जलकुमारी

Submitted by Hindi on Fri, 10/24/2014 - 15:41
Source
साक्ष्य मैग्जीन 2002
शहर के घाट पर आकर लगी है एक नाव
मल्लाह की बिटिया आई है घूमने शहर

जी करता है जाकर खोलूं
उसकी नाव का फाटक
जो नहीं है
पृथ्वी के पूरे थल का द्वारपाल बनूं
अदब में झुकूं
गिरने-गिरने को हो आए पगड़ी मेरी
जो नहीं है
कहूं
पधारो, जलकुमारी
अपने चेहरे पर नदी और मुहावरे के पानी के साथ
इस सूखे शहर में