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गोमुख से गंगा सागर तक गंगा में मिलने वाली सभी नदियों को ‘नमामि गंगे’ परियोजना में शामिल किया गया है। नमामि गंगे में उत्तराखण्ड के पूरे गंगा बेसिन क्षेत्र को शामिल किया गया है और हरिद्वार के बाद गंगा के दोनों तरफ पाँच किमी प्रभाव क्षेत्र परियोजना में शामिल है। नमामि गंगे परियोजना की डीपीआर पूरी होने के बाद केन्द्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में हुई बैठक में तय हुआ कि गोमुख से गंगा सागर तक की साइटों को गूगल में डाला जाएगा। उधर हरिद्वार जिले में गंगा किनारे चल रही निर्माण गतिविधियों और वन्य क्षेत्र में अतिक्रमण को लेकर दाखिल याचिका पर एनजीटी ने उत्तराखण्ड सरकार और सम्बन्धित प्राधिकरण से जवाब माँगा है। जिसकी अगली सुनवाई पाँच जनवरी को होगी। गंगा में प्रदूषण की मात्रा बढ़ रही है इस बात की चिन्ता सभी को है। पर गंगा के पानी में क्यों प्रदूषण बढ़ रहा है यह भी सभी को मालूम है। तो फिर ऐसा कौन सा तत्व है जो प्रदूषण भी बढ़ा रहे हैं, गंगा पर बढ़ रहे खतरों से भी अगाह कर रहा है मगर संरक्षण के उपादान सिफर ही हो रहे हैं।
ऐसा लगता है कि 20 वर्षों से गंगा संरक्षण नियंत्रण बोर्ड के मार्फत हजारों करोड़ रुपए गंगा में ही पानी की तरह बहा तो दिये परन्तु गंगा की हालात दिन-प्रतिदिन नाज़ुक बनती जा रही है।
अब ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम के मार्फत फिर से गंगा संरक्षण की आस लोगों में जगी है। वर्तमान में गंगा का जो दोहन हो रहा है वह ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम से कहीं मेल ही नहीं खाता है।
यहाँ हम भागीरथी और अलकनन्दा नदी की बात करेंगे तो इन दोनों गंगाओं पर कुल 178 जल विद्युत परियोजनाएँ प्रस्तावित हैं। जिनमें से एक दर्जन से भी अधिक जल विद्युत परियोजनाएँ निर्माणाधीन हैं। इसी तरह आधा दर्जन जलविद्युत परियोजनाएँ निर्मित हो चुकी है। यह सभी परियोजनाएँ सुरंग आधारित है।
गंगा ऋषिकेश से लेकर क्रमशः गोमुख और बद्रीनाथ तक अलकनन्दा व भागीरथी नदी कई जगह से सुरंग में लुप्त हो जाती है। इसका जीता-जागता उदाहरण आपको उत्तरकाशी जाते वक्त धरासू बैण्ड से देखने को मिल जाएगा। धरासू बैण्ड से गंगोत्री की तरफ जाते वक्त उत्तरकाशी तक 18 किमी भागीरथी नदी सुरंग में चली जाती है।
यानि उत्तरकाशी के पास भागीरथी नदी तिलोथ से जोशियाड़ा तक ही दो किमी भागीरथी नदी के दर्शन होते हैं। इसी तरह जब आप गंगोत्री की तरफ बढ़ेंगे तो तिलोथ से मनेरी तक भागीरथी फिर सुरंग में कैद हो जाती है। इसी तरह की हालात गंगा (भगीरथी, अलकनन्दा) की जलविद्युत परियोजनाओं के कारण बनी हुई है।
गंगा सिर्फ सुरंग में ही कैद नहीं हो रही है बल्कि गंगा के प्राकृतिक प्रवाह के बाधित होने से पर्यावरण पर भी खतरे के असर साफ दिखाई दे रहे हैं। गंगा बेसिन क्षेत्र में एक तरफ नदियों की जैवविविधता समाप्त हो रही है जिससे प्रदूषण जैसे खतरे उत्पन्न हो रहे हैं तो दूसरी तरफ गंगा में वे सभी जलजीव प्रदूषण के कारण समाप्त हो रहे हैं जो गंगा में बह रहे प्रदूषण का शोधन करते थे।
जानकारों का कहना है कि यदि नदियों का प्राकृतिक प्रवाह बाधित नहीं होता तो गंगा में गिर रहे गन्दे नाले, सीवर को ‘जलीय जीव-जन्तु’ स्वतः ही शोधन कर लेते। जिससे गंगा प्रदूषण पर काफी हद तक नियंत्रण हो सकता था। यही नहीं जलविद्युत परियोजनाओं के लिये बनाई जा रही सुरंगें जहाँ प्राकृतिक सौन्दर्य को नष्ट कर रही है वहीं जलविद्युत निर्माण के दौरान से ही प्राकृतिक आपदाएँ सर्वाधिक घटित हो रही है।
पर्यावरणविद् और वैज्ञानिक कई बार कह चुके हैं कि प्रकृति के साथ अप्राकृतिक दोहन करने से आपदा के संकट बढ़ेंगे। प्रसिद्ध वैज्ञानिक खड़क सिंह बल्दिया कहते हैं कि उत्तराखण्ड हिमालय का पहाड़ शैशवकाल में है और इसकी ऊँचाई बढ़ रही है तथा उत्तर हिमालय की बनावट 90 डिग्री के समकोण को बनाता है।
कहते हैं कि इस तरह के पहाड़ में जब सुरंग निर्माण करेंगे तो स्वाभाविक तौर पर इस पहाड़ का जनजीवन और यहाँ की जैवविविधता बुरी तरह प्रभावित होगी। जिसका हस्र 2013 की आपदा ने दिखा दिया है।
हालांकि इस आपदा को सत्ता के गलियारों में कुछ और ही हौवा दी गई हो परन्तु आपदा का हस्र आज भी खुद बयाँ कर रहा है कि हिमालय में अनियोजित तरीके से की गई छेड़-छाड़ से प्रकृति ने अपना रुद्र रूप प्रस्तुत किया है।
अब देखना यह है कि ऋषिकेश से गंगा बेसिन क्षेत्र में एक तरफ जलविद्युत परियोजनाओं की सुरंगें और दूसरी तरफ ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन की सुरंगें किस कदर इस उत्तराखण्ड हिमालय को सुरक्षित रखती है या आपदा का घर बनाती है? जो भी हो प्रधानमंत्री की ‘नमामि गंगे’ योजना गंगा संरक्षण बाबत क्या गुल खिलाएगी यह तो समय के गर्त में है परन्तु यह सवाल खड़ा हो गया है कि स्वच्छ गंगा, सुरक्षित गंगा के लिये सुरंग आधारित परियोजना, सुरंग आधारित रेल लाइन क्या गंगा को अविरल बहने देंगे या सुरंगों में कैद करेंगे।
यही नहीं कौतुहल का विषय यह भी है कि गंगा बेसिन क्षेत्र में रेल लाइन और जलविद्युत परियोजनाओं की सुरंगें आपस में टकराएँगी या गंगा को अविरल बहने देंगे। सो गंगा जो मैली हो रही है उसका दृश्य सभी के सामने है। केन्द्र के ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम को यह बताना पड़ेगा कि गंगा स्वच्छता के लिये सुरंगों का महत्त्व कितना है।
उल्लेखनीय है कि गोमुख से गंगा सागर तक गंगा मैली ही नहीं हो रही कहीं-कहीं तो गंगा विलुप्ति की कगार पर आ गई है। उत्तराखण्ड में गंगा नदी दो तरह से प्रभावित हो रही है।
एक तो गंगा नदी पर बन रहे बाँध व निर्मित हो चुके बाँध, दूसरा की गंगा किनारे बसासत का तीव्र गति से बढ़ना, कस्बों का शहरों में तब्दील होना और इन शहरों से निकलने वाले कचरे का सही तरीके से निस्तारण न होना ही गंगा बेसिन क्षेत्र वर्तमान में बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।
भले ही केन्द्र सरकार की तरफ से गंगा संरक्षण के लिये भारी-भरकम बजट को खर्च क्यों न किया जा रहा हो। पर गंगा नदी पर जो मानवजनित खतरे उत्पन्न हो रहे हैं उसके निदान की ओर सरकार अब तक विफल ही रही है।
ऐसा लगता है कि 20 वर्षों से गंगा संरक्षण नियंत्रण बोर्ड के मार्फत हजारों करोड़ रुपए गंगा में ही पानी की तरह बहा तो दिये परन्तु गंगा की हालात दिन-प्रतिदिन नाज़ुक बनती जा रही है।
अब ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम के मार्फत फिर से गंगा संरक्षण की आस लोगों में जगी है। वर्तमान में गंगा का जो दोहन हो रहा है वह ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम से कहीं मेल ही नहीं खाता है।
यहाँ हम भागीरथी और अलकनन्दा नदी की बात करेंगे तो इन दोनों गंगाओं पर कुल 178 जल विद्युत परियोजनाएँ प्रस्तावित हैं। जिनमें से एक दर्जन से भी अधिक जल विद्युत परियोजनाएँ निर्माणाधीन हैं। इसी तरह आधा दर्जन जलविद्युत परियोजनाएँ निर्मित हो चुकी है। यह सभी परियोजनाएँ सुरंग आधारित है।
गंगा ऋषिकेश से लेकर क्रमशः गोमुख और बद्रीनाथ तक अलकनन्दा व भागीरथी नदी कई जगह से सुरंग में लुप्त हो जाती है। इसका जीता-जागता उदाहरण आपको उत्तरकाशी जाते वक्त धरासू बैण्ड से देखने को मिल जाएगा। धरासू बैण्ड से गंगोत्री की तरफ जाते वक्त उत्तरकाशी तक 18 किमी भागीरथी नदी सुरंग में चली जाती है।
यानि उत्तरकाशी के पास भागीरथी नदी तिलोथ से जोशियाड़ा तक ही दो किमी भागीरथी नदी के दर्शन होते हैं। इसी तरह जब आप गंगोत्री की तरफ बढ़ेंगे तो तिलोथ से मनेरी तक भागीरथी फिर सुरंग में कैद हो जाती है। इसी तरह की हालात गंगा (भगीरथी, अलकनन्दा) की जलविद्युत परियोजनाओं के कारण बनी हुई है।
गंगा सिर्फ सुरंग में ही कैद नहीं हो रही है बल्कि गंगा के प्राकृतिक प्रवाह के बाधित होने से पर्यावरण पर भी खतरे के असर साफ दिखाई दे रहे हैं। गंगा बेसिन क्षेत्र में एक तरफ नदियों की जैवविविधता समाप्त हो रही है जिससे प्रदूषण जैसे खतरे उत्पन्न हो रहे हैं तो दूसरी तरफ गंगा में वे सभी जलजीव प्रदूषण के कारण समाप्त हो रहे हैं जो गंगा में बह रहे प्रदूषण का शोधन करते थे।
जानकारों का कहना है कि यदि नदियों का प्राकृतिक प्रवाह बाधित नहीं होता तो गंगा में गिर रहे गन्दे नाले, सीवर को ‘जलीय जीव-जन्तु’ स्वतः ही शोधन कर लेते। जिससे गंगा प्रदूषण पर काफी हद तक नियंत्रण हो सकता था। यही नहीं जलविद्युत परियोजनाओं के लिये बनाई जा रही सुरंगें जहाँ प्राकृतिक सौन्दर्य को नष्ट कर रही है वहीं जलविद्युत निर्माण के दौरान से ही प्राकृतिक आपदाएँ सर्वाधिक घटित हो रही है।
पर्यावरणविद् और वैज्ञानिक कई बार कह चुके हैं कि प्रकृति के साथ अप्राकृतिक दोहन करने से आपदा के संकट बढ़ेंगे। प्रसिद्ध वैज्ञानिक खड़क सिंह बल्दिया कहते हैं कि उत्तराखण्ड हिमालय का पहाड़ शैशवकाल में है और इसकी ऊँचाई बढ़ रही है तथा उत्तर हिमालय की बनावट 90 डिग्री के समकोण को बनाता है।
कहते हैं कि इस तरह के पहाड़ में जब सुरंग निर्माण करेंगे तो स्वाभाविक तौर पर इस पहाड़ का जनजीवन और यहाँ की जैवविविधता बुरी तरह प्रभावित होगी। जिसका हस्र 2013 की आपदा ने दिखा दिया है।
हालांकि इस आपदा को सत्ता के गलियारों में कुछ और ही हौवा दी गई हो परन्तु आपदा का हस्र आज भी खुद बयाँ कर रहा है कि हिमालय में अनियोजित तरीके से की गई छेड़-छाड़ से प्रकृति ने अपना रुद्र रूप प्रस्तुत किया है।
अब देखना यह है कि ऋषिकेश से गंगा बेसिन क्षेत्र में एक तरफ जलविद्युत परियोजनाओं की सुरंगें और दूसरी तरफ ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन की सुरंगें किस कदर इस उत्तराखण्ड हिमालय को सुरक्षित रखती है या आपदा का घर बनाती है? जो भी हो प्रधानमंत्री की ‘नमामि गंगे’ योजना गंगा संरक्षण बाबत क्या गुल खिलाएगी यह तो समय के गर्त में है परन्तु यह सवाल खड़ा हो गया है कि स्वच्छ गंगा, सुरक्षित गंगा के लिये सुरंग आधारित परियोजना, सुरंग आधारित रेल लाइन क्या गंगा को अविरल बहने देंगे या सुरंगों में कैद करेंगे।
यही नहीं कौतुहल का विषय यह भी है कि गंगा बेसिन क्षेत्र में रेल लाइन और जलविद्युत परियोजनाओं की सुरंगें आपस में टकराएँगी या गंगा को अविरल बहने देंगे। सो गंगा जो मैली हो रही है उसका दृश्य सभी के सामने है। केन्द्र के ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम को यह बताना पड़ेगा कि गंगा स्वच्छता के लिये सुरंगों का महत्त्व कितना है।
उल्लेखनीय है कि गोमुख से गंगा सागर तक गंगा मैली ही नहीं हो रही कहीं-कहीं तो गंगा विलुप्ति की कगार पर आ गई है। उत्तराखण्ड में गंगा नदी दो तरह से प्रभावित हो रही है।
एक तो गंगा नदी पर बन रहे बाँध व निर्मित हो चुके बाँध, दूसरा की गंगा किनारे बसासत का तीव्र गति से बढ़ना, कस्बों का शहरों में तब्दील होना और इन शहरों से निकलने वाले कचरे का सही तरीके से निस्तारण न होना ही गंगा बेसिन क्षेत्र वर्तमान में बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।
भले ही केन्द्र सरकार की तरफ से गंगा संरक्षण के लिये भारी-भरकम बजट को खर्च क्यों न किया जा रहा हो। पर गंगा नदी पर जो मानवजनित खतरे उत्पन्न हो रहे हैं उसके निदान की ओर सरकार अब तक विफल ही रही है।