देश की अन्य प्रदूषण युक्त नदियों के फिर से स्वच्छ होने की उम्मीद जगी थी। लेकिन साल बीत जाने के बाद भी प्रदूषण साफ करने की कोई योजना सफल नहीं हुई। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर काली नदी को कब संजीवनी मिलेगी। केन्द्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, इस नदी के पानी में अत्यधिक मात्रा में सीसा, मैगनीज और लोहा जैसे तत्व घुले हुए हैं। इसमें प्रतिबन्धित कीटनाशक भी काफी मात्रा में घुल चुका है। यही वजह है कि इस नदी के पानी में अब ऑक्सीजन पूरी तरह से खत्म हो गया है।
गंगा के प्रदूषण को साफ करने की नमामि गंगे योजना चल रही है। गंगा को जीवनदायनी और मोक्षदायिनी नदी माना जाता है। गंगा का जीवन अपने सहायक नदियों पर निर्भर है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बहने वाली गंगा की सहायक काली नदी आसपास के गाँवों के लिये काल बनती जा रही है। नदी का पानी पूरी तरह प्रदूषित हो चुका है। इससे सटे ग्रामीण इलाकों में लोगों को कैंसर, चर्म रोग, हड्डी रोग और पेट सम्बन्धी रोगों के शिकार हो रहे हैं।स्थानीय लोग काली नदी से निजात पाने के लिये कई सालों से लड़ाई लड़ रहे हैं। यह मामला शासन-प्रशासन से लेकर हाईकोर्ट तक भी पहुँच चुका है। कई बार विधानसभा में भी काली नदी का मुद्दा उठ चुका है, लेकिन हालत अभी तक सुधरे नहीं हैं। स्थानीय लोगों और सामाजिक संस्थाओं से जुड़े लोगों का कहना है कि जब तक प्रशासन इस मामले में सख्त कदम नहीं उठाएगा। नदी में गिर रहे प्रदूषित पानी को रोका नहीं जाएगा, तब तक यह नदी स्वच्छ नहीं होगी।
अलीगढ़ जिले के कई गाँवों में काली नदी के दूषित पानी के कारण गम्भीर बीमारियों का संक्रमण शुरू हो गया है। प्रदूषण का प्रभाव यह है कि पशुओं का दूध और भूजल दूषित हो चुका है। काली नदी से सटे हिम्मतपुर, कल्यानपुर, कनौरा, कृपारामपुर, अहरौली, साधु आश्रम समेत अन्य गाँवों में लोगों पर बीमारी का खतरा मँडरा रहा है। इसे लेकर शिकायतें आ रही थीं। दरअसल, पशु नदी का पानी पीते हैं, जिससे उन्हें भी बीमारी जकड़ रही है। इन पशुओं का दूध भी दूषित हो रहा है।
नदी के कारण ही गाँवों के भूजल की गुणवत्ता भी गिर रही है। यहाँ के हमले की खबर पाकर गम्भीर हुए शासन ने जिला प्रशासन को कड़ी फटकार लगाई है। इस तरह की परेशानी सुनने के बाद अब स्थानीय प्रशासन सक्रिय हुआ है। शासन ने जिलाधिकारी को पत्र भेज स्वास्थ्य विभाग से नदी के आसपास के गाँव का सर्वे कराकर रोगियों का पता लगाने के निर्देश दिये हैं। काली नदी के पानी से बीमार होने की शिकायत केवल अलीगढ़ जिले से ही नहीं है।
मेरठ के कई दर्जन गाँवों में भी काली नदी के प्रदूषित पानी के कारण बीमारी के चपेट में हैं। कई गाँवों में आज भी पशुओं और मनुष्यों पर मौत का साया मँडरा रहा है। हालात ये हो गए हैं कि मेरठ जिले के देदवा, पनवाड़ी, इकलौता, भराला, समौली, जलालपुर,उलखपुर, खेड़ी और सैनी समेत दर्जनों गाँव का भूजल प्रदूषित हो गया है। ऐसे में यहाँ के ग्रामीण कैंसर, पीलिया, फंगस, चर्म रोग और अस्थमा जैसी बीमारी की चपेट में आ रहे हैं।
देदवा गाँव के लोगों का कहना है कि पिछले कुछ सालों में गाँव में कैंसर, टीबी, पीलिया जैसी बीमारी से चार दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। पनवाड़ी गाँव में भी काली नदी के प्रदूषण से करीब 30 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं, मोहम्मदपुर गाँव में करीब एक दर्जन मौत का जिम्मेदार नदी के प्रदूषण से होने का दावा किया जा रहा है। काली नदी संघर्ष समिति से जुड़े लोगों का कहना है कि जब तक काली नदी में साफ पानी नहीं छोड़ा जाएगा, उसका प्रदूषण कम नहीं होगा। वहीं, प्रशासन ने इसे लेकर जो वादा किया था वह भी पूरा नहीं हुआ।
मूलत: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बहने वाली काली नदी लगभग 300 किलोमीटर लम्बी है। यह उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद, बुलन्दशहर, अलीगढ़, एटा और फरुखाबाद जिले से गुजरती हुई कन्नौज में जाकर गंगा में मिलती है। कभी लोगों के लिये जीवनदायिनी रही यह काली नदी, अब लोगों को बीमारी दे रही है। इस समय ये पूरी तरह से गन्दे नाले में तब्दील हो गई है। काली नदी के दूषित पानी से आसपास के ग्रामीण इलाकों में कैंसर, चर्म रोग समेत कई रोगों के होने की शिकायत आम बात हो गई है। शासन गाँवों का सर्वे कराकर रिपोर्ट तैयार कर रही है।
दरअसल, ये नदी हमेशा से ऐसी नहीं थी। पहले इसका पानी स्वच्छ था। लेकिन विकास की अन्धी दौड़ में जलस्रोतों की उपेक्षा शुरू हुई।
कारखानों और गन्दे नालों का पानी नदियों में सीधे छोड़ा जाने लगा। काली नदी में भी गन्दे नालों का पानी छोड़ा जा रहा है। इससे इसका कांच-सा साफ पानी काला हो गया। काली नदी के पानी का क्या हाल है। इसे आप एक आँकड़ें से समझ सकते हैं। इस समय काली नदी में फीकल कोलीफार्म की मात्रा 5 करोड़ एमपीएन है, जबकि यहाँ 5000 एमपीएन से अधिक नहीं होना चाहिए। नाईट्राइट की मात्रा 8.45 मिलीग्राम प्रति लीटर पाई गई, जबकि इसे शून्य होना चाहिए।
एक साल पहले नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और इण्डियन डेवलपमेंट अथॉरिटी को दो नदियों को पुनर्जीवित करने के निर्देश दिये थे। ऐसे में लोगों में देश की अन्य प्रदूषण युक्त नदियों के फिर से स्वच्छ होने की उम्मीद जगी थी। लेकिन साल बीत जाने के बाद भी प्रदूषण साफ करने की कोई योजना सफल नहीं हुई। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर काली नदी को कब संजीवनी मिलेगी।
केन्द्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, इस नदी के पानी में अत्यधिक मात्रा में सीसा, मैगनीज और लोहा जैसे तत्व घुले हुए हैं। इसमें प्रतिबन्धित कीटनाशक भी काफी मात्रा में घुल चुका है। यही वजह है कि इस नदी के पानी में अब ऑक्सीजन पूरी तरह से खत्म हो गया है। अब इसका पानी पीने लायक भी नहीं है। हालत यह है कि कोई भी जलीय-जीव इस नदी में जिन्दा नहीं रह पाता है। एक सामाजिक संस्था नीर फाउंडेशन के निदेशक रमन त्यागी का कहना है कि काली नदी के पानी से उगाई जा रही सब्जी भी स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। इसके किनारे रहने वाले लोगों के लिये यह नदी अभिशाप बन चुकी है।
काली नदी के पानी को प्रदूषित करने में 40 बड़े उद्योगों को चिन्हित किया गया था। इनमें शुगर मिल, पेपर मिल, रसायन उद्योग आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं। प्रदूषण विभाग के अनुसार, नदी में प्रदूषित पानी गिराने वाली 28 इकाइयों को नोटिस जारी कर वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के लिये कहा गया था। साथ ही ट्रीटमेंट का पानी खेतों में सिंचाई के लिये देने के निर्देश दिये गए थे।
ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के लिये इकाइयों ने 2016 तक का समय लिया था। लेकिन 2016 वर्ष भी बीतने के कगार पर है। ट्रीटमेंट प्लांट के नाम पर कहीं पर कुछ देखने को नहीं मिल रहा है। सूत्रों के अनुसार, मृत पशुओं का नदी में बहाव, शहर और कस्बों के बूचड़ खानों का कचरा और प्रदूषित पानी भी काली नदी को प्रदूषित बना रहा है। क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड समय-समय औद्योगिक इकाइयों को नोटिस भेजकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेता है।