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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

Submitted by Hindi on Mon, 10/06/2014 - 15:25
Source:
एब्सल्यूट इंडिया, 06 अक्टूबर 2014
Keep Clean

नई दिल्ली ! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए ‘स्वच्छ भारत मिशन’ पर कूटनीतिज्ञों और विदेशी पर्यटकों का कहना है कि यदि इस अभियान को अगले पांच वर्षो में सफल बनाना है और वास्तव में भारत को गंदगी मुक्त करना है तो लोगों की मानसिकता बदलनी होगी।

Submitted by Hindi on Sun, 10/05/2014 - 12:15
Source:
एब्सल्यूट इंडिया, 05 अक्तूबर 2014
Sanitation

जिस प्रकार इतिहास में कई प्रकार के विलक्षण कार्यों को जनसमर्थन के चलते प्राप्त किया गया, उसी प्रकार स्वच्छ भारत अभियान में जनमानस के जुड़ने से सफलता की गारंटी संभव है।

इतिहास के पन्नों में स्वच्छता को लेकर कितनी गहराई है, इसको गांधी युग में देखा जा सकता है। शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि शासकों ने स्वच्छता की इतनी गंभीर चिंता की हो।

Submitted by Shivendra on Sun, 10/05/2014 - 12:15
Source:
द सी एक्सप्रेस, 05 अक्टूबर 2014
Sewage
देश में हर साल हजार से ज्यादा लोग जाम सीवर की मरम्मत करने के दौरान दम घुटने से मारे जाते हैं । हर मौत का कारण सीवर की जहरीली गैस बताया जाता है। पुलिस ठेकेदार के खिलाफ लापरवाही का मामला दर्ज कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है। शायद यह पुलिस को भी नहीं मालूम है कि सीवर सफाई का ठेका देना हाईकोर्ट के आदेश के विपरीत है। समाज के जिम्मेदार लोगों ने कभी महसूस ही नहीं किया कि नरक-कुंड की सफाई के लिए बगैर तकनीकी ज्ञान व उपकरणों के निरीह मजदूरों को सीवर में उतारना अमानवीय है।

जब गरमी अपना रंग दिखाती है, तो गहरे सीवरों में पानी कुछ कम हो जाता है। सरकारी फाइलें भी बारिश की तैयारी के नाम पर सीवरों की सफाई की चिंता में तेजी से दौड़ने लगती हैं। लेकिन इस बात को भूला आदेश दिया जाता है कि 40-45 तापमान में सीवर की गहराई निरीह मजदूरों के लिए मौतघर बन जाती है।

यह विडंबना है कि सरकार व सफाई कर्मचारी आयोग सिर पर मैला ढोने की अमानवीय प्रथा पर रोक लगाने के नारों से आगे इस तरह से हो रही मौतों पर ध्यान ही नहीं देता है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और मुंबई हाईकोर्ट ने पांच साल पहले सीवर की सफाई के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे, जिनकी परवाह और जानकारी किसी को नहीं है। वैसे तो लाखों रुपए बजट वाला यह काम कागजों पर ही अधिक होता है। जहां हकीकत में सीवर की सफाई होती भी है, तो कई सरकारी कागजों को रद्दी का कागज मान कर होती है।

नरक कुंड की सफाई का जोखिम उठाने वाले लोगों की सुरक्षा-व्यवस्था के कई कानून हैं और मानव अधिकार आयोग के निर्देश भी। चूंकि इस अमानवीय त्रासदी में मरने वाले अधिकांश लोग असंगठित दैनिक मजदूर होते हैं, अत: ना तो इस पर विरोध दर्ज होता है और न ही भविष्य में ऐसी दुर्घटनाएं रोकने के उपाय।

कोर्ट के निदेर्शों के अनुसार, सीवर की सफाई करने वाली एजेंसी के पास सीवर लाइन के नक्शे, उसकी गहराई से संबंधित आंकड़े होना चाहिए। सीवर सफाई का दैनिक रिकॉर्ड, काम में लगे लोगों की नियमित स्वास्थ्य की जांच, आवश्यक सुरक्षा उपकरण मुहैया करवाना, काम में लगे कर्मचारियों का नियमित प्रशिक्षण, सीवर में गिरने वाले कचरे की नियमित जांच कि कहीं इसमें कोई रसायन तो नहीं गिर रहे हैं; जैसे निदेर्शों का पालन होता कहीं नहीं दिखता है।

भूमिगत सीवरों ने भले ही शहरी जीवन में कुछ सहूलियतें दी हों, लेकिन इसकी सफाई करने वालों के जीवन में इस अंधेरे नाले में और भी अंधेरा कर दिया है। अनुमान है कि हर साल देशभर के सीवरों में औसतन 200 से 300 लोग दम घुटने से मरते हैं। जो दम घुटने से बच जाते हैं, उनका जीवन सीवर की विषैली गंदगी के कारण नरक से भी बदतर हो जाता है। देश में दो लाख से अधिक लोग जाम हो गए सीवरों को खोलने, मेनहोल में घुसकर वहां जमा हो गई गाद, पत्थर को हटाने के काम में लगे हैं। कई-कई महीनों से बंद पड़े इन गहरे नरक कुंडों में कार्बन मोनो ऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाईड, मीथेन जैसी दमघोटू गैसें होती हैं।

यह एक शर्मनाक पहलू है कि यह जानते हुए भी कि भीतर जानलेवा गैसें और रसायन हैं, एक इंसान दूसरे इंसान को बगैर किसी बचाव या सुरक्षा-साधनों के भीतर ढकेल देता है। सनद रहे कि महानगरों के सीवरों में महज घरेलू निस्तारण ही नहीं होता है, उसमें ढेर सारे कारखानों की गंदगी भी होती है और आज घर भी विभिन्न रसायनों के प्रयोग का स्थल बन चुके हैं। इस पानी में ग्रीस-चिकनाई, कई किस्म के क्लोराइड व सल्फेट, पारा, सीसा के यौगिक, अमोनिया गैस और न जाने क्या-क्या होता है।

भूमिगत सीवरों ने भले ही शहरी जीवन में कुछ सहूलियतें दी हों, लेकिन इसकी सफाई करने वालों के जीवन में इस अंधेरे नाले में और भी अंधेरा कर दिया है। हर साल देशभर के सीवरों में औसतन 200 से 300 लोग दम घुटने से मरते हैं। जो दम घुटने से बच जाते हैं, उनका जीवन सीवर की विषैली गंदगी के कारण नरक से भी बदतर हो जाता है। देश में दो लाख से अधिक लोग जाम हो गए सीवरों को खोलने, मेनहोल में घुसकर वहां जमा हो गई गाद, पत्थर को हटाने के काम में लगे हैं। कई-कई महीनों से बंद पड़े इन गहरे नरक कुंडों में कार्बन मोनो ऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाईड, मीथेन जैसी दमघोटू गैसें होती हैं।

सीवेज के पानी के संपर्क में आने पर सफाईकर्मी के शरीर पर छाले या घाव पड़ना आम बात है। नाइट्रेट और नाइट्राइड के कारण दमा और फेंफड़े के संक्रमण होने की प्रबल संभावना होती है। सीवर में मिलने वाले क्रोमियम से शरीर पर घाव होने, नाक की झिल्ली फटने और फेंफड़े का कैंसर होने के आसार होते हैं। भीतर का अधिक तापमान इन घातक प्रभावों को कई गुना बढ़ा देता है। यह वे स्वयं जानते हैं कि सीवर की सफाई करने वाला 10-12 साल से अधिक काम नहीं कर पाता है, क्योंकि उनका शरीर काम करने लायक ही नहीं रह जाता है ।

ऐसी बदबू ,गंदगी और रोजगार की अनिश्चितता में जीने वाले इन लोगों का शराब व अन्य नशों की गिरफ्त में आना लाजिमी ही है और नशे की यह लत उन्हें कई गंभीर बीमारियों का शिकर बना देती है। आमतौर पर ये लोग मेनहोल में उतरने से पहले ही शराब चढ़ा लेते हैं, क्योंकि नशे के सरूर में वे भूल पाते हैं कि काम करते समय उन्हें किन-किन गंदगियों से गुजरना है।

गौरतलब है कि शराब के बाद शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, फिर गहरे सीवरों में तो यह प्राणवायु होती ही नहीं है। तभी सीवर में उतरते ही इनका दम घुटने लगता है। यही नहीं सीवर के काम में लगे लोगों को सामाजिक उपेक्षा का भी सामना करना होता है। इन लोगों के यहां रोटी-बेटी का रिश्ता करने में उनके ही समाज वाले परहेज करते हैं।

दिल्ली में सीवर सफाई में लगे कुछ श्रमिकों के बीच किए गए सर्वे से मालूम चलता है कि उनमें से 49 फीसदी लोग सांस की बीमारियों, खांसी व सीने में दर्द के रोगी हैं। 11 प्रतिशत को डरमैटाइसिस, एग्जिमा और ऐसे ही चर्मरोग हैं। लगातार गंदे पानी में डुबकी लगाने के कारण कान बहने व कान में संक्रमण, आंखों में जलन व कम दिखने की शिकायत करने वालों का संख्या 32 फीसदी थी । भूख न लगना उनका एक आम रोग है । इतना होने पर भी सीवरकर्मियों को उनके जीवन की जटिलताओं की जानकारी देने के लिए न तो सरकारी स्तर पर कोई प्रयास हुए हैं और न ही किसी स्वयंसेवी संस्था ने इसका बीड़ा उठाया है। अहमदाबाद की एक संस्था कामगार स्वास्थ्य सुरक्षा मंडल ने कुछ वर्ष पहले इस दिशा में मामूली पहल अवश्य की थी।

वैसे यह सभी सरकारी दिशा-निदेर्शों में दर्ज हैं कि सीवर सफाई करने वालों को गैस -टेस्टर (विषैली गैस की जांच का उपकरण), गंदी हवा को बाहर फेंकने के लिए ब्लोअर, टार्च, दस्ताने, चश्मा और कान को ढंकने का कैप, हैलमेट मुहैया करवाना आवश्यक है। मुंबई हाईकोर्ट का निर्देश था कि सीवर सफाई का काम ठेकेदारों के माध्यम से कतई नहीं करवाना चाहिए। यहां जान लेना होगा कि अब दिल्ली व अन्य महानगरों में सीवर सफाई का अधिकांश काम ठेकेदारों द्वारा करवाया जा रहा है, जिनके यहां दैनिक वेतन पर कर्मचारी रखे जाते हैं।

सफाई का काम करने के बाद उन्हें पीने का स्वच्छ पानी, नहाने के लिए साबुन व पानी तथा स्थान उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी भी कार्यकारी एजेंसी की है । राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भी इस बारे में कड़े आदेश जारी कर चुका है । इसके बावजूद ये उपकरण और सुविधाएं गायब है ।

आज के अर्थ-प्रधान और मशीनी युग में सफाईकर्मियों के राजनीतिक व सामाजिक मूल्यों के आकलन का नजरिया बदलना जरूरी है । सीवरकर्मियों को देखें तो महसूस होता है कि उनकी असली समस्याओं के बनिस्पत भावनात्मक मुद्दों को अधिक उछाला जाता रहा है । केवल छुआछूत या अत्याचार जैसे विषयों पर टिका चिंतन-मंथन उनकी व्यावहारिक दिक्कतों से बेहद दूर है। सीवर में काम करने वालों को आर्थिक संबल और स्वास्थ्य की सुरक्षा देकर उनके बीच नया विश्वास पैदा किया जा सकता है।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

विदेशियों की राय: स्वच्छ भारत के लिए बदलनी होगी मानसिकता

Submitted by Hindi on Mon, 10/06/2014 - 15:25
Author
एब्सल्यूट इंडिया
Source
एब्सल्यूट इंडिया, 06 अक्टूबर 2014
Keep Clean

.नई दिल्ली ! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए ‘स्वच्छ भारत मिशन’ पर कूटनीतिज्ञों और विदेशी पर्यटकों का कहना है कि यदि इस अभियान को अगले पांच वर्षो में सफल बनाना है और वास्तव में भारत को गंदगी मुक्त करना है तो लोगों की मानसिकता बदलनी होगी।

स्वच्छ भारत अभियान की प्रासंगिकता

Submitted by Hindi on Sun, 10/05/2014 - 12:15
Author
सुशील कुमार सिंह
Source
एब्सल्यूट इंडिया, 05 अक्तूबर 2014
Sanitation

जिस प्रकार इतिहास में कई प्रकार के विलक्षण कार्यों को जनसमर्थन के चलते प्राप्त किया गया, उसी प्रकार स्वच्छ भारत अभियान में जनमानस के जुड़ने से सफलता की गारंटी संभव है।

.इतिहास के पन्नों में स्वच्छता को लेकर कितनी गहराई है, इसको गांधी युग में देखा जा सकता है। शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि शासकों ने स्वच्छता की इतनी गंभीर चिंता की हो।

देशभर में मौतघर बनते सीवर

Submitted by Shivendra on Sun, 10/05/2014 - 12:15
Author
पंकज चतुर्वेदी
Source
द सी एक्सप्रेस, 05 अक्टूबर 2014
Sewage
. देश में हर साल हजार से ज्यादा लोग जाम सीवर की मरम्मत करने के दौरान दम घुटने से मारे जाते हैं । हर मौत का कारण सीवर की जहरीली गैस बताया जाता है। पुलिस ठेकेदार के खिलाफ लापरवाही का मामला दर्ज कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है। शायद यह पुलिस को भी नहीं मालूम है कि सीवर सफाई का ठेका देना हाईकोर्ट के आदेश के विपरीत है। समाज के जिम्मेदार लोगों ने कभी महसूस ही नहीं किया कि नरक-कुंड की सफाई के लिए बगैर तकनीकी ज्ञान व उपकरणों के निरीह मजदूरों को सीवर में उतारना अमानवीय है।

जब गरमी अपना रंग दिखाती है, तो गहरे सीवरों में पानी कुछ कम हो जाता है। सरकारी फाइलें भी बारिश की तैयारी के नाम पर सीवरों की सफाई की चिंता में तेजी से दौड़ने लगती हैं। लेकिन इस बात को भूला आदेश दिया जाता है कि 40-45 तापमान में सीवर की गहराई निरीह मजदूरों के लिए मौतघर बन जाती है।

यह विडंबना है कि सरकार व सफाई कर्मचारी आयोग सिर पर मैला ढोने की अमानवीय प्रथा पर रोक लगाने के नारों से आगे इस तरह से हो रही मौतों पर ध्यान ही नहीं देता है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और मुंबई हाईकोर्ट ने पांच साल पहले सीवर की सफाई के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे, जिनकी परवाह और जानकारी किसी को नहीं है। वैसे तो लाखों रुपए बजट वाला यह काम कागजों पर ही अधिक होता है। जहां हकीकत में सीवर की सफाई होती भी है, तो कई सरकारी कागजों को रद्दी का कागज मान कर होती है।

नरक कुंड की सफाई का जोखिम उठाने वाले लोगों की सुरक्षा-व्यवस्था के कई कानून हैं और मानव अधिकार आयोग के निर्देश भी। चूंकि इस अमानवीय त्रासदी में मरने वाले अधिकांश लोग असंगठित दैनिक मजदूर होते हैं, अत: ना तो इस पर विरोध दर्ज होता है और न ही भविष्य में ऐसी दुर्घटनाएं रोकने के उपाय।

कोर्ट के निदेर्शों के अनुसार, सीवर की सफाई करने वाली एजेंसी के पास सीवर लाइन के नक्शे, उसकी गहराई से संबंधित आंकड़े होना चाहिए। सीवर सफाई का दैनिक रिकॉर्ड, काम में लगे लोगों की नियमित स्वास्थ्य की जांच, आवश्यक सुरक्षा उपकरण मुहैया करवाना, काम में लगे कर्मचारियों का नियमित प्रशिक्षण, सीवर में गिरने वाले कचरे की नियमित जांच कि कहीं इसमें कोई रसायन तो नहीं गिर रहे हैं; जैसे निदेर्शों का पालन होता कहीं नहीं दिखता है।

भूमिगत सीवरों ने भले ही शहरी जीवन में कुछ सहूलियतें दी हों, लेकिन इसकी सफाई करने वालों के जीवन में इस अंधेरे नाले में और भी अंधेरा कर दिया है। अनुमान है कि हर साल देशभर के सीवरों में औसतन 200 से 300 लोग दम घुटने से मरते हैं। जो दम घुटने से बच जाते हैं, उनका जीवन सीवर की विषैली गंदगी के कारण नरक से भी बदतर हो जाता है। देश में दो लाख से अधिक लोग जाम हो गए सीवरों को खोलने, मेनहोल में घुसकर वहां जमा हो गई गाद, पत्थर को हटाने के काम में लगे हैं। कई-कई महीनों से बंद पड़े इन गहरे नरक कुंडों में कार्बन मोनो ऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाईड, मीथेन जैसी दमघोटू गैसें होती हैं।

यह एक शर्मनाक पहलू है कि यह जानते हुए भी कि भीतर जानलेवा गैसें और रसायन हैं, एक इंसान दूसरे इंसान को बगैर किसी बचाव या सुरक्षा-साधनों के भीतर ढकेल देता है। सनद रहे कि महानगरों के सीवरों में महज घरेलू निस्तारण ही नहीं होता है, उसमें ढेर सारे कारखानों की गंदगी भी होती है और आज घर भी विभिन्न रसायनों के प्रयोग का स्थल बन चुके हैं। इस पानी में ग्रीस-चिकनाई, कई किस्म के क्लोराइड व सल्फेट, पारा, सीसा के यौगिक, अमोनिया गैस और न जाने क्या-क्या होता है।

भूमिगत सीवरों ने भले ही शहरी जीवन में कुछ सहूलियतें दी हों, लेकिन इसकी सफाई करने वालों के जीवन में इस अंधेरे नाले में और भी अंधेरा कर दिया है। हर साल देशभर के सीवरों में औसतन 200 से 300 लोग दम घुटने से मरते हैं। जो दम घुटने से बच जाते हैं, उनका जीवन सीवर की विषैली गंदगी के कारण नरक से भी बदतर हो जाता है। देश में दो लाख से अधिक लोग जाम हो गए सीवरों को खोलने, मेनहोल में घुसकर वहां जमा हो गई गाद, पत्थर को हटाने के काम में लगे हैं। कई-कई महीनों से बंद पड़े इन गहरे नरक कुंडों में कार्बन मोनो ऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाईड, मीथेन जैसी दमघोटू गैसें होती हैं।

सीवेज के पानी के संपर्क में आने पर सफाईकर्मी के शरीर पर छाले या घाव पड़ना आम बात है। नाइट्रेट और नाइट्राइड के कारण दमा और फेंफड़े के संक्रमण होने की प्रबल संभावना होती है। सीवर में मिलने वाले क्रोमियम से शरीर पर घाव होने, नाक की झिल्ली फटने और फेंफड़े का कैंसर होने के आसार होते हैं। भीतर का अधिक तापमान इन घातक प्रभावों को कई गुना बढ़ा देता है। यह वे स्वयं जानते हैं कि सीवर की सफाई करने वाला 10-12 साल से अधिक काम नहीं कर पाता है, क्योंकि उनका शरीर काम करने लायक ही नहीं रह जाता है ।

ऐसी बदबू ,गंदगी और रोजगार की अनिश्चितता में जीने वाले इन लोगों का शराब व अन्य नशों की गिरफ्त में आना लाजिमी ही है और नशे की यह लत उन्हें कई गंभीर बीमारियों का शिकर बना देती है। आमतौर पर ये लोग मेनहोल में उतरने से पहले ही शराब चढ़ा लेते हैं, क्योंकि नशे के सरूर में वे भूल पाते हैं कि काम करते समय उन्हें किन-किन गंदगियों से गुजरना है।

गौरतलब है कि शराब के बाद शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, फिर गहरे सीवरों में तो यह प्राणवायु होती ही नहीं है। तभी सीवर में उतरते ही इनका दम घुटने लगता है। यही नहीं सीवर के काम में लगे लोगों को सामाजिक उपेक्षा का भी सामना करना होता है। इन लोगों के यहां रोटी-बेटी का रिश्ता करने में उनके ही समाज वाले परहेज करते हैं।

दिल्ली में सीवर सफाई में लगे कुछ श्रमिकों के बीच किए गए सर्वे से मालूम चलता है कि उनमें से 49 फीसदी लोग सांस की बीमारियों, खांसी व सीने में दर्द के रोगी हैं। 11 प्रतिशत को डरमैटाइसिस, एग्जिमा और ऐसे ही चर्मरोग हैं। लगातार गंदे पानी में डुबकी लगाने के कारण कान बहने व कान में संक्रमण, आंखों में जलन व कम दिखने की शिकायत करने वालों का संख्या 32 फीसदी थी । भूख न लगना उनका एक आम रोग है । इतना होने पर भी सीवरकर्मियों को उनके जीवन की जटिलताओं की जानकारी देने के लिए न तो सरकारी स्तर पर कोई प्रयास हुए हैं और न ही किसी स्वयंसेवी संस्था ने इसका बीड़ा उठाया है। अहमदाबाद की एक संस्था कामगार स्वास्थ्य सुरक्षा मंडल ने कुछ वर्ष पहले इस दिशा में मामूली पहल अवश्य की थी।

वैसे यह सभी सरकारी दिशा-निदेर्शों में दर्ज हैं कि सीवर सफाई करने वालों को गैस -टेस्टर (विषैली गैस की जांच का उपकरण), गंदी हवा को बाहर फेंकने के लिए ब्लोअर, टार्च, दस्ताने, चश्मा और कान को ढंकने का कैप, हैलमेट मुहैया करवाना आवश्यक है। मुंबई हाईकोर्ट का निर्देश था कि सीवर सफाई का काम ठेकेदारों के माध्यम से कतई नहीं करवाना चाहिए। यहां जान लेना होगा कि अब दिल्ली व अन्य महानगरों में सीवर सफाई का अधिकांश काम ठेकेदारों द्वारा करवाया जा रहा है, जिनके यहां दैनिक वेतन पर कर्मचारी रखे जाते हैं।

सफाई का काम करने के बाद उन्हें पीने का स्वच्छ पानी, नहाने के लिए साबुन व पानी तथा स्थान उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी भी कार्यकारी एजेंसी की है । राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भी इस बारे में कड़े आदेश जारी कर चुका है । इसके बावजूद ये उपकरण और सुविधाएं गायब है ।

सीवर साफ करते सफाईकर्मीआज के अर्थ-प्रधान और मशीनी युग में सफाईकर्मियों के राजनीतिक व सामाजिक मूल्यों के आकलन का नजरिया बदलना जरूरी है । सीवरकर्मियों को देखें तो महसूस होता है कि उनकी असली समस्याओं के बनिस्पत भावनात्मक मुद्दों को अधिक उछाला जाता रहा है । केवल छुआछूत या अत्याचार जैसे विषयों पर टिका चिंतन-मंथन उनकी व्यावहारिक दिक्कतों से बेहद दूर है। सीवर में काम करने वालों को आर्थिक संबल और स्वास्थ्य की सुरक्षा देकर उनके बीच नया विश्वास पैदा किया जा सकता है।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
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Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
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Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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