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राज्य में पिछले 10 वर्षो में 221 प्राकृतिक जल स्रोत सूख चुके हैं। यह आँकड़ा हाल ही में जल संस्थान ने एक अध्यन के मार्फत बताया है। अकेले देहरादून जनपद में 13 जल स्रोत सूख चुके हैं। हालात यह है कि पहाड़ी क्षेत्रों और देश के कोन-कोने से देहरादून में बसने वालो की संख्या में भारी हिजाफा हो रहा है।कभी देहरादून को अंग्रेज लंदन की तर्ज पर विकसित करना चाहते थे इसलिये कि देहरादून का सुहावना मौसम खुशगवार था। यहाँ कभी भी गर्मी का एहसास नहीं होता था। स्पष्ट है कि देहरादून में ‘जल की मात्रा’ इतनी थी कि कभी भी मौसम गर्म होने तक नहीं पहुँच पाता था। इसलिये देहरादून की सबसे बड़ी नहरें ईस्ट व वेस्ट कैनाल लोगों के हलक ही नहीं अपितु इन नहरों के पानी से ‘बासमती और लीची’ की महक देश-दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करती थी। हैं न देहरादून के पानी का कमाल। लेकिन जनाब अब तो सिंचाई तो दून लोगों के हलक सिंचित हो जाये तो गनीमत।
ज्ञात हो कि पिछले 15 वर्षों में देहरादून का ही पर्यावरण बदल गया है, क्योंकि देहरादून उत्तराखण्ड की जो अस्थायी राजधानी बन गई। मतलब साफ है कि राजधानी में जनसंख्या का घनत्व बढ़ना और कृषि की जोत का कम होना ही पर्यावरण असन्तुलन का कारण बनता ही जा रहा है, जिसका सबसे बड़ा असर वर्तमान में पीने के पानी पर पड़ रहा है।
हालात इस कदर है कि जहाँ खेत होने थे वहाँ बड़ी-बड़ी इमारतें उग आई हैं, जहाँ पानी की प्राकृतिक जलधाराएँ बहती थी वहाँ पक्की सड़कें बन गई हैं। लोगों का दबाव देहरादून पर बड़ी मात्रा में बढ़ रहा है उसी तरह पानी की मात्रा भी बड़ी तेजी से घट रही है। हालात इस कदर है कि पानी के रिचार्ज के लिये कोई योजना नहीं बनाई जा रही है।
बताते चलें कि देहरादून में वर्तमान समय में 200 एमएलडी पानी की आवश्यकता है, परन्तु प्रकृतिक जलस्रोतों के सूखने के कारण वर्तमान में यहाँ 172 एमएलडी पानी ही उपलब्ध हो पा रहा है। दूसरी ओर पहाड़ी क्षेत्रों में खेती का कार्य पलायन के चलते बन्द हो रहा है। फलस्वरूप इसके पानी जमीन के भीतर सर-सब्ज नहीं हो पा रहा है इसलिये बरसात का पानी ऊपरी सतह से सीधा बहकर चला जाता है। यह भी वजह मानी जा रही है कि प्राकृतिक जलस्रोत रिचार्ज होने की स्थिति नाजुक बनती ही जा रही है।
उल्लेखनीय हो कि अस्थायी राजधानी देहरादून में सिर्फ-व-सिर्फ भूजल का दोहन ही हो रहा है। वनस्पत की भूजल रिचार्ज पर अब तक कोई कार्य नहीं हो रहा है। उधर केन्द्रीय जल बोर्ड ने वर्ष 2002 से 2012 के बीच का देहरादून के आस-पास के 17 स्थानों पर एक अध्ययन करवाया। अध्ययन में पाया गया कि अकेले राजधानी देहरादून में भूजल आठ मीटर नीचे चला गया है। जबकि जल संस्थान प्रतिदिन 19 लाख 63 हजार 200 किलो लीटर भूजल (एक अरब 96 करोड़ 32 लाख लीटर) 409 ट्यूबवेलों के माध्यम से पेयजल आपूर्ति हेतु जनपद के अलग-अलग स्थानों से निकालता है।
स्पष्ट नजर आ रहा है कि राजधानी में पेयजल की जितनी भी योजना बन रही है वे सभी भूजल के दोहन के लिये बन रही है। इस तरह एक तरफ भूजल पर दिनों-दिन दबाव बढ़ रहा है तो दूसरी तरफ उनके पुनर्भरण के लिये कोई योजना अब तक सामने नहीं आ पाई है। लोग मानसून का भला मानते हैं कि जो 1.26 बिलियन क्यूबिक मीटर भूजल रिचार्ज कर जाता है।
बिडम्बना यह है कि जिस तरह से राजधानी में खेती की जमीन कंक्रीट में तब्दील हो रही है, पानी भू-सतह के ऊपर से सीधे तेजी से बहकर चला जाता है उससे भूजल रिचार्ज में भी तेजी से कमी आ रही है।
राजधानी बनने के बाद देहरादून में प्रतिदिन कोई-न-कोई एक परिवार स्थायी रूप से निवास करने के लिये आ रहा है। देहरादून की आबादी पिछले 15 वर्षों से 40 फीसदी के दर से बढ़ी है। इसी तरह देहरादून में बहुमंजिली फ्लैट जैसी संस्कृति भी बड़ी तेजी से पनप रही है। इन सभी की मूल आवश्यकता पानी ही है। पानी की आपूर्ति के लिये लोग सबसे त्वरित तरीका भूजल को मान रहे है।
जितने भवन और फ्लैट निर्माण हो रहे हैं वे पानी की आपूर्ति के लिये सर्वाधिक भूजल का ही उपयोग कर रहे हैं। ताज्जुब हो कि देहरादून में 180 ग्रुप हाउसिंग के पास है। मगर अब तक भूजल दोहन की कोई अनुमति नही ली गई। सिर्फ सेलाकुई स्थित आर्मी वेलफेयर हाउसिंग ऑर्गेनाइजेशन एवं मसूरी रोड पर बायोटेक इण्डिया लि. ने एक होटल निर्माण के लिये भूजल बोर्ड से अनुमति ली है। इसके अलावा 11 फैक्टरियों को छोड़कर किसी के पास भी केन्द्रीय भूजल बोर्ड की अनुमति नहीं है।
कुल मिलाकर देहरादून की लाइफ लाइन कही जाने वाली ईस्ट व वेस्ट कैनाल को पाट दिया गया। धर्मपुर, माजरा जैसी कृषि भूमि व डालनवाला जैसे अनके क्षेत्र जो लीची के लिये दुनिया में मशहूर थे की जगह अब कंक्रीट के जंगल ने ले ली है। भूजल का दोहन बड़ी तेजी से हो रहा है परन्तु पुनर्भरण के लिये अब तक कोई कारगर योजना सामने नहीं आ पाई है। जिस तरह से राजधानी देहरादून में जनसंख्या का दबाव बढ़ रहा है उस तरह से जल संरक्षण की नीति सामने नहीं आ पा रही है। आने वाले दिनों में देहरादून की पानी की समस्या लोगों के लिये खतरे की घंटी बनने वाली है।
सैकड़ों हैण्डपम्प खराब
गौरतलब हो कि देहरादून जनपद में 300 ऐसे हैण्डपम्प हैं या तो वे सूख चुके हैं या वे ऐसा पानी उगल रहे हैं जिससे हलक तर करना तो दूर घरेलू कार्य तक नहीं किया जाता। इन हैण्डपम्पों से रोजाना मिलने वाला 21 लाख लीटर पानी धरती के गर्भ में ‘चोक’ होकर रह गया है। इतने पानी से रोजाना चार लाख लोगों की पेयजल आपूर्ति हो सकती थी।
एक ओर पेयजल निगम के आँकड़े बताते हैं कि अकेले देहरादून में 2500 हैण्डपम्प है जिनमें सिर्फ 45 ही खराब है। दूसरी ओर विभागीय सूत्र बताते हैं कि शहर और ग्रामीण क्षेत्रों को मिलाकर जनपद में 300 हैण्डपम्प खराब हो चुके हैं। वैसे भी एक हैण्डपम्प लगाने में डेढ़ से ढाई लाख रु. खर्च आता है। विभागीय अफसर बताते हैं कि हैण्डपम्प मरम्मत को सिर्फ 40 लाख रुपए सालाना मिलते हैं जो हैण्डपम्पों के रख-रखाव के लिये उपयुक्त नहीं है।