लेखक
कई पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में पानी का उपयोग एक औषधि के रूप किया भी जा रहा है। जापान में जल चिकित्सा काफी लोकप्रिय चिकित्सा पद्धति के तौर पर उभरी है। जल चिकित्सा में यह बात बेहद मायने रखती है कि कब और कैसा पानी पीया जाए और कब-कैसा पानी न पीया जाए। कई रोगों में ठंडा पानी पीना व स्नान करना लाभकर होता है, कई रोगों में गर्म और कई में नमकीन पानी। पानी जिस सामग्री से बने बर्तन में रखा जाता है, उसके गुण को भी ग्रहण करता है। मित्रों, मैं कोई डॉक्टर नहीं हूं; मैं पानी का एक मामूली सा कार्यकर्ता, लेखक और पत्रकार हूं। पानी को समझने के लिए दूरदराज के इलाकों में घूमता हूं; लोगों से बात करता हूं; जीवनशैली को देखता हूं; शोध और अध्ययनपत्रों को पढ़ता हूं।
यह सब करते हुए मैंने जो कुछ सीखा और समझा है, उसके आधार पर मैं एक बात दावे से कह सकता हूं कि पानी सिर्फ प्यास बुझाने की चीज नहीं है, पानी एक शानदार औषधि भी है; उतनी ही शानदार, जितनी कि कोई मंहगी-से-मंहगी दवाई हो सकती है।
शुद्ध पानी का नियमानुसार पर्याप्त सेवन शरीर को सेहतमंद बनाए रखने का अपने आप में एक अचूक नुस्खा है। इस नाते आप कह सकते हैं कि इलाज भी है और दवा भी।
दरअसल, हमारे शरीर में ‘मेटाबोलिक प्रोसेस’ हमेशा चलता रहता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिससे हमें ऊर्जा मिलती है। इसके लिए लगातार पानी की जरूरत होती है।
यदि मेटाबोलिक प्रोसेस को उसकी जरूरत का पानी न मिले, तो हमारे शरीर ऊर्जा की कमी तो होगी कि नहीं? होगी न? इसे यूं समझें कि हमारे शरीर में 60 प्रतिशत पानी होता है।
यदि इसमें एक से दो प्रतिशत भी कमी हो जाए, तो हम थकान, बेचैनी और कमजोरी महसूस करने लगते हैं। अध्ययन बताते हैं कि याददाश्त में कमी और जोड़ों के लचीलेपन में कमी के अन्य कारणों में पानी की कमी एक सहयोगी कारण हैं।
सेहत के लिहाज से पानी कितना महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि कई प्रमुख क्रियाएं पानी के बगैर ठीक से संचालित हो ही नहीं सकती: पाचन, रक्त आदि पदार्थों का प्रवाह, पोषक तत्वों का अवशोषण,पसीना, मूत्र आदि का निष्कासन, लार का बनना, पोषक तत्वों का शरीर के सभी अंगों में पहुंचना तथा शरीर का रखरखाव; इन सभी प्रकियाओं के लिए शरीर को पानी की आवश्यकता पड़ती है।
गौरतलब है कि शरीर के तापमान को नियंत्रित कर शरीर की गर्मी को एकसमान बनाए रखने में हमारे द्वारा ग्रहण किए गए पानी की विशेष भूमिका होती है। पानी से शरीर की नाड़ियां उत्तेजित होती हैं; मांसपेशियां उत्तेजित होती हैं; नए उत्तकों का निर्माण होता है तथा उत्तकों को सुरक्षा मिलती है।
आंतों को सक्रिय बनाए रखने में पानी की खास भूमिका है। इससे मल निष्कासन में परेशानी नहीं होती। कब्ज की संभावना कम रहती है। बवासीर, फिशर, फिश्चुला जैसी बीमारियों की संभावना घट जाती है।
शरीर में पर्याप्त खून भी तभी बनता है, जब आंतें सक्रिय रहती हैं। इस प्रकार आंतों को पर्याप्त पानी न मिले तो खून निर्माण में कमी आ सकती है। बढ़ती उम्र वाले इसका खास ख्याल रखें।
त्वचा के सूखेपन और असमय झुर्रियों में भी पानी की कमी की भूमिका होती है। हम कितना ही पोषक भोजन करें, यदि पानी की उचित मात्रा नहीं लेंगे तो शरीर के विभिन्न अंग पोषक तत्वों को पूरी तरह सोख नहीं सकेंगे।
यह भी बात ध्यान रखने की है कि यदि इन प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक पानी की पूर्ति हम बाहर से नहीं करेंगे, तो वे उसकी पूर्ति रक्त, मांस और कोशिकाओं में मौजूद पानी को खींचकर करेंगी।
जाहिर है कि इससे इन सभी की गुणवत्ता, शक्ति और क्रियाशीलता पर बुरा असर पड़ेगा।
‘अमेरिकन जरनल ऑफ एपिडरमियोलॉजी’ के एक पांच साला अध्ययन के मुताबिक प्रतिदिन दो गिलास पानी पीने वालों की तुलना में पांच गिलास पानी पीने वाले हृदय रोग के कम शिकार होते हैं। एक अन्य अध्ययन के मुताबिक स्वच्छ और पर्याप्त पानी पीने वालों में औरों की तुलना में आंत के कैंसर की संभावना 50 प्रतिशत और पेट के कैंसर की संभावना 45 प्रतिशत कम पाई गई है।
स्तन और गर्भाशय कैंसर के मामले में भी ऐसे ही कुछ तथ्य पेश किए गए हैं। इन तमाम निष्कर्षों को आधार यह है कि जल में खुद कीटाणुओं से लड़ने की शक्ति होती है। इस गुण के कारण पानी बीमारियों से लड़ने की हमारी प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि करता है।
दरअसल, पानी का जो एक सबसे बड़ा गुण है, वह है शोधन करने का; किसी चीज को साफ करने का। इसी गुण के कारण पानी शरीर के भीतर पहुंचते ही विषैले.. विकारयुक्त तत्वों को निकाल बाहर करने का काम खुद-ब-खुद शुरू कर देता है। यकीन कीजिए, पानी से बढ़िया और सस्ता ‘बॉडी क्लीनर’ बहुत खर्चने भी आपको बाजार में भी नहीं मिलेगा। गुर्दा संबंधी रोगों से बचाव में भी पानी की भूमिका शोधक की है।
यदि उपवास रहते हैं और इस दौरान सिर्फ पानी लेते हैं तो इससे आपके शरीर के शोधन में काफी मदद मिलती है। जैसे क्षार यानी एल्कलाइन तत्व होने के कारण फिटकरी शरीर के शोधन में मददगार मानी गई है, उसी तरह गंगा नदी के जल में क्षार तत्व अधिक होने के कारण गंगाजल में शोधन का विशेष औषधीय गुण पाया जाता है। इसी कारण पीलिया रोग के इलाज में क्षारतत्व युक्त जल विशेष औषधि का काम करता है।
अब आप सवाल कर सकते हैं कि इन तमाम औषधीय गुणों के बावजूद पानी आज एक मान्य चिकित्सा पद्धति का रूप क्यों नहीं ले पाया? जबकि कहा यह जाता है कि दुनिया में आज जितनी भी चिकित्सा पद्धतियां हैं, जल चिकित्सा इनमें सबसे पुरानी है। यहां तक जानवर भी पानी का उपयोग औषधि के रूप में करते देखे गए हैं।
कई पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में पानी का उपयोग एक औषधि के रूप किया भी जा रहा है। जापान में जल चिकित्सा काफी लोकप्रिय चिकित्सा पद्धति के तौर पर उभरी है।
जल चिकित्सा में यह बात बेहद मायने रखती है कि कब और कैसा पानी पीया जाए और कब-कैसा पानी न पीया जाए। कई रोगों में ठंडा पानी पीना व स्नान करना लाभकर होता है, कई रोगों में गर्म और कई में नमकीन पानी। पानी जिस सामग्री से बने बर्तन में रखा जाता है, उसके गुण को भी ग्रहण करता है।
जैसे विशुद्ध तांबे के बर्तन में रात भर रखा पानी सुबह पीने से लीवर के लिए बेहद फायदेमंद नुस्खा है। मिट्टी के संपर्क में आने पर पानी की नाईट्रेट संबंधी अशुद्धि दूर करने में मदद मिलती है। इसीलिए मटके के पानी को, फ्रिज से बेहतर माना गया है।
इस दृष्टि से पीने का पानी प्लास्टिक या लोहे की बाल्टी में रखने की बजाय यदि मिट्टी, तांबे, पीतल, कांच....न संभव होने पर स्टील में रखा जाए तो बेहतर होगा। फ्रिज में पानी ठंडा करने के लिए रखी बोतलें बेहतर हों कि कांच की हों। प्लास्टिक की बोतलों की तुलना में कांच की बोतलों में रखे पानी के स्वाद से ही आप गुणवत्ता का फर्क जान जाएंगे।
मित्रों, अंत में मैं इतना कहना चाहूंगा कि आज हमारे सामने दो चित्र हैं। एक चित्र में पानी के प्रदूषण और कमी से बढ़ते रोगों से बदहाल हम हैं और इलाज की कुछ मान्य पैथी हैं, जिनके तहत इलाज लगातार महंगा होता जा रहा है।
दूसरे चित्र में प्रकृति प्रदत पानी जैसी अचूक औषधि हैं, जिसे अब तक किसी फैक्टरी में बनाया नहीं जा सका है। अतः इसके आम उपयोग के लिए मंहगा होने की संभावना अन्य औषधियों की तुलना में कुछ कम ही है। क्या आपको नहीं लगता है कि जलचिकित्सा विज्ञान को बढ़ावा दिया जाना चाहिए?
यदि जलचिकित्सा को लेकर शोध और प्रयोग को प्रोत्साहित किया जाए; इसके अलावा शुद्ध पानी के संरक्षण हम खुद जागरूक व कर्मशील हो जाएं, तो मंहगे इलाज और सेहत के नित गहराते संकट के इस दौर में हमें कुछ राहत जरूर संभव है?
यह सब करते हुए मैंने जो कुछ सीखा और समझा है, उसके आधार पर मैं एक बात दावे से कह सकता हूं कि पानी सिर्फ प्यास बुझाने की चीज नहीं है, पानी एक शानदार औषधि भी है; उतनी ही शानदार, जितनी कि कोई मंहगी-से-मंहगी दवाई हो सकती है।
शुद्ध पानी का नियमानुसार पर्याप्त सेवन शरीर को सेहतमंद बनाए रखने का अपने आप में एक अचूक नुस्खा है। इस नाते आप कह सकते हैं कि इलाज भी है और दवा भी।
पानी: एक जरूरत
दरअसल, हमारे शरीर में ‘मेटाबोलिक प्रोसेस’ हमेशा चलता रहता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिससे हमें ऊर्जा मिलती है। इसके लिए लगातार पानी की जरूरत होती है।
यदि मेटाबोलिक प्रोसेस को उसकी जरूरत का पानी न मिले, तो हमारे शरीर ऊर्जा की कमी तो होगी कि नहीं? होगी न? इसे यूं समझें कि हमारे शरीर में 60 प्रतिशत पानी होता है।
यदि इसमें एक से दो प्रतिशत भी कमी हो जाए, तो हम थकान, बेचैनी और कमजोरी महसूस करने लगते हैं। अध्ययन बताते हैं कि याददाश्त में कमी और जोड़ों के लचीलेपन में कमी के अन्य कारणों में पानी की कमी एक सहयोगी कारण हैं।
सेहत के लिहाज से पानी कितना महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि कई प्रमुख क्रियाएं पानी के बगैर ठीक से संचालित हो ही नहीं सकती: पाचन, रक्त आदि पदार्थों का प्रवाह, पोषक तत्वों का अवशोषण,पसीना, मूत्र आदि का निष्कासन, लार का बनना, पोषक तत्वों का शरीर के सभी अंगों में पहुंचना तथा शरीर का रखरखाव; इन सभी प्रकियाओं के लिए शरीर को पानी की आवश्यकता पड़ती है।
गौरतलब है कि शरीर के तापमान को नियंत्रित कर शरीर की गर्मी को एकसमान बनाए रखने में हमारे द्वारा ग्रहण किए गए पानी की विशेष भूमिका होती है। पानी से शरीर की नाड़ियां उत्तेजित होती हैं; मांसपेशियां उत्तेजित होती हैं; नए उत्तकों का निर्माण होता है तथा उत्तकों को सुरक्षा मिलती है।
आंतों को सक्रिय बनाए रखने में पानी की खास भूमिका है। इससे मल निष्कासन में परेशानी नहीं होती। कब्ज की संभावना कम रहती है। बवासीर, फिशर, फिश्चुला जैसी बीमारियों की संभावना घट जाती है।
शरीर में पर्याप्त खून भी तभी बनता है, जब आंतें सक्रिय रहती हैं। इस प्रकार आंतों को पर्याप्त पानी न मिले तो खून निर्माण में कमी आ सकती है। बढ़ती उम्र वाले इसका खास ख्याल रखें।
त्वचा के सूखेपन और असमय झुर्रियों में भी पानी की कमी की भूमिका होती है। हम कितना ही पोषक भोजन करें, यदि पानी की उचित मात्रा नहीं लेंगे तो शरीर के विभिन्न अंग पोषक तत्वों को पूरी तरह सोख नहीं सकेंगे।
यह भी बात ध्यान रखने की है कि यदि इन प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक पानी की पूर्ति हम बाहर से नहीं करेंगे, तो वे उसकी पूर्ति रक्त, मांस और कोशिकाओं में मौजूद पानी को खींचकर करेंगी।
जाहिर है कि इससे इन सभी की गुणवत्ता, शक्ति और क्रियाशीलता पर बुरा असर पड़ेगा।
पानी : एक शोधक, एक क्षमतावर्धक
‘अमेरिकन जरनल ऑफ एपिडरमियोलॉजी’ के एक पांच साला अध्ययन के मुताबिक प्रतिदिन दो गिलास पानी पीने वालों की तुलना में पांच गिलास पानी पीने वाले हृदय रोग के कम शिकार होते हैं। एक अन्य अध्ययन के मुताबिक स्वच्छ और पर्याप्त पानी पीने वालों में औरों की तुलना में आंत के कैंसर की संभावना 50 प्रतिशत और पेट के कैंसर की संभावना 45 प्रतिशत कम पाई गई है।
स्तन और गर्भाशय कैंसर के मामले में भी ऐसे ही कुछ तथ्य पेश किए गए हैं। इन तमाम निष्कर्षों को आधार यह है कि जल में खुद कीटाणुओं से लड़ने की शक्ति होती है। इस गुण के कारण पानी बीमारियों से लड़ने की हमारी प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि करता है।
दरअसल, पानी का जो एक सबसे बड़ा गुण है, वह है शोधन करने का; किसी चीज को साफ करने का। इसी गुण के कारण पानी शरीर के भीतर पहुंचते ही विषैले.. विकारयुक्त तत्वों को निकाल बाहर करने का काम खुद-ब-खुद शुरू कर देता है। यकीन कीजिए, पानी से बढ़िया और सस्ता ‘बॉडी क्लीनर’ बहुत खर्चने भी आपको बाजार में भी नहीं मिलेगा। गुर्दा संबंधी रोगों से बचाव में भी पानी की भूमिका शोधक की है।
यदि उपवास रहते हैं और इस दौरान सिर्फ पानी लेते हैं तो इससे आपके शरीर के शोधन में काफी मदद मिलती है। जैसे क्षार यानी एल्कलाइन तत्व होने के कारण फिटकरी शरीर के शोधन में मददगार मानी गई है, उसी तरह गंगा नदी के जल में क्षार तत्व अधिक होने के कारण गंगाजल में शोधन का विशेष औषधीय गुण पाया जाता है। इसी कारण पीलिया रोग के इलाज में क्षारतत्व युक्त जल विशेष औषधि का काम करता है।
पानी : एक चिकित्सा पद्धति
अब आप सवाल कर सकते हैं कि इन तमाम औषधीय गुणों के बावजूद पानी आज एक मान्य चिकित्सा पद्धति का रूप क्यों नहीं ले पाया? जबकि कहा यह जाता है कि दुनिया में आज जितनी भी चिकित्सा पद्धतियां हैं, जल चिकित्सा इनमें सबसे पुरानी है। यहां तक जानवर भी पानी का उपयोग औषधि के रूप में करते देखे गए हैं।
कई पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में पानी का उपयोग एक औषधि के रूप किया भी जा रहा है। जापान में जल चिकित्सा काफी लोकप्रिय चिकित्सा पद्धति के तौर पर उभरी है।
जल चिकित्सा में यह बात बेहद मायने रखती है कि कब और कैसा पानी पीया जाए और कब-कैसा पानी न पीया जाए। कई रोगों में ठंडा पानी पीना व स्नान करना लाभकर होता है, कई रोगों में गर्म और कई में नमकीन पानी। पानी जिस सामग्री से बने बर्तन में रखा जाता है, उसके गुण को भी ग्रहण करता है।
जैसे विशुद्ध तांबे के बर्तन में रात भर रखा पानी सुबह पीने से लीवर के लिए बेहद फायदेमंद नुस्खा है। मिट्टी के संपर्क में आने पर पानी की नाईट्रेट संबंधी अशुद्धि दूर करने में मदद मिलती है। इसीलिए मटके के पानी को, फ्रिज से बेहतर माना गया है।
इस दृष्टि से पीने का पानी प्लास्टिक या लोहे की बाल्टी में रखने की बजाय यदि मिट्टी, तांबे, पीतल, कांच....न संभव होने पर स्टील में रखा जाए तो बेहतर होगा। फ्रिज में पानी ठंडा करने के लिए रखी बोतलें बेहतर हों कि कांच की हों। प्लास्टिक की बोतलों की तुलना में कांच की बोतलों में रखे पानी के स्वाद से ही आप गुणवत्ता का फर्क जान जाएंगे।
मित्रों, अंत में मैं इतना कहना चाहूंगा कि आज हमारे सामने दो चित्र हैं। एक चित्र में पानी के प्रदूषण और कमी से बढ़ते रोगों से बदहाल हम हैं और इलाज की कुछ मान्य पैथी हैं, जिनके तहत इलाज लगातार महंगा होता जा रहा है।
दूसरे चित्र में प्रकृति प्रदत पानी जैसी अचूक औषधि हैं, जिसे अब तक किसी फैक्टरी में बनाया नहीं जा सका है। अतः इसके आम उपयोग के लिए मंहगा होने की संभावना अन्य औषधियों की तुलना में कुछ कम ही है। क्या आपको नहीं लगता है कि जलचिकित्सा विज्ञान को बढ़ावा दिया जाना चाहिए?
यदि जलचिकित्सा को लेकर शोध और प्रयोग को प्रोत्साहित किया जाए; इसके अलावा शुद्ध पानी के संरक्षण हम खुद जागरूक व कर्मशील हो जाएं, तो मंहगे इलाज और सेहत के नित गहराते संकट के इस दौर में हमें कुछ राहत जरूर संभव है?