शहर के आसमान में

Submitted by Hindi on Thu, 10/09/2014 - 09:35
Source
साक्ष्य मैग्जीन 2002
शहर को नदी नहीं
नदी का जल चाहिए

उन्हें जल भी चाहिए, नदी भी
अपनी हवा, धरती और आकाश भी
और आग भी

फरियाद के लिए वे शहर आए हैं
और आधी रात इस खास सड़क पर
बैठे हुए फुटपाथ पर गा रहे हैं

पकती हुई रोटी की गंध
ताजे धान की गमक
उठ रही है इस गीत से

इस गीत के आकाश में
उड़ रहे हैं सुग्गे

हिरण कुलांचे भर रहे हैं
इस गीत के जंगल में
और कोई बाघ उनका पीछा
नहीं कर रहा है इस समय

अलाव के इर्द-गिर्द
अलाव के धुएं-सा यह गीत
उठ रहा है शहर के आसमान में