तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

‘स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद’ का 13वाँ कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है:
गंगा पर टेस्टिंग के लिये मनेरी-भाली पर पहली परियोजना बनाना तय हुआ। आईआईटी, कानपुर की तरफ से मैं भी 15 दिन के लिये ट्रेनिंग पर गया था। तकनीक ट्रेनी के तौर पर मेरा नाम था। प्रबन्धन प्रशिक्षु के तौर पर जेएल बत्रा और अशोक मित्तल गए थे। जेएल बत्रा तब कानपुर आईआईटी में थे। वह आईआईएम, लखनऊ के पहले डायरेक्टर बने।
1978-79 में मैंने मनेरी-भाली का पर्यावरण देखा है। मेरे मन में प्रश्न उठता है कि तब मैंने विरोध क्यों नहीं किया? दरअसल, तब मुझे यह एहसास ही नहीं हुआ कि इससे गंगा सूख जाएगी। तब तक मैंने टनल प्रोजेक्ट नहीं देखा था। मैंने डैम प्रोजेक्ट देखे थे; भाखड़ा..रिहन्द देखे थे। मुझे लगता था कि पढ़ाई-वढ़ाई से ज्यादा, अनुभूति होती है। वह अनुभूति तब नहीं थी।
‘स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद’ का 13वाँ कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है:गंगा पर टेस्टिंग के लिये मनेरी-भाली पर पहली परियोजना बनाना तय हुआ। आईआईटी, कानपुर की तरफ से मैं भी 15 दिन के लिये ट्रेनिंग पर गया था। तकनीक ट्रेनी के तौर पर मेरा नाम था। प्रबन्धन प्रशिक्षु के तौर पर जेएल बत्रा और अशोक मित्तल गए थे। जेएल बत्रा तब कानपुर आईआईटी में थे। वह आईआईएम, लखनऊ के पहले डायरेक्टर बने।
1978-79 में मैंने मनेरी-भाली का पर्यावरण देखा है। मेरे मन में प्रश्न उठता है कि तब मैंने विरोध क्यों नहीं किया? दरअसल, तब मुझे यह एहसास ही नहीं हुआ कि इससे गंगा सूख जाएगी। तब तक मैंने टनल प्रोजेक्ट नहीं देखा था। मैंने डैम प्रोजेक्ट देखे थे; भाखड़ा..रिहन्द देखे थे। मुझे लगता था कि पढ़ाई-वढ़ाई से ज्यादा, अनुभूति होती है। वह अनुभूति तब नहीं थी।
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