जल संकट और मन की बात का सन्देश

Submitted by Editorial Team on Thu, 07/04/2019 - 13:05

यह अभियान तीन चरणों में संचालित किया जायेगा।यह अभियान तीन चरणों में संचालित किया जायेगा।

भारत के प्रधानमंत्री ने 30 जून 2019 को ‘मन की बात’ कार्यक्रम में देशवासियों से जल संकट से मुक्ति के लिए जागरूकता अभियान चलाने का अनुरोध किया है। इस अभियान के पहले हिस्से का फोकस जल संचय, जल संरक्षण और जल संवर्धन पर होगा। दूसरा हिस्सा पानी के कुशल उपयोग पर केन्द्रित होगा। यह अभियान तीन चरणों में संचालित किया जायेगा, प्रत्येक चरण तीन-तीन दिन का होगा। अर्थात अभियान की कुल अवधि नौ दिन की होगी। पहला चरण एक जुलाई 2019 से 15 सितम्बर 2019 के बीच चलेगा और दूसरा चरण एक अक्टूबर 2019 से 30 नवम्बर 2019 के बीच संचालित किया जायेगा। एक जुलाई 2019 से प्रारंभ होने वाले अभियान का फोकस नार्थ-ईस्ट के राज्यों को छोड़कर बाकी देश पर होगा।  एक अक्टूबर से प्रारंभ होने वाले अभियान का फोकस नार्थ-ईस्ट पर होगा। 

भूजल दोहन की हर साल होने वाली वृद्धि के मुकाबले अधिक रीचार्ज करें। यह तभी संभव है जब हम अल्पायु, मंहगे, कम पानी का संचय और रीचार्ज करने वाली संरचानाओं के निर्माण के मोह को त्यागेंगे। हमें याद रखना चाहिए कि पानी का संकट नदी और नाले तक सीमित नही है। उसका बीज कहीं और है। उसका बीज कछार की सीमाओं से पनपता है। वहीं से वह नीचे उतरता है। अतः उसे स्रोत पर ही समाप्त करना चाहिए। एक बात और, मन की बात में कहे इलाकों को आगे जाकर पूरे देश में काम करना चाहिए।

यह अभियान देश के 36 राज्यों के 255 जिलों के 1,593 विकासखंडों में संचालित होगा। उल्लेखनीय है कि 1,593 विकासखंडों में से 1,186 विकासखंड, जमीन के नीचे के पानी अर्थात भूजल के मामले में अतिदोहित श्रेणी में और 313 विकासखंड क्रिटिकल श्रेणी में आते हैं। इसके अलावा, 94 विकासखंडों में पानी की उपलब्धता बेहद कम है। विदित हो कि अतिदोहित विकासखंड में भूजल का सालाना दोहन, कुदरती तौर पर होने वाले सालाना रीचार्ज की तुलना में अधिक होता है। क्रिटिकल विकासखंड में भूजल का सालाना दोहन, कुदरती तौर पर होने वाले सालाना रीचार्ज के 90 से 100 प्रतिशत के बीच होता है। तीसरी श्रेणी में वे विकासखंड शामिल किए गए हैं जहां पानी की उपलब्धता में बेहद कठिनाई है। 

मन की बात में अपेक्षा की गई है कि जागरूकता अभियान के अन्र्तगत समाज को पानी से जुडी समस्याओं के बारे में विस्तार से बताया जाए। यह काम बहुत जरुरी भी है। जागरुकता से ही जिम्मेदारी का अहसास पैदा होता है। अभियान का यह हिस्सा लोगों के बीच कर्तव्यबोध पैदा करेगा। उन्हे अतिदोहित श्रेणी और क्रिटिकल श्रेणी का अर्थ समझ में आयेगा। भूजल के दोहन के बढ़ने का दुष्परिणाम समझ में आयेगा। कुओं, तालाबों और नलकूपों के सूखने का असली वजह समझ में आयेगी और सबसे बड़ी गुमराह होने से बचेंगे। मुझे लगता है कि जब समाज से भूजल के दोहन के बढ़ने के दुष्परिणामों पर मंथन होगा तब तकनीकी और प्रशासनिक अधिकारियों को अहसास होगा कि अब भूजल दोहन को बढ़ाने वाली गतिविधियों को प्रोत्साहित करने का समय खत्म हो गया है। यही समझ, भूजल दोहन की योजनाओं को बनाने वाले योजनाकारों के लिए भी बेहद आवश्यक है। यदि वे ऐसी योजनाओं को मंजूरी देते हैं तो अकल्पनीय संकट को आमंत्रण करते हैं।

मुझे लगता है कि अभियान के पहले हिस्से के दौरान हासिल होने वाला यह सबक, सेन्ट्रल ग्राउन्ड वाटर बोर्ड और राज्यों के भूजल संगठनों को भूजल के दोहन की सुरक्षित सीमा को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करेगा। मन की बात का दूसरा बिन्दु पानी बचाने के तरीकों के बारे में है। मुझे लगता है पानी बचाने के साथ-साथ इसमें जल संचय, जल संरक्षण और जल संवर्धन भी शामिल है। यदि किसी को सन्देह हो तो उस सन्देह को दूर करने के लिए जल संचय, जल संरक्षण और जल संवर्धन को अनिवार्य रुप से जोडा जाए। मेरी अपेक्षा है कि जब समाज से पानी से जुड़ी समस्याओं पर चर्चा होगी। उस समय जल संचय, जल संरक्षण और जल संवर्धन के बारे में विस्तार से बताया जाए। यह विवरण सैद्धान्तिक नही होना चाहिए। इस मंथन में प्रत्येक संरचना की प्रमाणिकता, उपयोगिता अवधि और प्रभाव क्षेत्र की चर्चा होना चाहिए। उसके साइड इफेक्ट की भी चर्चा होना चाहिए। तभी मन की बात का लक्ष्य पूरा होगा और तभी उस इलाके के जल संकट का पूरी तरह निर्मूलन संभव होगा, ये मन्थन बहुत जरुरी है। 

मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी।मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी।

इस प्रक्रिया से विकसित समझ ही अन्ततः समाज को अभियान का जागरुक और जिम्मेदार भागीदार बना सकेगी, लोगों के बीच कर्तव्यबोध पैदा करेगी। इसी हिस्से में पानी के कुशल उपयोग पर भी चर्चा होगी। इस चर्चा में उन गतिविधियों को रेखांकित किया जा सकेगा जो स्थानीय स्तर पर जल संकट अर्थात मुसीबत का कारण हैं। इस दौरान उन लोगों को समझाया जा सकता है जो जाने-अनजाने में जल संकट को पैदा करने में कहीं न कही जिम्मेदार है। यही मंथन लोगों के बीच कर्तव्यबोध पैदा करेगा।  

मन की बात का तीसरा बिन्दु समाज की प्रमुख हस्तियों को नेतृत्व प्रदान करने के लिए आमंत्रित करता है। यह बिन्दु अभियान के लिए आस्था और विश्वास जगाने का कारगर कदम है। मुझे लगता है कि प्रमुख हस्तियों को केवल सन्देश देने या मीडिया में दिखने के आगे जाकर कुछ नया करना होगा। लोगों को उपदेश देने की जगह खुद पर लागू करके दिखाना होगा। इस बारे में मुझे महात्मा गांधी का एक किस्सा याद आता है जिसमें उन्होंने एक बच्चे को गुड़ खाने के बारे में शिक्षा देने के पहले खुद गुड़ खाना छोडा था। मुझे लगता है मन की बात में, यही संकेत छुपा हुआ है। उम्मीद की जाना चाहिए कि प्रमुख हस्तियों के आचरण का बदलाव, प्रमाणिकता को संबल प्रदान करेगा।  जल संकट का केनवास बहुत बड़ा है। उस संकट का अहसास सूखती नदियों, सूखते तालाबों, कुओं और नलकूपों से उजागर होता है। जल संसाधन विभागों की लंबी अनदेखी के कारण उसके निराकरण की राह कठिन हुई है। इसी कारण, हर साल उसमें नए-नए इलाके जुड रहे हैं। चेन्नई जिसे कुछ साल पहले तक रेन वाटर हारवेस्टिंग का सबसे अच्छा उदाहरण माना जाता था, आज सबसे बुरी स्थिति में है। यह स्थिति हमसे आत्मावलोकन चाहती है और अपेक्षा करती है कि हम पूर्वाग्रहों तथा प्रिसक्रिपव्टिव विकल्पों के नारद मोह से बाहर निकलें।

भूजल दोहन की हर साल होने वाली वृद्धि के मुकाबले अधिक रीचार्ज करें। यह तभी संभव है जब हम अल्पायु, मंहगे, कम पानी का संचय और रीचार्ज करने वाली संरचानाओं (गली प्लग, लूज बोल्डर चेक, कंटूर बोल्डर वाल, गैबियन, सोख्ता गड्ढा, चैक डेम इत्यादि) के निर्माण के मोह को त्यागेंगे। हमें याद रखना चाहिए कि पानी का संकट नदी और नाले तक सीमित नही है। उसका बीज कहीं और है। उसका बीज कछार की सीमाओं से पनपता है। वहीं से वह नीचे उतरता है। अतः उसे स्रोत पर ही समाप्त करना चाहिए। एक बात और, मन की बात में कहे इलाकों को आगे जाकर पूरे देश में काम करना चाहिए। जल स्वराज के लिए काम करना चाहिए। यह अभियान कोई इवेंट नही है ये तो जल स्वावलम्बन हासिल करने का एक संकल्प है। उसे पूरा करने के लिए सभी को आगे आना चाहिए, तभी प्रधानमंत्री का सपना पूरा होगा।

 

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