड़क को ले जाना चाहती थी। जिसके लिए दो अन्य विकल्प भी थे। सभी को पता था कि सरकोट-देवसारी मोटर मार्ग बनाया जाना है। सभी खुश थे। जिस अनापत्ति पत्र का उल्लेख रिपोर्ट में किया गया है, उसमें केवल सरकोट-देवसारी मोटर मार्ग का ज़िक्र किया गया है। ये कहीं भी उल्लेखित नहीं था कि सड़क किस स्थान से बनाई जाएगी। इसके अलावा अनापत्ति पत्र पर जिन लोगों के हस्ताक्षर हैं, उनमें से अधिक लोग फ़णा गदेरे के पानी पर आश्रित नहीं है। पूर्व प्रधान केसर राम ने बताया कि ‘‘वर्तमान में जिस स्थान से सड़क जा रही है, वहां से सड़क नहीं बननी चाहिए। इससे हमारी वन संपदा और प्राकृतिक जल स्रोत को नुकसान है। सड़क से गदेरे की दूरी भी रिपोर्ट में गलत दिखाई गई है।’’ 

सरकोट के उप प्रधानपति जीवन जोशी ने बताया कि ‘‘विकल्प के तौर पर प्रथम मार्ग ग्वालदम-नंदकेसरी मार्ग पर चिड़ाखेत-गजाखरक-फगोटा-देवसारी-देवाल मार्ग है। इस मार्ग से सड़क बनाना लगभग 10 किलोमीटर पड़ेगा। दूसरा प्रस्तावित मोटर मार्ग ग्वालदम नंदकेसरी मोटर मार्ग पर सेरा बैंड से शेरागाड़-गजाखरक-देवसारी मोटरमार्ग था। इन दोनों मोटर मार्ग से ग्रामसभा सरकोट को कोई आपत्ति नहीं है।’’ 

हिम्मोत्थान के सीनियर प्रोग्राम ऑफिसर डाॅ. सुनेश कुमार शर्मा कहते हैं कि ‘‘वन और पानी का आपस में संबंध होता है। इसे हमें वैज्ञानिक तौर पर समझन की जरूरत है। जंगल पर या जंगल की कंडीशन पर ही पानी के स्रोत निर्भर करते हैं। इसलिए इसके हाइड्रोलाॅजिकल दृष्टिकोण को समझना बेहद जरूरी है। जिसके लिए वनों का संरक्षण और जैव विविधता को बनाए रखना बेहद जरूरी है। लेकिन लगातार दोहन और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को समझने बिना जल संकट और जलवायु परिवर्तन जैसी विकट समस्या खड़ी हो रही है, जो केवल चमोली या उत्तराखंड को ही नहीं, बल्कि पूरे हिमालयन रीजन को प्रभावित कर रही हैं।’’ वास्तव में बांज और बुरांश के पेड़ों के प्राकृतिक जंगल को कटा जाएगा तो उसकी भरपाई मुश्किल है। जो बड़े संकट का संकेत है। शासन और प्रशासन को इस ओर गंभीरता से ध्यान देना जरूरी है।


हिमांशु भट्ट (8057170025)