तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

इन दिनों खेती- संकट और किसान आत्महत्या का मुद्दा गरम है। किसानों की मुसीबतें कम होने की बजाय बढ़ती जा रही हैं। बेमौसम बारिश ने गेहूँ की फसल चौपट कर दी थी। किसान अपनी जान देने पर मजबूर हैं। एक के बाद एक किसानों की खुदकुशी की घटनाएँ सामने आ रही हैं। दो दशकों में अब तक 3 लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं। इस
खेती में रासायनिक खादों और कीटनाशकों के निरन्तर इस्तेमाल से आज अनाज, फल, सब्जी जैसी सभी खाद्य वस्तुएँ जहरीली होती जा रही हैं। इसका तोड़ अगर कुछ है तो जैविक या गैर-रासायनिक खेती। भारत के कई राज्यों में इस दिशा में सक्रिय पहल हो चुकी है। लेकिन ज़मीनी स्तर पर अब भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। इस बारे में बता रही हैं अनीता सहरावत।
ज्यादा अरसा नहीं हुआ, जब आन्ध्र प्रदेश में रामचन्द्रपुरम गाँव के किसानों की खेती की ज़मीन गिरवी रखी जा चुकी थी। महँगी खाद-बीज तो दूर, दो जून की रोटी मयस्सर होनी मुश्किल हो गई थी। तब हारकर उन्होंने हर तरह के रासायनिक खादों और कीटनाशकों को अपनी खेती से निकाल फेंका और परम्परागत जुताई-बुआई की टेक ले ली। जैविक खेती उनके लिये रामबाण साबित हुई।
तीन साल के भीतर उन्होंने न केवल अपना पूरा कर्जा पाट दिया बल्कि अपनी जमीनें भी छुड़ा लीं।
इन दिनों खेती- संकट और किसान आत्महत्या का मुद्दा गरम है। किसानों की मुसीबतें कम होने की बजाय बढ़ती जा रही हैं। बेमौसम बारिश ने गेहूँ की फसल चौपट कर दी थी। किसान अपनी जान देने पर मजबूर हैं। एक के बाद एक किसानों की खुदकुशी की घटनाएँ सामने आ रही हैं। दो दशकों में अब तक 3 लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं। इस
खेती में रासायनिक खादों और कीटनाशकों के निरन्तर इस्तेमाल से आज अनाज, फल, सब्जी जैसी सभी खाद्य वस्तुएँ जहरीली होती जा रही हैं। इसका तोड़ अगर कुछ है तो जैविक या गैर-रासायनिक खेती। भारत के कई राज्यों में इस दिशा में सक्रिय पहल हो चुकी है। लेकिन ज़मीनी स्तर पर अब भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। इस बारे में बता रही हैं अनीता सहरावत।ज्यादा अरसा नहीं हुआ, जब आन्ध्र प्रदेश में रामचन्द्रपुरम गाँव के किसानों की खेती की ज़मीन गिरवी रखी जा चुकी थी। महँगी खाद-बीज तो दूर, दो जून की रोटी मयस्सर होनी मुश्किल हो गई थी। तब हारकर उन्होंने हर तरह के रासायनिक खादों और कीटनाशकों को अपनी खेती से निकाल फेंका और परम्परागत जुताई-बुआई की टेक ले ली। जैविक खेती उनके लिये रामबाण साबित हुई।
तीन साल के भीतर उन्होंने न केवल अपना पूरा कर्जा पाट दिया बल्कि अपनी जमीनें भी छुड़ा लीं।
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