कपिल शर्मा/बिजनेस स्टैंडर्ड/ नई दिल्ली: पिछले दस सालों में दिल्ली में हुए औद्योगीकरण ने जहां एक ओर शहर की फिजां को बदला है वहीं दूसरी ओर कृषि को सीमित करके भूमिगत जल के लिए नई समस्याएं खड़ी कर दी है। अनुमानों के हिसाब से पिछले दस साल में दिल्ली का 60 फीसदी कृषि क्षेत्र समाप्त हो चुका है और इनकी जगह नई-नई औद्योगिक इकाइयां स्थापित हो चुकी है। कृषि विभाग के एक उच्च पदस्थ अधिकारी बताते हैं कि 2002 में दिल्ली में लगभग 6000 हेक्टेयर कृषि भूमि उपलब्ध थी।
जिसके 240 हेक्टेयर भाग पर भूमिगत जल से सिंचाई की जाती थी। बाकी की सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था यमुना नहर और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों से होती थी। लेकिन औद्योगिक क्षेत्रों के बनने से एक तो इन क्षेत्रों में होने वाली चने, धान, दाल और सब्जी की खेती बंद हो गई है। वहीं दूसरी ओर पानी की मांग बढ़ने से लोग भूमिगत जल का बिना सोचे समझे दोहन कर रहे हैं।
विज्ञान एंव पर्यावरण केन्द्र (सीएसई)के अधिकारियों ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि दिल्ली के बाहरी इलाकों जैसे नजफगढ़, बवाना, बुराड़ी, नरेला, कांझावाला, गोदीपुर, बदरपुर और द्वारका में कृषि भूमि को खरीद कर रिहायशी और औद्योगिक इकाइयों को स्थापित किया गया है।
औद्योगिक और रिहायशी इकाइयों के निर्माण होने के चलते इन इलाकों में बड़ी संख्या में लोग आकर बस गये है। ऐसे में पानी की मांग में लगभग दो से तीन गुनी तक बढ़ोतरी हो गई है। आपूर्ति अच्छी न होने और पानी की लगातार बढ़ती मांग के कारण लोग बोरिंग कर रहें है।
ऐसे में भूमिगत जल के उपभोग पर लगातार दबाव पड़ता जा रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि इन इलाकों में कृषि के होने से सिंचाई के समय जल की काफी बड़ी मात्रा भूमिगत हो जाती थी। ऐसे में भूमिगत जल के दोहन और स्तर पर एक संतुलन की स्थिति बनी रहती थी।
लेकिन औद्योगीकरण होने से यह संतुलन अब टूट गया है। अब भूमिगत जल का दोहन उसके रिचार्ज होने की क्षमता से ज्यादा हो रहा है। सीएसई के संयोजक सलाहुद्दीन बताते है कि महरौली, वसंतकुंज, गोदीपुर और मंडी में तो भूमिगत जलस्तर पहले से लगभग 50 मीटर तक गिर चुका है। इसके अलावा कांझावाला, टिकरीकला, उजवाह में 20 से 25 मीटर तक गिर गया है। धड़ाधड हो रहे औद्योगीकरण होने और भूमिगत जल के लगातार गिरने से पानी की जबरदस्त समस्या का खडा होना तय है। सरकारी आंकड़ों के हिसाब से दिल्ली में 1991 में ग्रामीण जनसंख्या लगभग 47 फीसदी थी जो 2001 में केवल 7 फीसदी ही बची है।