तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

माँ गंगा की निर्मलता-अविरलता के संघर्ष की कहानी एक शताब्दी से अधिक पुरानी हो चुकी है। इतने लम्बे समय में अपने प्राणों को संकट में डालकर भी गंगा की अविरलता-निर्मलता सुनिश्चित करने के संकल्प पर डटे रहने वाले नाम चुनिंदा ही हैं। कह सकते हैं कि उनमे से एक नाम स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद का भी है। पूर्व में हम सभी उन्हें प्रोफेसर जीडी अग्रवाल के नाम से जानते रहे हैं। संयोग से स्वामी जी के जीवन और गंगा संघर्ष के बारे में बहुत कम लिखा और सुना गया है। सुखद है कि हिन्दी वाटर पोर्टल से बतौर लेखक-सलाहकार जुड़े श्री अरुण तिवारी को दो वर्ष पूर्व उनसे लम्बी बात करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्होंने बातचीत को शृंखलाबद्ध तरीके से प्रस्तुत करने का निर्णय लिया है। प्रस्तुत है इस बातचीत का एक परिचय :
खास परिचितों के बीच ‘जी डी’ के सम्बोधन से चर्चित सन्यासी स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद के गंगापुत्र होने के बारे में शायद ही किसी को सन्देह हो। बकौल श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी, वह भी गंगापुत्र हैं। “मैं आया नहीं हूँ; मुझे माँ गंगा ने बुलाया है।’’ - श्री मोदी का यह बयान तो बाद में आया, गंगा पुत्र स्वामी सानंद की आशा पहले बलवती हो गई थी कि श्री मोदी के नेतृत्व वाला दल केन्द्र में आया, तो गंगा जी को लेकर उनकी माँगों पर विचार अवश्य किया जाएगा। हालांकि उस वक्त तक राजनेताओं और धर्माचार्यों को लेकर स्वामी सानंद के अनुभव व आकलन पूरी तरह आशान्वित करने वाले नहीं थे; बावजूद इसके यदि आशा थी तो शायद इसलिये कि इस आशा के पीछे शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी का वह आश्वासन तथा दृढ़ संकल्प था, जो उन्होंने स्वामी सानंद के कठिन प्राणघातक उपवास का समापन कराते हुए वृन्दावन में क्रमशः दिया व दिखाया था।
बाढ़ को भूकम्प की तरह ही देश के लिये प्राकृतिक प्रकोप की संज्ञा दी जाती है। कुछ हद तक इसे सही भी माना जा सकता है। लेकिन यह पूरी तरह सही नहीं है। इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता। देश हर साल की तरह फिर इस बार बाढ़ का सामना कर रहा है। वह चाहे बादल फटने से आई बाढ़ हो या फिर बारिश से आई बाढ़, तबाही तो स्व
माँ गंगा की निर्मलता-अविरलता के संघर्ष की कहानी एक शताब्दी से अधिक पुरानी हो चुकी है। इतने लम्बे समय में अपने प्राणों को संकट में डालकर भी गंगा की अविरलता-निर्मलता सुनिश्चित करने के संकल्प पर डटे रहने वाले नाम चुनिंदा ही हैं। कह सकते हैं कि उनमे से एक नाम स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद का भी है। पूर्व में हम सभी उन्हें प्रोफेसर जीडी अग्रवाल के नाम से जानते रहे हैं। संयोग से स्वामी जी के जीवन और गंगा संघर्ष के बारे में बहुत कम लिखा और सुना गया है। सुखद है कि हिन्दी वाटर पोर्टल से बतौर लेखक-सलाहकार जुड़े श्री अरुण तिवारी को दो वर्ष पूर्व उनसे लम्बी बात करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्होंने बातचीत को शृंखलाबद्ध तरीके से प्रस्तुत करने का निर्णय लिया है। प्रस्तुत है इस बातचीत का एक परिचय :खास परिचितों के बीच ‘जी डी’ के सम्बोधन से चर्चित सन्यासी स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद के गंगापुत्र होने के बारे में शायद ही किसी को सन्देह हो। बकौल श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी, वह भी गंगापुत्र हैं। “मैं आया नहीं हूँ; मुझे माँ गंगा ने बुलाया है।’’ - श्री मोदी का यह बयान तो बाद में आया, गंगा पुत्र स्वामी सानंद की आशा पहले बलवती हो गई थी कि श्री मोदी के नेतृत्व वाला दल केन्द्र में आया, तो गंगा जी को लेकर उनकी माँगों पर विचार अवश्य किया जाएगा। हालांकि उस वक्त तक राजनेताओं और धर्माचार्यों को लेकर स्वामी सानंद के अनुभव व आकलन पूरी तरह आशान्वित करने वाले नहीं थे; बावजूद इसके यदि आशा थी तो शायद इसलिये कि इस आशा के पीछे शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी का वह आश्वासन तथा दृढ़ संकल्प था, जो उन्होंने स्वामी सानंद के कठिन प्राणघातक उपवास का समापन कराते हुए वृन्दावन में क्रमशः दिया व दिखाया था।
बाढ़ को भूकम्प की तरह ही देश के लिये प्राकृतिक प्रकोप की संज्ञा दी जाती है। कुछ हद तक इसे सही भी माना जा सकता है। लेकिन यह पूरी तरह सही नहीं है। इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता। देश हर साल की तरह फिर इस बार बाढ़ का सामना कर रहा है। वह चाहे बादल फटने से आई बाढ़ हो या फिर बारिश से आई बाढ़, तबाही तो स्व
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