दुनिया की सभी संस्कृतियों का उद्गम पानी के अस्तित्व से जुड़ा हुआ है। भटकने वाले मानव की स्थिरता पानी की वजह से ही आई। नदी किनारे पर आने के बाद मानव की बहुत सी आवश्यकताएँ पूरी होने लगीं। इस वजह से वह नदी किनारे पर स्थिर हुआ और वहाँ से ही उसका सभी अर्थों से सही विकास शुरू हुआ। उसे और उसके जानवरों का बिना अवरोध पानी मिलने लगा और नदी किनारे पर ही रहने के लिये वह लालायित हुआ। खेती करना शुरू होने के बाद उसे पानी का महत्त्व समझ में आ गया। पानी का खुद को स्वच्छ रखने के लिये, जानवरों के लिये, खेती के लिये, यातायात के लिये जैसे-जैसे उपयोग बढ़ने लगा वैसे-वैसे जल संस्कृति अस्तित्व में आने लगी, विकसित होने लगी और उसे स्थिरता मिली।
जिन चीजों से उसे स्थिरता मिली उन चीजों को ही उसने भगवान माना। पानी यह दो धारों वाला शस्त्र है, यह भी उसके ध्यान में आ गया। पानी जीवन के लिये जिस प्रकार उपकारक है, उसी प्रकार वह प्रलय भी कर सकता है यह उसके ध्यान में आने लगा। इसलिये पानी अपने नियंत्रण में रखना अवश्यमेव है यह वह जान गया। अगर पानी को अपने जीवन में इतना महत्त्व है तो उसे बह जाने से बचाकर रोककर रखा तो वह ज्यादा हितकारी होगा, यह भावना बलवान हुई।
पानी की उपयोगिता ध्यान में आते ही उसको बड़े पैमाने पर भूगर्भ से निकालना और नदियों से पानी लेना शुरू हुआ। जब उसमें ज्यादती होने लगी तब जो पानी उसकी संस्कृति को खाद पानी डाल रहा था वही पानी संस्कृति के विनाश का भी कारण हो सकता है, यह भी उसके ध्यान में आया। पानी के अभाव से संस्कृति का लय होने की गवाही इतिहास दे रहा है। इस पार्श्व भूमि पर हम पानी का जिस प्रकार फिलहाल उपयोग कर रहे हैं, वह विनाश की दिशा से जाता है क्या? ऐसा शक आने लगा है। पानी के लिये हम एक-दूसरे के छाती पर सवार होने लगे हैं, एक-दूसरे का द्वेष करने लगे हैं। प्रदेश, राज्य, अलग-अलग देश इन सभी में पानी के लिये निर्माण होने वाले झगड़े यह तो शुरुआत है। अभी पानी का सही मायने में अकाल निर्माण हुआ नहीं, अगर वह हो गया तो क्या होगा इसका विचार भी मन को अस्वस्थ कर देता है।
पानी को इकट्ठा करना त्रासदी बन सकता है
बंधारों द्वारा फिलहाल जो पानी इकट्ठा करना चालू है, उस वजह से भविष्य में अपने सामने कौनसी समस्या खड़ी हो सकती है यह सोचने पर हमें समय ने मजबूर किया है। कोई भी सम्पत्ति जब बेशुमार हो जाती है तब उसे पाने के लिये कलह होने लगता है। जो राजनीति पहले नहीं थी वह पानी इकट्ठा होने से आज तीव्रता से महसूस होने लगी है। जायकवाड़ी डैम के सन्दर्भ में मैंने एक लेख पढ़ा। वह डैम बनने की वजह से पानी को रुकवा दिया गया पर उस वजह से आगे बहाव में जो व्यापक जल सिंचन योजना साकार हुई, उसमें जो रुकावट आई उसका क्या? जायकवाड़ी डैम आज भरता नहीं ऐसा हम चिल्लाते हैं इसका कारण है इस डैम के ऊपर गोदावरी नदी और उसकी सहायक नदियाँ इनके बहाव में आठ बंधारे बनाए गए वह कारण है यह हमने जाना। एक का पेट भरने के लिये दूसरे के होठों से निवाला निकाल लेने का ही यह प्रयास नहीं है क्या? साँप मेंढक को पकड़ता है, गरुड़ साँप को पकड़ता है, ऐसी ही एक शृंखला हम निर्माण कर रहे हैं इसका ज्ञान हमें है क्या?
इतने डैम बनाकर हम क्या करते हैं? मेरे खेत में से मैं पानी बहने देता हूँ वह नाली के जरिए नदी में जा मिलता है। उस नदी पर 100 किमी दूरी पर डैम बनाते हैं। वहाँ रुके हुए पानी का मैं क्या करता हूँ? तो वह मैं फिर से मेरे खेत पर लाता हूँ। कितना बड़ा प्रयास है यह! मेरे खेत का पानी फिर से मेरे ही खेत में लाने से मैंने क्या साध लिया? वह देखो-
1. करोड़ों रुपए खर्च किये
2. करोड़ों रुपयों का खर्च करने वाली यंत्रणा स्थायी रूप से निर्माण की
3. डैम के पानी का उपयोग कौन करेगा इसलिये कलह शुरू हुआ
4. इस वजह से एक के खेत का पानी दूसरे के खेत में मोड़ना शुरू हुआ
5. फसल की गलत पद्धति कायम करने का प्रयास हुआ
6. जमीन कब्जे में लेने का सवाल पैदा हुआ
7. लोगों के पुनर्वास का सवाल सामने आया
8. पानी की राजनीति शुरू हुई
9. जितनी क्षमता है उससे ज्यादा बंधारों का काम हाथ में लिया गया
10. अनगिनत बंधारों के काम पैसा न होने से बुरी हालत में लाकर रख दिये गए।
11. वह बंधारे, डैम पूरे करने के लिये 69,000 करोड़ रुपयों की जिम्मेदारी सर पर लाकर रख दी।
12. जनता की उम्मीदें बढ़ाकर रख दी इस वजह से जनक्षोभ हुआ
13. ठेकेदार मालदार हुए
14. रोककर रखे गए पानी की सही वितरण व्यवस्था बनाई न जाने से डैम बाँधने का उद्देश्य ही असफल रहा।
इतना पानी इकट्ठा करने की असल में आवश्यकता है क्या?
यह सब जो चल रहा है वह पानी के विधान के उलट है। पानी का विधान हमें बताता है कि बरसात जहाँ होती है वहीं उसे रोककर रखो (Catch the rain where it falls) उसे बहने दिया तो क्या होता है इसकी फेहरिस्त का हमने अभी अध्ययन किया। साथ ही अनुभव कहता है अगर असल में इस तरह से पानी रोककर रखा गया तो परिस्थिति अच्छी तरह से सुधारी जा सकती है।
निम्न उदाहरण देखो-
1. श्री. अन्ना हजारे का रालेगणसिद्धी का प्रयोग
2. श्री पोपटराव पवार का हिवरेबाजार का प्रयोग
3. श्री. अमरिशभाई पटेल का शिरपूर का प्रयोग
4. श्री. राजेंद्र सिंह का राजस्थान का प्रयोग
5. गुजरात राज्य का प्रयोग
ऊपर जो फेहरिस्त दी गई है वे सभी प्रदेश कम बरसात वाले प्रदेश समझे जाते हैं। फिर भी इन सभी प्रदेशों ने पानी प्रश्न को हराया है। इसका महत्त्व का कारण यह है कि वहाँ पानी रोकने के एवं पानी सोखने के प्रयोग बहुत सफल हुए। कुछ जगहों पर साल में तीन फसलें लेने में यहाँ के किसान सफल हो गए। अमरिशभाई पटेल के प्रयोग छोड़कर बाकी सभी जगह यह सफलता लोगों के सहभागिता से मिली है। शिरपूर की सफलता देखकर उसी प्रकार के प्रयास वर्धा एवं जालना जिले में भी शुरू किये गए हैं। अमरिशभाई पटेल के सहयोगी श्री. सुरेश खानापूरकर इनका कहना है कि ऐसे प्रयोग दूसरी जगह भी सफल हो सकते हैं।
सुरेश खानापूरकर जी ने एक और महत्त्व का विषय सामने रखा है। बड़े बंधारों के पानी का फायदा देश के सिर्फ 17 प्रतिशत जनता को मिलता है। बची हुई जनता का क्या? ऐसा सवाल वह पूछते हैं। उन्होंने ऐसा कौन सा पाप किया है कि उनके पानी का प्रश्न हल करने की दृष्टि से होने वाले प्रयास बहुत कम दिखते हैं। सुखी खेती यह अपने देश को मिला हुआ एक शाप है। जब तक सूखी खेती करने वाले किसानों की पानी की समस्या हल नहीं होती तब तक पानी की समस्या सही मायने में हल नहीं हो सकती ऐसी उनकी राय है। उनके प्रयोग सब जगह किये गए तो इस प्रश्न को हल कर सकेंगे ऐसा उन्हें विश्वास है।
भारत के सम्मुख अलग प्रश्न
भारत के सम्मुख एक अलग ही प्रश्न महत्त्व का बना है। बढ़ती हुई जनसंख्या की वजह से पानी की हर एक के लिये उपलब्धि कम होती जा रही है एवं बढ़ते हुए जल प्रदूषण की वजह से जो पानी उपलब्ध है वह पानी भी प्रयोग में लाने जैसा रहा नहीं। भूपृष्ठ की नदियाँ, तालाब बेकार पानी का डबरा बना है। पहले ही पृथ्वी पर मीठे पानी की मात्रा कम है, उसमें इतनी बड़ी मात्रा में वह अगर प्रदूषित रूप में उपलब्ध हो तो इंसान जिएगा कैसे यह सवाल आता है। सवाल यहाँ खत्म नहीं होता। भूपृष्ठ का पानी प्रदूषित होकर फिर से जमीन में रिसना शुरू होने से भूजल भी प्रदूषित हो रहा है। अलग-अलग उपायों से भूपृष्ठ का पानी शुद्ध कर सकेंगे पर भूजल शुद्ध करना मुश्किल समझा जाता है।
इस प्रदूषण के परिणाम अब दिखने लगे हैं। कई तरह की बीमारियाँ जैसे कॉलरा, मलेरिया, टाइफाइड, डेंगू, एन्फ्लूएंजा, गैस्ट्रो, जुलाब, बड़ी मात्रा में फैलने लगी है। एक मल विसर्जन में एक करोड़ से ज्यादा विषाणु साथ ही 1000 परोपजीवी और 100 कृमि के अंडे होते हैं। बहुत-सी जगहों पर मल विसर्जन जहाँ पानी इकट्ठा होता है वहीं किया जाता है। इस वजह से कितनी बड़ी मात्रा में जल प्रदूषण होता होगा इसकी कल्पना कर सकते हैं। इसके सिवाय कारखाने और कृषि व्यवसाय भी बड़ी मात्रा में जल प्रदूषण करते हैं। आज हम जिस परिस्थिति का अनुभव ले रहे वही परिस्थिति इंग्लैंड में 200 साल पहले थी। लन्दन की टेम्स नदी मल-मूत्र के पानी से पूरी प्रदूषित हो गई थी। इतना ही नहीं वह गन्दगी भरे पानी के गन्ध से वहाँ की पार्लियामेंट हैरान हो गई थी। पर अंग्रेज जल्दी ही सम्भल गए और उन्होंने इस समस्या को हल किया और आज वही नदी लन्दन का सौन्दर्य बढ़ा रही है। सारे भारत की जनता शौचालय का प्रयोग करने के लिये अभी 200 वर्ष लगेंगे ऐसा अनुमान एक विश्व संगठन ने किया है। मुक्त हगनहटी की वजह से पोलियो जैसी बीमारी होती है। सिर्फ इसी वजह से भारत को पोलियो मुक्ती के लिये झगड़ना पड़ रहा है।
भारतीय समाज व्यक्तिगत स्वच्छता के सम्बन्ध में जागृत है। पर जब सामाजिक स्वच्छता का सवाल आता है तब बहुत निराशाजनक चित्र दिखता है। हर एक घर से निकले सूखे और गीले कचरे का किस प्रकार निस्तारण करना यह प्रश्न आज उठ रहा है। इतने दिन ग्रामीण भारत सावधान नहीं था। शहर का कचरा गाँव के बाहर ले जाकर किसी खेड़े में डाल दिया तो किसी को कोई आपत्ति नहीं थी। पर अब वैसी परिस्थिति रही नहीं। कचरा डाला तो आन्दोलन होने लगे हैं।
अपनी संस्कृति टिकाना है कि नहीं यह वास्तव में प्रश्न अपने सामने है। यह प्रदूषण अगर इसी प्रकार चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब लाखों की संख्या में शुद्ध पानी के अभाव में जानें जाएँगी एवं इस विकास के फल चखने के लिये लोग ही नहीं बचेंगे।
Source
जलसंवाद, मार्च 2018