मनुष्य की तमाम आवश्यकताओं की पूर्ति प्रकृति से होती है। साफ पानी, शुद्ध वायु और तमाम खनिज सम्पदाएँ प्रकृति की देन है। प्रकृति पर मनुष्य के समान ही हर प्राणी का अधिकार है। लेकिन वस्तुओं के अन्धाधुन्ध उपभोग और उत्पादन के हमारे वर्तमान तौर-तरीकों ने पर्यावरण के सामने गम्भीर संकट पैदा कर दिये हैं। मानव आबादी बढ़ने के साथ वनस्पतियाँ और पशु-पक्षियों की तादाद तेजी कम हो रही है। सैकड़ों प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं तो कई विलुप्ती के कगार पर पहुँच चुकी हैं।
प्रकृति हर पशु-पक्षी और मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। जीवधारियों का अस्तित्व ही प्रकृति पर निर्भर है। लेकिन मनुष्य अपने को सब प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ समझ कर प्रकृति और जीवों के साथ मनमाना व्यवहार करता है। अपनी असीमित जरूरतों को पूरा करने के लिये वह प्रकृति, पृथ्वी, जल और खनिज का दुरुपयोग करने में लगा है। रही-सही कसर व्यक्तियों के बाद सरकारें कर रही हैं। सरकारों की विकास योजनाएँ प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने में लगे हैं। जिसके कारण ढेर सारे पशु-पक्षी लुप्त हो रहे हैं। ऐसे में ही राजस्थान का राज्यपक्षी गोड़ावण विलुप्त होने के कगार पर है।मानवीय विकास की मार राजस्थान के राज्यपक्षी गोड़ावण पर भी पड़ी है। गोड़ावण संरक्षण के लिये जैसलमेर जिले में डेजर्ट पार्क की स्थापना की गई है। लेकिन बड़े-बड़े पवन ऊर्जा संयंत्रों ने दुर्लभ गोड़ावण के सामने गम्भीर संकट पैदा हो गया है। किसी समय देश के 11 राज्यों में पाये जाने वाला गोडावण पक्षी आज केवल राजस्थान तक ही सीमट कर रह गया है।
मनुष्य की तमाम आवश्यकताओं की पूर्ति प्रकृति से होती है। साफ पानी, शुद्ध वायु और तमाम खनिज सम्पदाएँ प्रकृति की देन है। प्रकृति पर मनुष्य के समान ही हर प्राणी का अधिकार है। लेकिन वस्तुओं के अन्धाधुन्ध उपभोग और उत्पादन के हमारे वर्तमान तौर-तरीकों ने पर्यावरण के सामने गम्भीर संकट पैदा कर दिये हैं। मानव आबादी बढ़ने के साथ वनस्पतियाँ और पशु-पक्षियों की तादाद तेजी कम हो रही है। सैकड़ों प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं तो कई विलुप्ती के कगार पर पहुँच चुकी हैं।
विकास की मार राजस्थान के राज्य पक्षी गोड़ावण पर भी पड़ी है। गोड़ावण संरक्षण के लिये जैसलमेर जिले में डेजर्ट पार्क की स्थापना की गई है। लेकिन बड़े-बड़े पवन ऊर्जा संयंत्रों ने दुर्लभ गोड़ावण के सामने गम्भीर संकट पैदा हो गया है। किसी समय देश के 11 राज्यों में पाये जाने वाले गोडावण पक्षी आज केवल राजस्थान तक ही सीमट कर रह गया है।
राजस्थान के मरुस्थल गोड़ावण की नैसर्गिक शरण स्थली है। एक दशक पहले करीब एक हजार गोड़ावण थे जो अब घटकर महज डेढ़ सौ के आसपास रह गए हैं। नेशनल डेजर्ट पार्क के साथ ही जैसलमेर जिले में बड़ी संख्या में पवन ऊर्जा संयंत्र लगे हैं। इनके बड़े-बड़े टॉवर गोड़ावण की उड़ान में बाधा पहुँचा रहे हैं। इनकी बाउंड्री के तारों में उलझकर कई गोड़ावण मर चुके हैं। अब तो हालात यह है कि जहाँ-जहाँ पवन संयंत्र स्थापित किये गए हैं। वहाँ से गोड़ावण बिल्कुल विलुप्त हो गए हैं।
जैसलमेर सांस्कृतिक एवं धरोहर संरक्षण समिति के अनुसार नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 6 सितम्बर 2016 को गोड़ावण विचरण क्षेत्र में पवन ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने पर रोक लगा दी। डीएनपी की सीमा से लगते इलाके को इको सेंसटिव जोन भी घोषित किया गया। इसके बावजूद डीएनपी की सीमा से लगते इको सेंसटिव जोन में विंड मील कम्पनी को नियम विरुद्ध भूमि आवंटन की गई। जहाँ कम्पनी ने दिसम्बर माह में दो संयंत्र भी स्थापित कर दिये गए हैं। वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट देहरादून व वन विभाग राजस्थान की गोड़ावण पर जारी रिपोर्ट वर्ष 2014 में कन्नोई, सलखा व कुछड़ी इलाकों को गोड़ावण का विचरण क्षेत्र बताया है। इसमें यह भी अनुशंषा की गई थी कि हाई टेंशन लाइन को भी भूमिगत किया जाये लेकिन अभी न तो कम्पनी और न ही स्थानीय प्रशासन इन निर्देशों का पालन कर रहा है।
गोड़ावण को दुनिया में ग्रेट इण्डियन बस्टर्ड नाम से जाना जाता है। यह पक्षी अत्यन्त ही शर्मिला है और सघन घास में रहना इसका स्वभाव है। पंजाब में इसे तुगपर, दक्षिण भारत में मालधोक और बुन्देलखण्ड में हुकना या सोहन चिड़िया भी कहा जाता है। यह एक बड़े आकार का पक्षी है। गोड़ावण में बहुपत्नी प्रवृत्ति पाई जाती है। प्रत्येक नर का अपना क्षेत्र होता है।
गोड़ावण कभी भी घोसला नहीं बनाता है, घास के मैदान में ही मादा अंडे देती है एक बार में 2 से 5 अंडे देती है और उनको सेने और पालन पोषण की जिम्मेदारी भी मादा गोड़ावण की ही होती है। गोड़ावण पहले गुजरात, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, मध्य प्रदेश समेत देश के 11 राज्यों में पाया जाता था लेकिन अब यह पक्षी मुख्य रूप से राजस्थान तथा सीमावर्ती पाकिस्तान में दिखाई देता है।
राजस्थान के जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, अजमेर, भीलवाड़ा, टोंक और पाली जिलों देखे जाते थे अब केवल मात्र डेजर्ट नेशनल पार्क में ही नाम मात्र के बचे है। उड़ने वाले पक्षियों में यह सबसे अधिक वजनी है। करीब चार फीट ऊँचाई होता है। भारी वजन के कारण यह ज्यादा उड़ नहीं पाता है लेकिन बहुत तेजी से दौड़ता और छलांग लगाता है। इसकी चाल और खान पान का तरीका भी राजसी होता है ये सिर्फ सुबह और शाम को ही खाता है। मरुस्थल में जीने के अत्यन्त अनुकूल है। बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है। भोजन में निहित पानी से ही अपना काम चला लेता है। गोड़ावण सर्वाहारी है वनस्पती कीड़े चूहे, साँप, छिपकली, गेहूँ, ज्वार, बाजरा, बेर, कैर मुख्य भोजन है।
मरू प्रदेश में पहले इन्दिरा गाँधी नहर गोड़ावण के विनाश का कारण बनी तो अब पवन और सौर ऊर्जा के बड़े-बड़े संयंत्र इसकी आजादी में खलल डाल रहे हैं। दरसल इन्दिरा गाँधी नहर के साथ ही राजस्थान में हरित क्रान्ति की शुरुआत हुई। मरू भूमि सिंचित खेती में बदल गई। खेतों में कीटनाशक और अन्य रसायनों के प्रयोग से गोड़ावण लुप्त प्राय हो गया। आबादी का बढ़ना, गोचर भूमि और चारागाह क्षेत्रों का सीमटने से भी गोड़ावण की संख्या कम हुई।
राज्य पक्षी गोड़ावण के सरंक्षण के लिये सरकार ने जैसलमेर में डेजर्ट नेशनल पार्क की स्थापना की है। पार्क 38 हजार वर्ग किलोमीटर इलाके में फैला है। अब डेजर्ट नेशनल पार्क में विदेशी परिन्दों की आश्रय स्थली भी बनता जा रहा है। वन विभाग की ओर से पार्क में बाहरी देशों से आने वाले मेहमान परिदों का भी संरक्षण किया जाएगा। राज्य सरकार को प्रजनन केन्द्र स्थापित करना था लेकिन अब तक सरकार इसके लिये स्थान ही तय नहीं कर पाई है। ऐसे में विलुप्ती के कगार पर खड़े राज्य पक्षी का संरक्षण कैसे हो पाएगा। पर्यावरण प्रेमियों के साथ ही हम सबके सामने एक बड़ा सवाल है।
सरकार की ढुलमुल नीतियों के कारण राज्य पक्षी गोड़ावण का संरक्षण नहीं हो पा रहा है। सरकार को गोड़ावण संरक्षण के लिये ठोस नीति बनानी चाहिए। डेजर्ट पार्क के इको जोन में आने वाले विद्युत संयंत्र बन्द होने चाहिए। सरकार को गोड़ावण प्रजनन केन्द्र भी तत्काल खोलना चाहिए। गोड़ावण शान्ति प्रिय और शर्मिला पक्षी है। बड़े-बड़े संयंत्र और विद्युत लाइनें इसे बाधा पहुँचा रही हैं।
राष्ट्रीय मरु उद्यान के उपवन सरंक्षक अनूप बताते हैं कि देहरादून के भारतीय वन्य प्राणि संस्थान ने जैसलमेर जिले में अन्तिम बार गोड़ावण की गणना मार्च 2016 की थी। गणना के अनुसार 140 गोड़ावण मौजूद थे।