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आज 22 अप्रैल है; अन्तरराष्ट्रीय माँ पृथ्वी का दिन। यह सच है कि 1960 के दशक में अमेरिका की औद्योगिक चिमनियों से उठते गन्दे धुएँ के खिलाफ आई जन-जागृति ही एक दिन ‘अन्तरराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस’ की नींव बनी। यह भी सच है कि धरती को आये बुखार और परिणामस्वरूप बदलते मौसम में हरित गैसों के उत्सर्जन में हुई बेतहाशा बढ़ोत्तरी का बड़ा योगदान है।
इस बढ़ोत्तरी को घटोत्तरी में बदलने के लिये दिसम्बर, 2015 के पहले पखवाड़े में दुनिया के देश पेरिस में जुटे और एक समझौता हुआ। आज पेरिस जलवायु समझौते पर हस्ताक्षर करने का भी दिन है। हस्ताक्षर होते ही यह समझौता सभी सम्बन्धित देशों पर लागू हो जाएगा।
कैंसर से इस गाँव के पचासों आदमी मर चुके हैं। बीसों बीमार हैं। किसी का इलाज चल रहा है, कोई इलाज से थककर मौत के इन्तजार में पड़ा है। पानी दूषित है सभी जानते हैं। चमड़े की बीमारी फैल रही है। लोग सशंकित हैं। खेती-किसानी पर निर्भर ग्रामीण कैंसर का महंगा इलाज कराना बहुत दिनों तक सम्भव नहीं हो पाता। अजीब-सी दहशत फैली है। यह कोई नामालूम-सा गाँव नहीं है। राजधानी से सटे गंगा के पार बसे बहुचर्चित प्रखण्ड राघोपुर का गाँव है जुड़ावनपुर बरारी। बड़ा गाँव है। राघोपुर थाना इसी गाँव में है। दो ग्राम पंचायतें हैं। जुड़ावनपुर बरारी और जुड़ावनपुर करारी। दोनों की हालत एक जैसी है।
पूरे इलाके में आर्सेनिकोसिस नामक बीमारी फैलने के लक्षण दिख रहे हैं। आर्सेनिक के लम्बे इस्तेमाल से होने वाले कैंसर का यह पहला चरण है। आर्सेनिक यहाँ के भूजल में है। इसक पता 2005 में ही चला। राज्य सरकार और यूनिसेफ को यह रिपोर्ट दी गई।
स्वामी सानन्द गंगा संकल्प संवाद - 14वाँ कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है:
1916 में जिस सरकार के राज्य में सूरज नहीं डूबता था। भारत में उसका गर्वनर बैठता था। फिर भी सरकार ने समझौता किया। आप याद कीजिए कि 1916 के गंगा समझौते में क्या हुआ था। 75 लोग थे; 35 सरकारी और 40 गैरसरकारी। केन्द्र, राज्य, इंजीनियरिंग, स्वास्थ्य... ये सभी प्रथम समूह में थे। गैरसरकारी में प्रजा, सन्त, सन्यासी, सामाजिक कार्यकर्ता और गंगा रिवर बेसिन के राजा-महाराजा थे। कौन नहीं था? एक तरह से सभी के प्रतिनिधि थे। सरकारी अधिकारी भी निश्चय करके हस्ताक्षर कर सके; समूह बैठकर निर्णय ले सके। किन्तु यह अब कैसे हो?
नहर वोट देती है, गंगा नहीं
हमने हरसम्भव कोशिश की। अविमुक्तेश्वरानन्द जी व मैंने कोशिश की कि कैसे गंगा मुद्दा बने। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के श्री मोहन भागवत जी से बात हुई, तो उन्होंने कहा कि इलेक्शन तक हमारी बात होगी। दरअसल, अब गंगा से हिंदू वोट नहीं मिलता।
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22 अप्रैल 2016, पृथ्वी दिवस पर विशेष
आज 22 अप्रैल है; अन्तरराष्ट्रीय माँ पृथ्वी का दिन। यह सच है कि 1960 के दशक में अमेरिका की औद्योगिक चिमनियों से उठते गन्दे धुएँ के खिलाफ आई जन-जागृति ही एक दिन ‘अन्तरराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस’ की नींव बनी। यह भी सच है कि धरती को आये बुखार और परिणामस्वरूप बदलते मौसम में हरित गैसों के उत्सर्जन में हुई बेतहाशा बढ़ोत्तरी का बड़ा योगदान है।
इस बढ़ोत्तरी को घटोत्तरी में बदलने के लिये दिसम्बर, 2015 के पहले पखवाड़े में दुनिया के देश पेरिस में जुटे और एक समझौता हुआ। आज पेरिस जलवायु समझौते पर हस्ताक्षर करने का भी दिन है। हस्ताक्षर होते ही यह समझौता सभी सम्बन्धित देशों पर लागू हो जाएगा।
दबंग राघोपुर में कैंसर का कहर, बड़े-बड़ों पर कोई नहीं असर
कैंसर से इस गाँव के पचासों आदमी मर चुके हैं। बीसों बीमार हैं। किसी का इलाज चल रहा है, कोई इलाज से थककर मौत के इन्तजार में पड़ा है। पानी दूषित है सभी जानते हैं। चमड़े की बीमारी फैल रही है। लोग सशंकित हैं। खेती-किसानी पर निर्भर ग्रामीण कैंसर का महंगा इलाज कराना बहुत दिनों तक सम्भव नहीं हो पाता। अजीब-सी दहशत फैली है। यह कोई नामालूम-सा गाँव नहीं है। राजधानी से सटे गंगा के पार बसे बहुचर्चित प्रखण्ड राघोपुर का गाँव है जुड़ावनपुर बरारी। बड़ा गाँव है। राघोपुर थाना इसी गाँव में है। दो ग्राम पंचायतें हैं। जुड़ावनपुर बरारी और जुड़ावनपुर करारी। दोनों की हालत एक जैसी है।
पूरे इलाके में आर्सेनिकोसिस नामक बीमारी फैलने के लक्षण दिख रहे हैं। आर्सेनिक के लम्बे इस्तेमाल से होने वाले कैंसर का यह पहला चरण है। आर्सेनिक यहाँ के भूजल में है। इसक पता 2005 में ही चला। राज्य सरकार और यूनिसेफ को यह रिपोर्ट दी गई।
समस्या यह कि नहर वोट दिलाती है, गंगा नहीं : स्वामी सानन्द
स्वामी सानन्द गंगा संकल्प संवाद - 14वाँ कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है:
1916 में जिस सरकार के राज्य में सूरज नहीं डूबता था। भारत में उसका गर्वनर बैठता था। फिर भी सरकार ने समझौता किया। आप याद कीजिए कि 1916 के गंगा समझौते में क्या हुआ था। 75 लोग थे; 35 सरकारी और 40 गैरसरकारी। केन्द्र, राज्य, इंजीनियरिंग, स्वास्थ्य... ये सभी प्रथम समूह में थे। गैरसरकारी में प्रजा, सन्त, सन्यासी, सामाजिक कार्यकर्ता और गंगा रिवर बेसिन के राजा-महाराजा थे। कौन नहीं था? एक तरह से सभी के प्रतिनिधि थे। सरकारी अधिकारी भी निश्चय करके हस्ताक्षर कर सके; समूह बैठकर निर्णय ले सके। किन्तु यह अब कैसे हो?
नहर वोट देती है, गंगा नहीं
हमने हरसम्भव कोशिश की। अविमुक्तेश्वरानन्द जी व मैंने कोशिश की कि कैसे गंगा मुद्दा बने। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के श्री मोहन भागवत जी से बात हुई, तो उन्होंने कहा कि इलेक्शन तक हमारी बात होगी। दरअसल, अब गंगा से हिंदू वोट नहीं मिलता।
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
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