जल ही जीवन है - भाग 2
महाराष्ट्र ने पिछले पांच सालों में से तीन में सूखा घोषित किया है। राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 70 प्रतिशत भाग अर्ध-शुष्क क्षेत्र में स्थित है, जिससे यह जल की कमी की चपेट में है; यह स्थिति सूखे सेऔर अधिक बिगड़ जाती है। इन प्रभावित क्षेत्रों में कृषि उत्पादन और आय में हर वर्ष वृहत उतार-चढ़ाव होता है और यहाँ गरीबी भी बहुत अधिक है, जिसके कारण ये क्षेत्र पिछड़े हुए हैं और कृषि उपज भी कम है।
यूनिसेफ महाराष्ट्र ने 2015-16 में राज्य के आपदा प्रबंधन, राहत और पुनर्वास विभाग के सहयोग से मराठवाड़ा क्षेत्र में समुदायों, विशेष रूप से बच्चों और महिलाओं, पर वर्तमान सूखे और सूखे के समान स्थितियां और सम्बन्धित परिणामों और उनका सामना करने के तरीकों को आंकने के लिए त्वरित मूल्यांकन किया। यह पाया गया कि लगभग आधे गांवों में पीने और अन्य घरेलू काम काज के लिए जल का एक ही स्रोत था, 27 प्रतिशत किसानों के पास कोई जल प्रबंधन तकनीक नहीं थी, और यह कि वर्ष की जल अल्पता वाली अवधि के दौरान, 84 प्रतिशत परिवारों ने सिंचाई की चुनौतियों का सामना किया। जल की कमी से महिलाएं अधिक प्रभावित हुई। इसने महिलाओं और लड़कियों पर घरेलू कार्यों का बोझ तीन गुना कर दिया है और वे जल, ईंधन, चारा लाने के लिए और यदा कदा काम खोजने के लिए और लम्बी यात्रा करती हैं। इसके कारण उनकी स्वास्थ्य रक्षा, स्वच्छता और पोषण सम्बन्धी परिणामों पर असर पड़ता हैं- और इन सबका कई पीढ़ियों तक गम्भीर प्रभाव देखा जा सकता है।
कुल मिलाकर, समुदाय-स्तर पर प्रबंधन की कमी से शोषण और अव्यवस्था को रोकने की चुनौतियां पैदा हुई। इसलिए, यूनिसेफ और कार्यान्वयन साझेदारों ने महाराष्ट्र सरकार के साथ मिलकर एक प्रायोगिक परियोजना लागू की जो इन मुद्दों से प्रभावित समुदायों के भीतर लचीलेपन से सम्बन्धित है।
'महिलाओं के नेतृत्व वाले जल, स्वच्छता, स्वास्थ्य रक्षा और लचीली कार्यप्रणाली प्रोजेक्ट' या डब्ल्यू-शार्प 2018 में लागू किया गया था, जो कि स्थानीय सन्दर्भों और मराठवाड़ा के समुदायों के बीच संचालित जोखिम-सूचित योजना की प्रभावशीलता का परीक्षण करने के लिए किया गया था विशेष रूप से जल अल्पता वाली अवधियों यानि मार्च से जून, जब जल की उपलब्धता सबसे कम होती है।
प्रायोगिक परियोजना ने महाराष्ट्र के दो सूखाग्रस्त ब्लॉकों में 10,000 परिवारों वाले 100 गांवों में जल, आजीविका और खाद्य सुरक्षा बढ़ाने का प्रस्ताव किया। सबसे अधिक प्रभावित होने वाले समूहों में जलवायु के प्रभाव झेलने में सक्षम कार्यप्रणालियों का गठन करने के लिए, डब्ल्यू-शार्प ने परियोजना के प्रमुख पहलू के रूप में महिलाओं और प्रभावित होने वाले परिवारों की भागीदारी को लक्षित किया। इस परियोजना ने महिलाओं को प्रमुख परिवर्तन एजेंटों के रूप में स्थान देकर एक अभिनव दृष्टिकोण अपनाया, जो साझा मुद्दों पर अपने समुदायों, स्थानीय निकायों और सरकारी संस्थानों को जुटाने में बढ़ी। इसने अंततः हाशिए पर पड़ी महिलाओं को ऐसा सक्षम वातावरण प्रदान किया जो बढ़ती अनिश्चतताओं की बहुलता का सामना करने की युक्तियां सिखाता है।
डब्ल्यू-शार्प कैसे काम करता है ?
दोनों ब्लॉकों से पचास-पचास गांवों क समुदायों की मौजूदा अक्षमताओं और स्थानीय शासन में महिलाओं की भागीदारी के आधार पर चुना गया था। समावेशिता सुनिश्चित करने के लिए, प्रत्येक लक्षित गांवों के 100 सबसे कमजोर घर शामिल थे। इसमें सीमांत किसानों के घर और वे घर शामिल थे जिनके मुखिया महिलाएं और भूमिहीन श्रमिक थे। पांच साल से कम उम्र की लड़कियों या बच्चों वाले परिवारों पर भी ध्यान केन्द्रित किया गया था, ताकि घर के मुखिया से उनके बच्चों को आजीविका और पोषण, सम्बन्धी लाभ पहुंचने को बढ़ावा दिया जा सके। कुल मिलाकर, 10,000 घरों को परियोजना में शामिल किया गया था।
परियोजना ने अपने सभी विभिन्न पहलुओं में निरंतरता और लिंग सशक्तीकरण के मसले को एकीकृत किया। समुदाय की महिला नेताओं, ‘आरोग्य सखियों’ (स्वास्थ्य मित्रों) का चयन और प्रशिक्षण यूनिसेफ और कार्यान्वयन सहभागी द्वारा स्वच्छता, जल सुरक्षा और जलवायु-अनुकूल कृषि कार्य प्रणालियों को बढ़ावा देने के लिए किया गया। समुदाय के नेताओं की यह टास्क फोर्स प्रत्येक गांव में स्थापित की गई ती और इसे निवासियों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी जिससे महत्त्वपूर्ण मुद्दों के बारे में जागरूकता और जानकारी बढ़े। कैस्केड प्रशिक्षण मॉडल के माध्यम से, 100 सखियों ने अन्य महिलाओं को प्रशिक्षित किया और परियोजना के अंत तक, 500 से अधिक महिलाएं स्कूल और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के साथ-साथ ग्राम स्तर के नेताओं के साथ मिलकर जल शासन और पोषण-संवेदी खेती को बढ़ावा देने के लिए सहयोग कर रही थीं।
इस परियोजना का एक प्रमुख परिणाम स्थानीय शासन में सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना और सम्बन्धित सरकार और नागरिक समाज संस्थानों के साथ साझेदारी को बढ़ावा देना था। इसने डब्ल्यू-शार्प को पीयर लर्निंग एक्सेचेंजों और संवाद मंचों के लिए स्थान प्रदान करने का सुभीता प्रदान किया। समुदाय के नेताओं के लिए प्रशिक्षणों का आयोजन किया गया ताकि सामुदायिक व्यवहार परिवर्तनों की ट्रैकिंग और मॉनिटरिंग प्रणालियों के 7-स्टार टूल के माध्यम से समुदाय की एकरूपता और गहन कनेक्टिविटी सुनिश्चित की जा सके और आशा व आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं जैसे सेवा प्रदाताओं के साथ बेहतर कन्वर्जेन्स स्थापित किया जा सके। इन प्रयासों की प्रभावकारिता से जल संरक्षण प्रणालियों और सतत प्रबंधन के बारे में जागरूकता और कार्यान्वयन में इजाफा हुआ।
प्रमुख पहलें
घरेलू स्तर पर कार्य
आरोग्य सखियों ने घरेलू स्तर पर बेहतर जल प्रबंधन प्रणालियों से सम्बन्धित प्रासंगिक जानकारी और प्रणालियों पर चर्चा करने के लिए अपने गांवों में महिला समूहों को जुटाया। महिलाओं ने अपशिष्ट जल का पुनः उपयोग करने, जल बजट और सोख गड्ढों और अन्य जल-बचत तकनीकों के माध्यम से भूजल प्रबंधन को अपनाने के बारे में सीखा और अमल में लाया।
सभी लक्षित घरों द्वारा जल बजटकार्य को अमल में लाया गया था;
- सभी सार्वजनिक जल स्रोतों को स्वच्छता निगरानी योजनाओं में शामिल किया गया;
- सभी लक्षित गांवों में कुल 1,392 सोखने वाले गड्ढों का निर्माण किया गया जिससे पुनः उपयोग के लिए धूसर जल एकत्रित किया जा सके; तथा
- दोनों ब्लॉकों के विभिन्न स्कूलों में 28 समूहबद्ध हैंडवाशिंग स्टेशन स्थापित किए गए।
समुदाय स्तरीय कार्य
समुदायों से जलवायु अनुकूल प्रणालियों और आजीविका के विकल्पों पर चर्चा की गई। इसमें अनुकूलक दीर्घकालिक प्रणालियां; जैव उर्वरकों को अपनाने के प्रति जागरूकता; मृदा स्वास्थ्य में सुधार, जैव विविधता संरक्षण और जल कार्यक्षम प्रौद्योगिकियों आदि शामिल हैं।
- समुदाय के नेताओं और 2000 महिला किसानों को अनुकूलक प्रणालियों में प्रशिक्षित किया गया;
- 1735 महिला किसान वर्तमान में मिश्रित फसल खेती में संलग्न है;
- 124 वर्मीकम्पोस्ट बेड लगाए गए;
- 2650 परिवार अल्प जल-सघन चारे की खेती करते हैं और पशुधन के लिए जल आवंटन प्रणाली अमल में लाते हैं;
- 1470 परिवारों ने पोषण से भरपूर आहारों को बढ़ावा देने हेतु खुद के लिए किचन गार्डन बनाएं।
सम्मिलित शासन
इस परियोजना का अक अनूठा पहलू प्रमुख राष्ट्रीय कार्यक्रमों की सहायता से समुदायों को सशक्त बनाने का था। संमिलित निधि से सोखने वाले गड्ढों का निर्माण, शौचालय और नए कृषि नवाचारों को अपनाया गया। स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण (एसबीएम-जी), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम और एटीएमए (कृषि प्रौद्योगिकी और प्रबंधन एजेंसी) से उपलब्ध फंडों से संयुक्त रूप से 6,35,00,000 रुपए प्राप्त हुए।
100 अनुकूलनशील गांव स्थिरता की ओर 100 कदम
डब्ल्यू शार्प को स्वच्छ भारत मिशन और जल शक्ति अभियान के अनुरूप तैयार किया गया था, दोनों ही समुदाय के नेतृत्व में अमल में लाई जाने वाली कार्यप्रणालियों के माध्यम से पर्यावरणीय संसाधनों की सुरक्षा का समर्थन करते हैं। सरकार इन गांवों में प्रगति का निरीक्षण करना जारी रखेगी जिससे बाकी क्षेत्रों में इसे लागू करने की सम्भावना का आकलन किया जा सके। इस कार्यक्रम के तहत भविष्य में भी जल, ऊर्जा, भूमि और भोजन के बीच पारस्परिक सम्बन्ध पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा और इसे उपजी सीखों को नए जल जीवन मिशन और एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन पहल में एकीकृत करने के अवसरों की तलाश रहेगी। ये प्रयास सतत विकास लक्ष्य-6 के महत्वाकांक्षी आशयों को स्थानीय स्वरूप प्रदान करेंगे और पारिस्थितिक चक्र को सम्पूर्ण कर स्वच्छता की पहुंच के लाभों को बनाए रखेंगे।
डब्ल्यू-शार्प का लक्ष्य ‘सूखे की आशंका वाले क्षेत्रों में खाद्य और जल सुरक्षा के साथ एक लिंग संवेदनशील और सक्षम समुदाय’ को बनाए रखना है। तभी तो जायज तौर पर इसकी सबसे बड़ी उपलब्धि महिला नेताओं का उदय था। अपनाई गई पहलों में से कई को महिलाओं ने परिवर्तन दूत के रूप में आरम्भ किया- वे महिलाएं जो अपने दैनिक जीवन में जलवायु परिवर्तन का सामना करने में अग्रणी हैं- जिन्होंने चुनौतियों का सामना किया और अपने समुदायों के लिए महत्व रखने वाली दीर्घकालिक कार्यप्रणालियों की संरचना को बदल डाला। -डब्ल्यू-शार्प ने साबित किया है कि इस लक्ष्य की ओर एक छोटा कदम उठाया गया है, और ऐसे कदमों को साथ-साथ लेने से एक स्वस्थ, मजबूत और अधिक सक्षम समुदाय का निर्माण होता है।
यहां पढ़ें सभी भाग
- भाग 1 - जल ही जीवन है
- भाग 3 - पर्यावरण और शासनः राजस्थान में फ्लोरोसिस के रोकथाम की कहानी
- भाग 4 - पर्यावरण और अन्तरानुभागीयताः भारत में पर्यावरण की गुणवत्ता पर जल और स्वच्छता नीतियों का प्रभाव