जल संकट की चपेट में देहरादून

Submitted by Editorial Team on Thu, 06/29/2017 - 10:59


दून घाटी में बढ़ता जल संकटदून घाटी में बढ़ता जल संकटअब मात्र 10 से 15 दिनों के बाद उत्तराखण्ड में मानसून दस्तक दे देगा, जैसा की मौसम विभाग की भविष्यवाणी है। किन्तु इतने दिनों तक राज्यवासियों के हलक कैसे तर होंगे? जो अहम सवाल है। लगातार राज्य में भूजल का स्तर गिरते जा रहा है और सम्बन्धित विभाग है जो कुम्भकरणी नींद में डूबा है।

प्राकृतिक जलस्रोत सूख रहे हैं, भूजल का स्तर अब आठ मीटर से भी नीचे चला गया है, राज्य में जनसंख्या बढ़ रही है। इसके अलावा राज्य में लोग गाँव छोड़कर पास के कस्बों में आकर बस रहे हैं। ऐसे में शहर व बाजार का रूप लेते छोटे कस्बों में पानी की किल्लत का होना लाजमी है। मगर जो जल उपलब्धता पूर्व से थी वह अब आधी हो चुकी है। जलस्रोत कैसे रीचार्ज होंगे? पेयजल की सुचारू व्यवस्था कब होगी? ऐसे तमाम सवाल राज्य में लोगो के गले में कौंध रहे हैं।

उत्तराखण्ड राज्य की अस्थायी राजधानी देहरादून का उदाहरण इस बात के लिये काफी है कि लोग पेयजल की किल्लत से कैसे जूझ रहे हैं। जबकि इस अस्थायी राजधानी में सत्ता प्रतिष्ठानों के सभी लाव-लश्कर मुस्तैद रहते हैं फिर भी लोग पेयजल संकट का सामना करते ही हैं। देहरादून में बांदल नदी का एक ऐसा प्राकृतिक जलस्रोत है जिससे प्रतिदिन 220 लाख लीटर पानी लगभग दो लाख लोगों की पेयजल की आपूर्ति करता है।

वर्तमान में बांदल स्रोत का पानी 140 लाख लीटर पर पहुँच गया है। यानि 80 लाख लीटर डिस्चार्ज कम हो गया है। इस स्रोत का पानी क्रमशः जल संस्थान के वाटर वर्क्स, घंटाघर, पल्टन बाजार, चकराता रोड, राजपुर रोड, हाथीबड़कला, विजय कॉलोनी, सालावाला, ओल्ड सर्वे रोड, करनपुर, ईसी रोड, सर्वेचौक आदि क्षेत्रों में सप्लाई होता है। जबकि बाकि पानी की आपूर्ति बांदल स्रोत से ही पास के लाडपुर, सुन्दरवाला, रायपुर तपोवन, तपोवन इन्क्लेव आदि स्थानों में होती है।

बता दें कि केन्द्रीय भूजल बोर्ड ने वर्ष 2000 से 2012 के बीच भूजल पर एक अध्ययन किया है। राज्य के कुल 15 क्षेत्रों को इस अध्ययन का हिस्सा बनाया गया, जिसमें देहरादून सबसे आपातस्थिति में आ रहा है। अध्ययन बताता है कि देहरादून का भूजल 08 से 12 मीटर नीचे चला गया है। ताज्जुब इस बात का है कि देहरादून का भूजल स्तर बड़ी तेजी से न सिर्फ रसातल में जा रहा है बल्कि देहरादून उन जनपदों में पहले स्थान पर है, जिनका भूजल भूतल से सबसे निचले स्तर पर है। इधर देहरादून में भूजल का सबसे निचला स्तर 70.66 मीटर है। जबकि नैनीताल में यह स्तर 60.53, पौड़ी में 53.47 व उत्तरकाशी में 36.85 मीटर है।

जल संकट का बड़ा कारण भवन निर्माण भी हैइस तरह समझने की आवश्यकता इस बात पर है कि देहरादून में भूजल के रीचार्ज की कितनी जरूरत है। यह अध्ययन ऐसा संकेत भी कर रहे हैं कि हम लोग जल का कितना दोहन करते है, अपितु जल के पुनर्भरण की हम कोई कोशिश भी नहीं करते। यदि कोशिशें हो भी रही होगी तो वे सारी कोशिशें कागजों की धूल फाँक रही हैं।

अध्ययन के मुताबिक अकेले देहरादून के होटलों में 125 लाख लीटर पानी की खपत प्रति माह पहुँच जाती है। इसी तरह घरेलू उपयोग प्रति परिवार 10 हजार लीटर व प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 55 लीटर ग्रामीण क्षेत्र, 135 लीटर शहरी क्षेत्र पर अनुमानित पानी की खपत है। इस हेतु विभिन्न स्रोतों से देहरादून में पानी की उपलब्धता 215 एमएलडी प्रति माह है, जबकि देहरादून में पानी की कुल डिमांड 260 एमएलडी प्रति माह है। यही नहीं यहाँ पानी की उपलब्धता कम है और पानी की खपत अधिक है, यह समस्या तो मुँह बाए खड़ी है ही, इधर 60 वर्ष से अधिक पुरानी पाइप लाइनें हैं, जिससे 30 एमएलडी पानी रोजाना लिकेज से बर्बाद हो रहा है।

पेयजल के संकट के कारण राज्य के निवासी अपने पैतृक गाँव से पलायन ना करें तो वे और क्या करें। उनके सामने दिन-प्रतिदिन जल संकट एक अकाल के रूप में खड़ा हो रहा है। विभागीय आँकड़ों पर नजर दौड़ाएँ तो स्थिति और भी भयावह है।

पिछले दिनों जल संस्थान, पेयजल निगम, जल निगम ने मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के सामने एक संयुक्त रिपोर्ट पेश की है, जिसमें बताया गया कि राज्य में 21 शहर ऐसे हैं जहाँ मानक के अनुसार पेयजल आपूर्ति हो रही है और 12 शहर ऐसे हैं जहाँ गाँव के मानक सें भी कमतर में जलापूर्ति हो रही है। बताया गया कि मानक के अनुसार 135 एलपीसीडी से अधिक पानी शहरी लोग एवं 40 एलपीसीडी से अधिक पानी ग्रामीणों को मिलना चाहिए। पर 17 वर्षों में किसी भी सरकार ने इन मानकों को पूरा नहीं कर पाया। अब राज्य के 72 शहर और 17417 बस्तियों को मानक अनुसार पेयजल आपूर्ति का इन्तजार इस वजह से है कि उत्तराखण्ड राज्य में डबल इंजन की सरकार है।

ज्ञात हो कि राज्य में पेयजल की आपूर्ति के लिये जल संस्थान और जल निगम ही जिम्मेदार हैं। ये ऐसे विभाग हैं जिनमें कभी भी जिम्मेदारियों का अहसास तक नहीं हुआ। बजाय जल संस्थान व जल निगम आपसी खींचतान में हर वित्तीय वर्ष तक झगड़ते रहते हैं। यह सिलसिला राज्य बनने के बाद से अब तक जारी है। राज्य में कई गाँव ऐसे हैं जहाँ करोड़ों की पाइप लाइन जंक खा रही हैं।

उत्तराखण्ड के वित्त एवं पेयजल मंत्री प्रकाश पन्त हालात इस कदर है कि जल संस्थान ने इन पेयजल लाइनों से अपना पल्ला ही झाड़ लिया है और पेयजल लाइनें ग्रामसभा के अधीनस्थ कर दी गई। इधर जल निगम योजनाएँ तैयार करते समय जलस्रोतों की क्षमता का ख्याल नहीं रखता। यही नहीं अधिकांश पेयजल लाइनों की योजनाएँ सूखे जलस्रोतों से बनाई जा रही हैं।

इन योजनाओं को दबाव में तैयार करके जल संस्थान को हैंडओवर किया जाता है और-तो-और जल निगम की इस अनियमितता को दूर करने के लिये जल संस्थान कोई कदम ही नहीं उठाना चाहता। जिसका खामियाजा राज्य के लोग पेयजल संकट के रूप में भुगत रहे हैं। हालात सिर्फ पेयजल के मानकों को लेकर ही नहीं है, पेयजल के अलावा बड़ी तेजी से विकसित हो रहे शहरों में जितने भी निर्माण के कार्य हो रहे हैं उनके लिये भी भूजल का उपयोग किया जा रहा है।

भूजल के दोहन और पुनर्भरण के लिये हमारी सरकारों ने अब तक कोई कारगर नीति नहीं बना पाई। बहरहाल जल का दोहन ही हो रहा है, वह चाहे भूजल हो या प्राकृतिक जलस्रोत हों या नदी परियोजनाएँ। जल संरक्षण, जल संवर्द्धन की कवायद करने के लिये सरकारें फीसड्डी ही साबित हुई हैं। लोग सिर्फ-व-सिर्फ मानसून पर ही निर्भर रहने के आदि हो गए हैं।

राज्य में नए शहरों का गठन तेजी से हो रहा है। शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में मानक अनुसार पेयजल उपलब्ध करवाने को अगली योजनाओं पर काम किया जा रहा है। यही नहीं जल संरक्षण के लिये विशेष योजनाएँ बनाई जा रही हैं ताकि जल की उत्पादकता बढ़े और लोग बेहिचक जल दोहन भी कर सकें। - प्रकाश पन्त वित्त एवं पेयजल मंत्री