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समस्त इंडिया वाटर पोर्टल परिवार और अर्घ्यम की ओर से पानी के पुरोधा माने जाने वाले श्री अनुपम मिश्र जी को भावभीनी श्रद्धांजलि
श्री अनुपम मिश्र जी ने ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज दिल्ली में आज 19 दिसम्बर, 2016 प्रातः 5:27 पर अंतिम साँस ली। उनकी अंतिम विदाई यात्रा दोपहर 1:00 बजे से गांधी पीस फाउंडेशन से शुरू होगी और निगम बोध घाट के विद्युतीय शवदाहग्रह पर समाप्त होगी। 2:00 बजे से सभी रीतिरिवाजों के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी जाएगी।
तब देश में पानी और पर्यावरण को लेकर इतनी बातें और आज की तरह का सकारात्मक माहौल नहीं था, और न ही सरकारों की विषय सूची में पानी और पर्यावरण की फ़िक्र थी, उस माहौल में एक व्यक्तित्व उभरा जिसने पूरे देश में न सिर्फ पानी की अलख जगाई बल्कि समाज के सामने सूखी जमीन पर पानी की रजत बूँदों का सैलाब बनाकर भी दिखाया। वे देश में पानी के पहले पहरेदार रहे, जिन्होंने हमे पानी का मोल समझाया।
अनुपम मिश्रअनुपम मिश्र पानी और पर्यावरण पर काम करने के लिए जाने जाते हैं लेकिन उनकी सर्वाधिक चर्चित पुस्तक आज भी खरे हैं तालाब के साथ उन्होंने एक ऐसा प्रयोग किया जिसका दूरगामी दृष्टि दिखती है। उन्होंने अपनी किताब पर किसी तरह का कापीराईट नहीं रखा। इस किताब की अब तक एक लाख से अधिक प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। मीडिया वर्तमान स्वरूप और कापीराईट के सवाल पर हमने विस्तृत बात की। यहां प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश-
कापीराईट को लेकर आपका नजरिया यह क्यों है कि हमें अपने ही लिखे पर अपना दावा (कापीराईट) नहीं करना चाहिए?
कापीराईट क्या है इसके बारे में मैं बहुत जानता नहीं हूं। लेकिन मेरे मन में जो सवाल आये और उन सवालों के जवाब में मैंने जो जवाब तलाशे उसमें मैंने पाया कि आपका लिखा सिर्फ आपका नहीं है।
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चला गया पानी का असली पहरेदार
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समस्त इंडिया वाटर पोर्टल परिवार और अर्घ्यम की ओर से पानी के पुरोधा माने जाने वाले श्री अनुपम मिश्र जी को भावभीनी श्रद्धांजलि
श्री अनुपम मिश्र जी ने ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज दिल्ली में आज 19 दिसम्बर, 2016 प्रातः 5:27 पर अंतिम साँस ली। उनकी अंतिम विदाई यात्रा दोपहर 1:00 बजे से गांधी पीस फाउंडेशन से शुरू होगी और निगम बोध घाट के विद्युतीय शवदाहग्रह पर समाप्त होगी। 2:00 बजे से सभी रीतिरिवाजों के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी जाएगी।
तब देश में पानी और पर्यावरण को लेकर इतनी बातें और आज की तरह का सकारात्मक माहौल नहीं था, और न ही सरकारों की विषय सूची में पानी और पर्यावरण की फ़िक्र थी, उस माहौल में एक व्यक्तित्व उभरा जिसने पूरे देश में न सिर्फ पानी की अलख जगाई बल्कि समाज के सामने सूखी जमीन पर पानी की रजत बूँदों का सैलाब बनाकर भी दिखाया। वे देश में पानी के पहले पहरेदार रहे, जिन्होंने हमे पानी का मोल समझाया।
शब्दों की चौकीदारी संभव नहीं-अनुपम मिश्र
अनुपम मिश्र पानी और पर्यावरण पर काम करने के लिए जाने जाते हैं लेकिन उनकी सर्वाधिक चर्चित पुस्तक आज भी खरे हैं तालाब के साथ उन्होंने एक ऐसा प्रयोग किया जिसका दूरगामी दृष्टि दिखती है। उन्होंने अपनी किताब पर किसी तरह का कापीराईट नहीं रखा। इस किताब की अब तक एक लाख से अधिक प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। मीडिया वर्तमान स्वरूप और कापीराईट के सवाल पर हमने विस्तृत बात की। यहां प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश-
कापीराईट को लेकर आपका नजरिया यह क्यों है कि हमें अपने ही लिखे पर अपना दावा (कापीराईट) नहीं करना चाहिए?
कापीराईट क्या है इसके बारे में मैं बहुत जानता नहीं हूं। लेकिन मेरे मन में जो सवाल आये और उन सवालों के जवाब में मैंने जो जवाब तलाशे उसमें मैंने पाया कि आपका लिखा सिर्फ आपका नहीं है।
आइये! नदियों को मर जाने दें - अनुपम मिश्र
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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नोटिस बोर्ड
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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