साँझ के बादल

Submitted by admin on Sun, 09/22/2013 - 16:09
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काव्य संचय- (कविता नदी)
साँझ के बादलये अनजान नदी की नावें
जादू के-से पाल
उड़ाती
आतीं
मंथर चाल!

नीलम पर किरनों
की साँझी
एक न डोरी
एक न माँझी
फिर भी लाद निरंतर लातीं
सेंदुर और प्रवाल!

कुछ समीप की
कुछ सुदूर की
कुछ चंदन की
कुछ कपूर की
कुछ में गेरू, कुछ में रेशम
कुछ में केवल जाल!

ये अनजान नदी की नावें
जादू के-से पाल
उड़ाती
आतीं
मंथर चाल...