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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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Submitted by Shivendra on Fri, 10/23/2020 - 13:47
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क्वॉटरनरी साइंस रिव्यू
घग्गर-हकरा
हालही में थार रेगिस्तान में पानी को लेकर एक रिसर्च सामने आई। जिसमें शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि बीकानेर के पास 1,72000 साल पहले कभी एक नदी बहती थी जो  यह बसे लोगों के लिये जीवनदायिनी का काम करती थी।  क्वॉटरनरी साइंस रिव्यू मे प्रकाशित इस शोध को जर्मन के मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर द साइंस ऑफ हिस्ट्री तमिलनाडु के अन्ना विश्वविद्यालय और कोलकाता के आइआइएसईआर  ने तैयार किया है।इस रिपोर्ट में शोधकर्ताओं द्वारा यही बताया गया है कि पाषाण युग( पाषाण युग का तात्पर्य है कि इंसान पत्थर से बने सामानों का इस्तेमाल करता था)और आज के समय में, लोगों के रहन-सहन खान-पान पर काफी अंतर आ गया है।
Submitted by Shivendra on Thu, 10/22/2020 - 15:30
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कोसी नदी का कहर
संभवत: तीन-चार सौ वर्ष पहले इस अंचल में कोसी मैया की महाविनाश लीला शुरू हुई होगी। लाखों एकड़ जमीन को अचानक लकवा मार गया होगा। महान कथाशिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु के उपन्यास 'परती परिकथा' का है यह संपूर्ण उद्धहरण। आज रेणु जिंदा तो नहीं हैं लेकिन तीन सौ वर्ष पूर्व की कोसी मैया एक बार फिर से इस भाग में महातांडव कर रही है। तब की विनाशलीला पूरी तरह प्राकृतिक थी और इस बार मानव निर्मित है। चाहे लोग इसे जितना जोर देकर प्राकृतिक आपदा कहें- यह है कोसी क्षेत्र के लोगों का सामूहिक नरसंहार। रेणु का गांव औराही हिंगना इस प्रकोप से विलुप्त तो नहीं हुआ है लेकिन ऐसे दर्जनों गांव है इस कोसी क्षेत्र में, जो अब सिर्फ इतिहास व कथाओं में ही बचे रहेंगे। इतना बड़ा नरसंहार और बुद्धिजीवियों की चुप्पी इस समाज को दहशत में भर रही है।
Submitted by Shivendra on Thu, 10/22/2020 - 12:57
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विष्णु लांबा अब तक करीब ग्यारह लाख पौधे निःशुल्क वितरित कर चुके हैं
राजस्थान के एक युवा ने पर्यावरण की रक्षा के लिए ना सिर्फ पिता घर बार छोड़ दिया, बल्कि वह पिछले 27 सालों से प्रकृति को परमात्मा मानकर उसकी हिफाजत में जुटा है। हम बात कर रहे हैं “ट्री मैन ऑफ इंडिया”  विष्णु लांबा की, जिन्होंने आजीवन पर्यावरण की सेवा का संकल्प ही नहीं लिया, बल्कि उसे बखूबी निभा भी रहे हैं। मात्र सात साल की उम्र से ही विष्णु ने अपने बाड़े [घर के पास स्थित जानवर रखने की जगह] में तरह-तरह के पौधे लगाना शुरू कर दिया। विष्णु पर पौधे लगाने का इतना जुनून सवार था, कि वे किसी के भी घर और खेत से पौधा चुराने में जरा सी भी देर नहीं करते थे।उनकी इस आदत से तंग आकर घरवालों ने उन्हें उनकी बुआजी के यहां पढ़ने भेज दिया, लेकिन विष्णु का प्रकृति के प्रति प्रेम बढ़ता ही गया। इसके बाद विष्णु अपने ताऊजी के साथ जयपुर आ गए यहां भी इनका प्रकृति प्रेम कम नहीं हुआ और उन्होंने तत्कालीन जयपुर कलेक्टर श्रीमत पाण्डे के जवाहर सर्किल स्थित घर में बनी नर्सरी से पौधे चुरा लिए।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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मरुस्थल में कभी बहती थी घग्गर-हकरा नदी 

Submitted by Shivendra on Fri, 10/23/2020 - 13:47
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क्वॉटरनरी साइंस रिव्यू
घग्गर-हकरा
हालही में थार रेगिस्तान में पानी को लेकर एक रिसर्च सामने आई। जिसमें शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि बीकानेर के पास 1,72000 साल पहले कभी एक नदी बहती थी जो  यह बसे लोगों के लिये जीवनदायिनी का काम करती थी।  क्वॉटरनरी साइंस रिव्यू मे प्रकाशित इस शोध को जर्मन के मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर द साइंस ऑफ हिस्ट्री तमिलनाडु के अन्ना विश्वविद्यालय और कोलकाता के आइआइएसईआर  ने तैयार किया है।इस रिपोर्ट में शोधकर्ताओं द्वारा यही बताया गया है कि पाषाण युग( पाषाण युग का तात्पर्य है कि इंसान पत्थर से बने सामानों का इस्तेमाल करता था)और आज के समय में, लोगों के रहन-सहन खान-पान पर काफी अंतर आ गया है।

बुद्धिजीवियों की चुप्पी

Submitted by Shivendra on Thu, 10/22/2020 - 15:30
कोसी नदी का कहर
संभवत: तीन-चार सौ वर्ष पहले इस अंचल में कोसी मैया की महाविनाश लीला शुरू हुई होगी। लाखों एकड़ जमीन को अचानक लकवा मार गया होगा। महान कथाशिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु के उपन्यास 'परती परिकथा' का है यह संपूर्ण उद्धहरण। आज रेणु जिंदा तो नहीं हैं लेकिन तीन सौ वर्ष पूर्व की कोसी मैया एक बार फिर से इस भाग में महातांडव कर रही है। तब की विनाशलीला पूरी तरह प्राकृतिक थी और इस बार मानव निर्मित है। चाहे लोग इसे जितना जोर देकर प्राकृतिक आपदा कहें- यह है कोसी क्षेत्र के लोगों का सामूहिक नरसंहार। रेणु का गांव औराही हिंगना इस प्रकोप से विलुप्त तो नहीं हुआ है लेकिन ऐसे दर्जनों गांव है इस कोसी क्षेत्र में, जो अब सिर्फ इतिहास व कथाओं में ही बचे रहेंगे। इतना बड़ा नरसंहार और बुद्धिजीवियों की चुप्पी इस समाज को दहशत में भर रही है।

पिछले 27 सालों से प्रकृति को परमात्मा मानकर उसकी हिफाजत में जुटा विष्णु लांबा

Submitted by Shivendra on Thu, 10/22/2020 - 12:57
विष्णु लांबा अब तक करीब ग्यारह लाख पौधे निःशुल्क वितरित कर चुके हैं
राजस्थान के एक युवा ने पर्यावरण की रक्षा के लिए ना सिर्फ पिता घर बार छोड़ दिया, बल्कि वह पिछले 27 सालों से प्रकृति को परमात्मा मानकर उसकी हिफाजत में जुटा है। हम बात कर रहे हैं “ट्री मैन ऑफ इंडिया”  विष्णु लांबा की, जिन्होंने आजीवन पर्यावरण की सेवा का संकल्प ही नहीं लिया, बल्कि उसे बखूबी निभा भी रहे हैं। मात्र सात साल की उम्र से ही विष्णु ने अपने बाड़े [घर के पास स्थित जानवर रखने की जगह] में तरह-तरह के पौधे लगाना शुरू कर दिया। विष्णु पर पौधे लगाने का इतना जुनून सवार था, कि वे किसी के भी घर और खेत से पौधा चुराने में जरा सी भी देर नहीं करते थे।उनकी इस आदत से तंग आकर घरवालों ने उन्हें उनकी बुआजी के यहां पढ़ने भेज दिया, लेकिन विष्णु का प्रकृति के प्रति प्रेम बढ़ता ही गया। इसके बाद विष्णु अपने ताऊजी के साथ जयपुर आ गए यहां भी इनका प्रकृति प्रेम कम नहीं हुआ और उन्होंने तत्कालीन जयपुर कलेक्टर श्रीमत पाण्डे के जवाहर सर्किल स्थित घर में बनी नर्सरी से पौधे चुरा लिए।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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