सूचना का अधिकार एक मौलिक अधिकार है जो विभिन्न अधिकारों तथा दायित्वों से अस्तित्व में आता है। वे हैः
हर व्यक्ति का सरकार – बल्कि कुछ मामलों में निजी संस्थाओं तक – से सूचनाएँ मांगने का निवेदन करने का अधिकार;
सरकार का निवेदित सूचनाओं को उपलब्ध कराने का कर्तव्य, बशर्ते उन सूचनाओं को सार्वजनिक न करने वाली सूचनाओं की श्रेणी में न रखा गया हो; और
नागरिकों द्वारा निवेदन किये बिना ही सामान्य जनहित की सूचनाओं को स्वयं अपनी पहल पर सार्वजनिक करने का सरकार का कर्तव्य।
भारतीय संविधान विशिष्ट रूप से सूचना के अधिकार का उल्लेख नहीं करता, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने काफी पहले इसे एक ऐसे मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दे दी थी जो लोकतांत्रिक कार्य संचालन के लिये जरूरी है। विशिष्ट रूप से कहें तो सर्वोच्च न्यायालय ने सूचना के अधिकार को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) द्वारा गारंटी प्राप्त बोलने व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अभिन्न अंग और अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटी प्राप्त जीवन के अधिकार के एक आवश्यक अंग के रूप में मान्यता दी है।
सूचना तक पहुँच बनाने का अधिकार वस्तुतः इस तथ्य को दर्शाता है कि सूचनाएँ जनता की धरोहर होती हैं, न कि उस सरकारी संस्था की जिसके पास ये मौजूद होती हैं। सूचना पर किसी विभाग या तत्कालीन सरकार का ‘स्वामित्व’ नहीं होता। सूचनाओं को जन सेवकों द्वारा जनता के पैसे से एकत्रित किया जाता है, उनके लिये सार्वजनिक कोष से पैसा अदा किया जाता है और उन्हें जनता के लिये उनकी धरोहर के रूप में संभाल कर रखा जाता है। इसका अर्थ है कि आपको सरकारी कार्रवाइयों, निर्णयों, नीतियों, निर्णय प्रक्रियाओं और यहाँ तक कि कुछ मामलों में निजी संस्थानों व व्यक्तियों के पास उपलब्ध सूचनाएँ मांगने/पाने का अधिकार है।
सूचना का अधिकार एक असीम अधिकार नहीं है। जहाँ सूचनाओं को उपलब्ध कराए जाने से जनहित को नुकसान पहुँच सकता है, वहाँ कुछ सूचनाओं को गुप्त रखा जा सकता है। उदाहरण के लिये, युद्ध के दौरान सैनिकों की तैनाती या आने वाले साल में कर की दरों में बढ़ोतरी या कटौती से सम्बन्धित जानकारी तब तक नहीं बतायी जानी चाहिए जब तक ऐसे खुलासे का फायदा गलत तत्वों को होने की अधिक सम्भावना रहे। इसके बावजूद, मुख्य सवाल हमेशा एक ही रहेगाः क्या सूचना को सार्वजनिक हित में उजागर करना जन हित में है या उसे गुप्त रखना?
5बेनेट कॉलमैन एंड कं. बनाम भारतीय संघ, एआईआर एससी 783, न्यायमूर्ति केके मैथ्यू का असहमतिपूर्ण निर्णय; उ.प्र. राज्य बनाम राज नारायण, एआईआर 1975 एससी 865; एस.पी. गुप्ता बनाम भारतीय संघ, एआईआर 1982 एससी 149; इंडियन एक्सप्रेस न्यूजपेपर्स (बांबे) प्रा.लि. बनाम भारत (1985) 1 एससीसी 641; डी.के. बासु बनाम पं. बंगाल राज्य (1997) 1 एससीसी 216; रिलायंस पेट्रोकेमिकल्स लि. बनाम इंडियन एक्सप्रेस न्यूजपेपर्स (बांबे) प्रा. लि. के स्वामी, एआईआर 1989 एससी 190