नया ताजा
आगामी कार्यक्रम
खासम-खास
Content
गंगा की पेट में गाद की ढेर जमा है। इसमें विभिन्न तरह की गाद है। इसे हिमालय से बहकर आए पानी के साथ आने वाली महीन मिट्टी भर समझना भूल होगी। शहरों के मैला जल और औद्योगिक कचरा के साथ आने वाली गंदगी भी इकट्ठा है। इस गंदगी का असर गंगा में पलने वाले जलीय जीवों पर पड़ा है। गाद में इस गंदगी के मिले होने का असर गंगा के तटवर्ती इलाके में खेती पर हुआ है। लेकिन यह मसला अभी चर्चा में नहीं हैं। गंगा में जमा गाद के खिलाफ बिहार सरकार का ताजा अभियान मूलतः फरक्का बराज की वजह से गाद का प्रवाहित होकर समुद्र में नहीं जाने और बराज के ऊपर के प्रवाह क्षेत्र में एकत्र होने पर केंन्द्रीत है।
हिमालय से निकली नदियों में पानी के साथ गाद आने की समस्या नई नहीं है। बिहार, बंगाल और आसाम सदियों से इसे झेलते रहे हैं। वनों की अंधाधुंध कटाई से समस्या बढ़ी है। समस्या केवल पहाड़ों पर वनों की कटाई से नहीं, मैदानी क्षेत्र में वृक्षों के विनाश का असर पड़ा है।
ऐसा लगता है कि गंगा की शुद्धि का मसला जितना आसान समझा जा रहा था उतना है नहीं। असलियत यह है कि भले मोदी सरकार इस बाबत लाख दावे करे लेकिन केन्द्र सरकार के सात मंत्रालयों की लाख कोशिशों के बावजूद 2014 से लेकर आज तक गंगा की एक बूँद भी साफ नहीं हो पाई है। 2017 के पाँच महीने पूरे होने को हैं, परिणाम वही ढाक के तीन पात के रूप में सामने आए हैं। कहने का तात्पर्य यह कि इस बारे में अभी तक तो कुछ सार्थक परिणाम सामने आए नहीं हैं जबकि इस परियोजना को 2018 में पूरा होने का दावा किया जा रहा था। गंगा आज भी मैली है। दावे कुछ भी किए जायें असलियत यह है कि आज भी गंगा में कारखानों से गिरने वाले रसायन-युक्त अवशेष और गंदे नालों पर अंकुश नहीं लग सका है। नतीजन उसमें ऑक्सीजन की मात्रा बराबर कम होती जा रही है।
Pagination
प्रयास
नोटिस बोर्ड
Latest
खासम-खास
Content
गंगा के पेट में गाद की ढेर
गंगा की पेट में गाद की ढेर जमा है। इसमें विभिन्न तरह की गाद है। इसे हिमालय से बहकर आए पानी के साथ आने वाली महीन मिट्टी भर समझना भूल होगी। शहरों के मैला जल और औद्योगिक कचरा के साथ आने वाली गंदगी भी इकट्ठा है। इस गंदगी का असर गंगा में पलने वाले जलीय जीवों पर पड़ा है। गाद में इस गंदगी के मिले होने का असर गंगा के तटवर्ती इलाके में खेती पर हुआ है। लेकिन यह मसला अभी चर्चा में नहीं हैं। गंगा में जमा गाद के खिलाफ बिहार सरकार का ताजा अभियान मूलतः फरक्का बराज की वजह से गाद का प्रवाहित होकर समुद्र में नहीं जाने और बराज के ऊपर के प्रवाह क्षेत्र में एकत्र होने पर केंन्द्रीत है।
हिमालय से निकली नदियों में पानी के साथ गाद आने की समस्या नई नहीं है। बिहार, बंगाल और आसाम सदियों से इसे झेलते रहे हैं। वनों की अंधाधुंध कटाई से समस्या बढ़ी है। समस्या केवल पहाड़ों पर वनों की कटाई से नहीं, मैदानी क्षेत्र में वृक्षों के विनाश का असर पड़ा है।
आसान नहीं है गंगा की शुद्धि का मसला
ऐसा लगता है कि गंगा की शुद्धि का मसला जितना आसान समझा जा रहा था उतना है नहीं। असलियत यह है कि भले मोदी सरकार इस बाबत लाख दावे करे लेकिन केन्द्र सरकार के सात मंत्रालयों की लाख कोशिशों के बावजूद 2014 से लेकर आज तक गंगा की एक बूँद भी साफ नहीं हो पाई है। 2017 के पाँच महीने पूरे होने को हैं, परिणाम वही ढाक के तीन पात के रूप में सामने आए हैं। कहने का तात्पर्य यह कि इस बारे में अभी तक तो कुछ सार्थक परिणाम सामने आए नहीं हैं जबकि इस परियोजना को 2018 में पूरा होने का दावा किया जा रहा था। गंगा आज भी मैली है। दावे कुछ भी किए जायें असलियत यह है कि आज भी गंगा में कारखानों से गिरने वाले रसायन-युक्त अवशेष और गंदे नालों पर अंकुश नहीं लग सका है। नतीजन उसमें ऑक्सीजन की मात्रा बराबर कम होती जा रही है।
Pagination
प्रयास
सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
- Read more about सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
- Comments
नोटिस बोर्ड
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
- Read more about 28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
- Comments
पसंदीदा आलेख