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एक बार फिर यमुना राजनीति की शिकार हो गई। आमरण अनशन की घोषणा करके दिल्ली आए यमुना तट के बाशिन्दे कोरा आश्वासन पाकर लौट गए। न दिल्ली की यमुना में नाले गिरने रुके और न ही हथिनीकुण्ड से पानी की मात्रा बढ़ी। अन्तर एक ही आया है। सरकार का चेहरा बदल गया है, करतूत नहीं।
यमुना आन्दोलन एक बार फिर मँझधार में फँसकर रह गया। नेतृत्व के अभाव और सरकार की चालाकी से यमुना पथ के बाशिन्दे सिर्फ आश्वासन लेकर वापस लौट गए। कमोबेश 2011 और 2013 की कहानी को ही दोहराया गया।
इस बार का आन्दोलन शुरू से ही हारी हुई लड़ाई लड़ रहा था। आन्दोलन के ज्यादातर नेता केन्द्रीय मन्त्रियों के साथ अपने मधुर सम्बन्धों में शहद डालने की कोशिश में जुटे थे। 15 मार्च को कोसीकलाँ से प्रारम्भ हुई यात्रा को यही नहीं पता था कि लड़ाई किससे है।
इसी जलधारा को इतिहासकारों ने द्रव्यवती नदी कहा है। यह 50 किलोमीटर लम्बी नदी थी, जो कालान्तर में पहाड़ियों के नंगे होने के चलते छोटी होती गई। बाद में इसके किनारे अमानीशाह नाम के फकीर की मजार बनी तो द्रव्यवती नदी अमानीशाह नाला कहलाने लगी। द्रव्यवती उर्फ अमानीशाह का यही नाला जयपुर के पेयजल का सबसे बड़ा स्रोत रहा है।
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कालिये ने बदला रूप...
एक बार फिर यमुना राजनीति की शिकार हो गई। आमरण अनशन की घोषणा करके दिल्ली आए यमुना तट के बाशिन्दे कोरा आश्वासन पाकर लौट गए। न दिल्ली की यमुना में नाले गिरने रुके और न ही हथिनीकुण्ड से पानी की मात्रा बढ़ी। अन्तर एक ही आया है। सरकार का चेहरा बदल गया है, करतूत नहीं।
यमुना आन्दोलन एक बार फिर मँझधार में फँसकर रह गया। नेतृत्व के अभाव और सरकार की चालाकी से यमुना पथ के बाशिन्दे सिर्फ आश्वासन लेकर वापस लौट गए। कमोबेश 2011 और 2013 की कहानी को ही दोहराया गया।
इस बार का आन्दोलन शुरू से ही हारी हुई लड़ाई लड़ रहा था। आन्दोलन के ज्यादातर नेता केन्द्रीय मन्त्रियों के साथ अपने मधुर सम्बन्धों में शहद डालने की कोशिश में जुटे थे। 15 मार्च को कोसीकलाँ से प्रारम्भ हुई यात्रा को यही नहीं पता था कि लड़ाई किससे है।
लालच, अनियमितता और एक नदी की लूट
इसी जलधारा को इतिहासकारों ने द्रव्यवती नदी कहा है। यह 50 किलोमीटर लम्बी नदी थी, जो कालान्तर में पहाड़ियों के नंगे होने के चलते छोटी होती गई। बाद में इसके किनारे अमानीशाह नाम के फकीर की मजार बनी तो द्रव्यवती नदी अमानीशाह नाला कहलाने लगी। द्रव्यवती उर्फ अमानीशाह का यही नाला जयपुर के पेयजल का सबसे बड़ा स्रोत रहा है।
तालाबों के सामुदायिक प्रबन्धन का पाठ पढ़ाते हैं ‘एरी’
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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