लेखक
कावेरी जल को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु में, कृष्णा नदी के जल पर महाराष्ट्र, आंध्र और कर्नाटक में लंबे समय से विवाद रहा। इसी तरह गोदावरी के जल को लेकर महाराष्ट्र, आंध्र समेत पाँच राज्यों में विवाद है। बातचीत के जरिये हल नहीं निकलने पर केन्द्र सरकार ने इन विवादों को ट्रिब्यूनल को हवाले किया। उसके बाद भी विवाद सुलझ नहीं सके। जल की जरूरत हर राज्य को है। तर्क यह है कि जब किसी राज्य के पास अपने लिये पर्याप्त पानी नहीं है तो वह दूसरे राज्यों को पानी कैसे देगा।चुनावों के समय राजनीतिक दलों के एजेंडे में पानी भले न हो लेकिन बाद के दिनों में वे पानी को लेकर जंग करने लगते हैं। ताजा विवाद आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों का है। जहाँ पानी को लेकर तकरार है। अभी हाल तक एक राज्य रहे आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इन दिनों नदियों के जल और बिजली के बँटवारे को लेकर शीतयुद्ध छिड़ा हुआ है। आलम यह है कि इस जुबानी जंग में दोनों प्रदेशों के नेता संसदीय परम्पराओं को ताक पर रखते हुए एक-दूसरे पर हमले बोल रहे हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को धोखेबाज कहा तो पूरी की पूरी तेलुगु देशम पार्टी के चंद्रशेखर राव पर हमलावर हो गई। आंध्र प्रदेश के वरिष्ठ मंत्री डॉ. उमाशंकर राव ने कहा कि जिस तरह की भाषा का चंद्रशेखर राव इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे तेलुगु लोगों का सिर शर्म से झुक जा रहा है। उनके निकम्मेपन की सजा तेलंगाना की जनता भोग रही है। कृष्णा नदी जल बँटवारे पर वह तेलंगाना के मुख्यमंत्री से सार्वजनिक बहस करने के लिए तैयार हैं।
इस बीच पाँच फरवरी को हैदराबाद में कृष्णा नदी जल बँटवारे को लेकर केन्द्र सरकार द्वारा गठित बजाज समिति के सदस्यों ने मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव से मुलाकात की। मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव ने कहा कि कृष्णा जल बँटवारे को लेकर न्यायालय के चक्कर काटने के बजाए बातचीत के जरिये सुलझाना चाहिए। तेलंगाना के हिस्से में कृष्णा नदी को जो पानी उपलब्ध कराया गया है, उतना ही उपयोग किया जाएगा। संयुक्त परियोजनाओं में जल उपयोग को लेकर ऑपरेशन रूल का गठन किया जाना चाहिए। के सी आर ने सवाल उठाया कि वर्षा न होने और नदियों पर जल की उपलब्धता कम होने पर राज्यों के बीच जल का बँटवारा कैसे हो ? जल की उपलब्धता अधिक होने पर अतिरिक्त जल का वितरण कैसे हो ,इस बारे में अलग-अलग प्रस्ताव बनाये जाने चाहिए।
बजाज समिति ने तेलंगाना दौरे में जलसौधा में तेलंगाना एवं आंध्र प्रदेश सिंचाई विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक की। दोनो राज्यों के अधिकारियों ने कृष्णा जल बँटवारे को लेकर अपना-अपना पक्ष रखा। आंध्र प्रदेश के अधिकारियों ने तेलंगाना के जुराला परियोजना को संयुक्त परियोजना की परिधि में लाने का आग्रह किया। तेलंगाना के अधिकारी इस आग्रह को ठुकराते रहे। उल्टे तेलंगाना के अधिकारियों ने पुलिचिंतला, सुंकेशुला परियोजना को संयुक्त परियोजना की परिधि में लाने की मांग की। नौ राज्यों के पक्ष से सम्बन्धित रिपोर्ट को बजाज समिति केन्द्र सरकार को सौंपेगी।
इससे पहले राज्य पुनर्गठन कानून की धारा 89(ए) के मुताबिक परियोजनाओं के आवंटन और जल बँटवारे को लेकर केवल दोनों राज्यों को एक समान अधिकार देते हुए ब्रिजेश कुमार प्राधिकरण ने फैसला सुनाया था। इस पर आपत्ति जताते हुए तेलंगाना सरकार ने उच्चतम न्यायालय में स्पेशल लीव याचिका दायर की थी। उच्चतम न्यायालय ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि अन्य याचिकाओं पर सुनवाई की जाएगी। करीब 43 साल पुराने कृष्णा जल बँटावारा विवाद में ट्राइब्यूनल ने अपना फैसला दे दिया है। इस फैसले के मुताबिक कृष्णा नदी के सरप्लस पानी का सबसे बड़ा हिस्सा आंध्र प्रदेश को मिलेगा जबकि सबसे कम हिस्सा महाराष्ट्र के खाते में आएगा। हालाँकि फैसले को कर्नाटक की जीत बताया जा रहा है।
तीन राज्यों के बीच चल रहे कृष्णा नदी जल बँटवारा विवाद के निपटारे के लिये गठित ब्रजेश कुमार ट्राइब्यूनल ने सरप्लस पानी में से 1001 टीएमसी पानी आंध्र प्रदेश को देने की बात कही है। दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा कर्नाटक को मिलने वाला है। फैसले के मुताबिक कर्नाटक को 911 टीएमसी पानी दिया जाना है। महाराष्ट्र के हिस्से में सबसे कम पानी आया है। महाराष्ट्र को 666 टीएमसी पानी दिए जाने की बात फैसले में कही गई है। फैसले में अलमाटी बाँध की ऊँचाई पर भी कर्नाटक सरकार के आग्रह को स्वीकार कर लिया गया है।
तेलंगना सरकार के सिंचाई क्षेत्र के सलाहकार विद्यासागर कहते हैं कि राज्य सरकार कृष्णा नदी बँटवारे के लिये गठित बजाज समिति के खिलाफ केन्द्र सरकार से शिकायत करेगी। उन्होंने कहा कि बजाज समिति ने आग्रह के अनुसार संयुक्त परियोजनाओं के सम्बन्ध में पूरी जानकारी दी थी, लेकिन आंध्र प्रदेश के दौरे के बाद कमिटी ने अपना रुख बदल दिया ! उन्होंने कहा की ट्रिब्यूनल द्वारा फैसला सुनाये जाने तक अस्थायी जल का आवंटन तय किया गया। विद्यासागर ने कहा की बजाज कमिटी का यह कहना गलत है कि पोलावरम व पट्टीसीमा परियोजनाओं से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है। नदी जल को मोड़ा जाना भी कमेटी के मुद्दे में से एक मुख्य मुद्दा है। उधर समिति का कहना है कि दिल्ली पहुँच कर जल संसाधन मंत्रालय से पूछने के बाद ही इस मामले में स्पष्टीकरण दे सकेगी।
भारतीय जनता पार्टी के नेता नागम जनार्धन रेड्डी आरोप लगाते हैं कि तेलंगाना गठन के ढाई वर्ष बाद भी सरकार की प्रशासनिक व्यवस्था पटरी पर नहीं आ पायी है। अधिकतर मंत्री अपने विभागों के मामले से अनजान हैं। समीक्षा बैठक तो होती है लेकिन परिणाम ना के बराबर है। सिंचाई और जल परियोजना की पूरा करने का वादा झूठ के सिवाय कुछ भी नहीं है।
कावेरी जल को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु में, कृष्णा नदी के जल पर महाराष्ट्र, आंध्र और कर्नाटक में लंबे समय से विवाद रहा। इसी तरह गोदावरी के जल को लेकर महाराष्ट्र, आंध्र समेत पाँच राज्यों में विवाद है। बातचीत के जरिये हल नहीं निकलने पर केन्द्र सरकार ने इन विवादों को ट्रिब्यूनल को हवाले किया। उसके बाद भी विवाद सुलझ नहीं सके। जल की जरूरत हर राज्य को है। तर्क यह है कि जब किसी राज्य के पास अपने लिये पर्याप्त पानी नहीं है तो वह दूसरे राज्यों को पानी कैसे देगा।
तेलंगाना चाहता है कि केंद्र सरकार कृष्णा नदी के पानी आवंटन पर दोबारा फैसला दे! तेलंगाना राज्य का मानना है की कृष्णा जल बँटवारे को लेकर जस्टिस ब्रिजेश कुमार प्राधिकरण का फैसला राज्य विभाजन के पहले आया था और तब तेलंगाना वाले हिस्से को अपना पक्ष रखने का अवसर ही नहीं मिला। सन 1976 में कृष्णा ट्रिब्यूनल ने अपना फैसला सुनाया, जो विचाराधीन अथवा चालू परियोजनाओं के पक्ष में था। वहीं, कृष्णा के पानी को नदी घाटी के बाहर, मगर प्रवाह तंत्र में शामिल राज्यों की सीमा के भीतर मोड़ने की अनुमति दे दी गयी। जल प्रवाह के विभाजन की मात्रा निर्धारित न होने से इसे सफलता मिली, जो राज्यों के बीच उप-घाटी पर केंद्रित समझौतों पर ही आधारित था।
कृष्णा नदी की कुल लम्बाई 1,400 किमी है। सन 2014 तक पानी के विभाजन के तहत आंध्र प्रदेश को 811 टीएमसी, कर्नाटक 911 टीएमसी और महाराष्ट्र को 666 टीएमसी पानी मिल रहा था। तेलंगाना के आविर्भाव के बाद, आंध्र का पानी भी दो हिस्सों में बँट गया। इसके तहत तेलंगाना: 299 टीएमसी और आंध्र प्रदेश 512 टीएमसी पानी का इस्तेमाल कर रहा है। आंध्र और तेलंगाना, दोनों ने पानी के दोबारा विभाजन की मांग कर रहे हैं। राजनीतिक दल खुद को जनता का मसीहा साबित करने के लिये सभी हदें पार करते दिखाई देते हैं। नदियाँ एक से ज्यादा राज्यों से गुजरती हैं और यह तथ्य भारत के भीतर नदी जल के बँटवारे को लेकर एक ठोस नीति की अपेक्षा रखता है। हमारे नीति नियंताओं ने इस नीति को उलझाकर रखा हुआ है।