कैसे मुमकिन है

Submitted by Hindi on Tue, 02/17/2015 - 13:08
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परिषद साक्ष्य धरती का ताप, जनवरी-मार्च 2006
कैसे मुमकिन है कि
मेघ इकबारगी छट जाएं
या इकदम से
टूट कर बरस जाएं
मूसलाधार बारिश का पानी
सैलाब में
तब्दील हो जाये

और थोड़े-से
पुख्ता मकानों को छोड़कर
गाँव के बेशतर
कमजोर नीव के ढाँचे
जमींदोज हो जाएं
फसलें मुर्झा जाएं

और
रेतीली जमीन पर
पसरी आबादियां
मौत की नींद सो जाएं

कैसे मुमकिन है कि
चुड़ियां दरक जाएं
माँग सूनी पड़ जाये
कोख उजड़ जाये

आशाओं की सेज पर उगी
सब्ज कोंपलें
सूख-सूख कर
बिखर जाएं और
धरती पर
चारों ओर
अंधेरे का शामियाना
तन जाये

कैसे मुमकिन है कि
ये सब हो जाये
और सूरज
अपनी रौशन आँखें
बंद किये
आकाश की ऊँचाइयों में
या उफ़क़ पर
खामोश बैठा
अंधेरे से
ठिठोलियाँ करता रहे

कैसे मुमकिन है
बोलो
यह सब
कैसे मुमकिन है