एक समुंदर मेरे अंदर

Submitted by Hindi on Sat, 10/04/2014 - 12:53
Source
साक्ष्य मैग्जीन 2002
एक समुंदर
मेरे अंदर
उमड़-घुमड़कर
ज्वार उठाता है
वह रोता है-
लोग समझते गाना गाता है

कितनी नदियों की
व्यथा-कथा को जिए समुंदर
कितनी सदियों के
खारे जल को पिए समुंदर
नीलेपन की ऊब भरी
खुद की विशालता
बोझ बन गई-
अब आसमान का नन्हा तारा
उसे लुभाता है

किसी नाव को
लहरों की बांहों में लेकर
बच्चे-सा
वह दुलारता
पागल, किसी अनाड़ी कच्चे-सा
आवेग भरी, उन्माद भरी
इस चाह को कोई क्या समझे-
बादल की नन्हीं बूंदों में
वह ख्वाब साता है