भाषा का जल

Submitted by admin on Thu, 12/05/2013 - 11:07
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काव्य संचय- (कविता नदी)
भाषा के जल की नदी है
जैसे यह जल है भाषा का
जैसे भाषा ही जल है
जैसे कबीर का कूप है कहीं आसपास
जैसे कूप में जल नहीं
भाषा है कबीर की

इस नदी में नाव है एक
इस तरह इस नदी में
जल के अलावा भी कुछ है
इस तरह नदी के जल को
सहूलियत से बरतने के लिए
भाषा पतवार है

जल की भाषा नाव की भाषा से अलग है
नदी की गहराई पतवार की पहुंच से दूर
भाषा की नदी में नाव डूबने का है खतरा

अब कभी
भाषा के जल में नाव डोलती है
कभी नहीं

अब कभी
नदी की सांवली गहराई में दिखती पतवार
कभी नहीं
अब कभी
कबीर के कूप की भाषा में हम जल ढूंढते
कभी
नदी, भाषा और जल से परे कबीर।