हेमबर्ग (जर्मनी), (आईएएनएस)
वैसे भी जल चक्र पूरी तरह से सूरज के भूमिका पर ही निर्भर होता है। जर्मनी के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे जल प्रशोधन संयंत्र का निर्माण किया है जिसे सौर ऊर्जा की सहायता से संचालित किया जाएगा। इस संयंत्र के तैयार होने से सूखा प्रभावित इलाको में उम्मीद की एक नई किरण जागी है।
फ्राइबर्ग स्थित 'फ्रानहोफेर इंस्टीटयूट फार सोलर एनर्जी सिस्टम' (आईएसई) के शोधकर्ताओं ने कुछ समय पहले सौर ऊर्जा द्वारा संचालित होने वाले एक छोटे जल संयंत्र पर एक शोध किया था। इस प्रयोग के दौरान वैज्ञानिकों को ज्ञात हुआ कि ऐसे जल प्रशोधन संयंत्र की सहायता से प्रतिदिन 120 से 150 लीटर पेयजल को शुद्ध किया जा सकेगा।
इस शोध से जुड़े वैज्ञानिक जोआचिम कोस्चिकोवस्की ने आईएएनएस को बताया, ''विलवणीकरण प्रक्रिया के माध्यम से इस संयंत्र में खारे पानी को शुध्द किया जा सकेगा।''
उन्होंने बताया कि अफ्रीका और भारत के ग्रामीण इलाकों में यह संयंत्र काफी लाभदायक साबित होगा। गैन कैनेरिया और जार्डन में इस संयंत्र ने अपनी उपयोगिता को साबित कर दिया है।
वैज्ञानिकों ने 'रिवर्स ओस्मोसिस' (आरओ) की तुलना में जल शुध्दीकरण की इस प्रक्रिया को अधिक उचित ठहराया है। समाचार एजेंसी 'डीपीए' के अनुसार इस संयंत्र की सहायता से 1 हजार लीटर पानी को शुध्द करने में 10 यूरो ( 15 डालर) खर्च होंगे।
वैज्ञानिकों का मानना है कि सौर ऊर्जा से संचालित होने वाला एक छोटा संयंत्र प्रतिदिन15 लोगों के लिए पेयजल शुध्द कर सकता है।
साभार - इंडो-एशियन न्यूज सर्विस
वैसे भी जल चक्र पूरी तरह से सूरज के भूमिका पर ही निर्भर होता है। जर्मनी के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे जल प्रशोधन संयंत्र का निर्माण किया है जिसे सौर ऊर्जा की सहायता से संचालित किया जाएगा। इस संयंत्र के तैयार होने से सूखा प्रभावित इलाको में उम्मीद की एक नई किरण जागी है।
फ्राइबर्ग स्थित 'फ्रानहोफेर इंस्टीटयूट फार सोलर एनर्जी सिस्टम' (आईएसई) के शोधकर्ताओं ने कुछ समय पहले सौर ऊर्जा द्वारा संचालित होने वाले एक छोटे जल संयंत्र पर एक शोध किया था। इस प्रयोग के दौरान वैज्ञानिकों को ज्ञात हुआ कि ऐसे जल प्रशोधन संयंत्र की सहायता से प्रतिदिन 120 से 150 लीटर पेयजल को शुद्ध किया जा सकेगा।
इस शोध से जुड़े वैज्ञानिक जोआचिम कोस्चिकोवस्की ने आईएएनएस को बताया, ''विलवणीकरण प्रक्रिया के माध्यम से इस संयंत्र में खारे पानी को शुध्द किया जा सकेगा।''
उन्होंने बताया कि अफ्रीका और भारत के ग्रामीण इलाकों में यह संयंत्र काफी लाभदायक साबित होगा। गैन कैनेरिया और जार्डन में इस संयंत्र ने अपनी उपयोगिता को साबित कर दिया है।
वैज्ञानिकों ने 'रिवर्स ओस्मोसिस' (आरओ) की तुलना में जल शुध्दीकरण की इस प्रक्रिया को अधिक उचित ठहराया है। समाचार एजेंसी 'डीपीए' के अनुसार इस संयंत्र की सहायता से 1 हजार लीटर पानी को शुध्द करने में 10 यूरो ( 15 डालर) खर्च होंगे।
वैज्ञानिकों का मानना है कि सौर ऊर्जा से संचालित होने वाला एक छोटा संयंत्र प्रतिदिन15 लोगों के लिए पेयजल शुध्द कर सकता है।
साभार - इंडो-एशियन न्यूज सर्विस