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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

Submitted by Shivendra on Mon, 09/08/2014 - 09:51
Source:
water harvesting
हाल ही मुझे उत्तर प्रदेश के महोबा में इन किसानों से मिलने और उनके तालाब देखने का मौका मिला। जहां कजली मेला में किसानों के सम्मान का भव्य कार्यक्रम था। यहां 13 अगस्त को सैकड़ों की तादाद में किसान एकत्रित हुए। अपना तालाब अभियान किसान महोत्सव का आयोजन महोबा संरक्षण एवं विकास समिति, नगर पालिका परिषद और अपना तालाब अभियान ने किया था। यहां आए कई किसानों ने न केवल अपने खेतों में तालाब का निर्माण किया है बल्कि कई और किसानों को तालाब बनाने के लिए प्रोत्साहित किया है।कजली मेला में किसानों को जल प्रहरी सम्मान से नवाजा गया। दूसरे दिन हम बरबई, काकुन और चरखारी गांवों में तालाब देखने गए और किसानों से मिले।
Submitted by Shivendra on Sun, 09/07/2014 - 12:30
Source:
कल्पतरु एक्सप्रेस, जुलाई 2014
जल नहीं होगा तो कल नहीं होगा। यह स्लोगन संकेत देता है कि कृषि को बचाने के लिए भी जल को बचाना होगा। बरसात के जल का उपयोग खेती में किस तरह किया जा सकता है और मृदा को कैसे बचाया जा सकता है, अलनीनो जैसे संकटों से बचने के लिए भी यह जरूरी है। इन मुद्दों पर प्रकाश डाल रही है दिलीप कुमार यादव की रिपोर्ट।

भूमि एवं जल प्रकृति द्वारा मनुष्य को दी गई दो अनमोल संपदा हैं, जिनका कृषि हेतु उपयोग मनुष्य प्राचीन काल से करता आया है। परंतु, वर्तमान में इनका उपयोग इतनी लापरवाही से हो रहा है कि इनका संतुलन बिगड़ गया है तथा भविष्य में इनके संरक्षण के बिना मनुष्य का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। मानसून की बेरुखी ने ऐसी संभावनाओं की प्रासंगिकता को और बढ़ाया है।

असल में हमारे देश की आर्थिक उन्नति में कृषि का बहुमूल्य योगदान है।

देश में लगभग 70 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि वर्षा पर निर्भर है। उत्तराखंड में तो लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर है तथा लगभग 90 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि वर्षा पर निर्भर है।
Submitted by Shivendra on Sun, 09/07/2014 - 10:20
Source:
प्रजातंत्र लाइव, 07 सितंबर 2014
भारत के बेंगलुरु, मध्य प्रदेश के किओलारी नैनपुर, पंजाब के भटिंडा एवं गुरदासपुर, उत्तराखंड का गढ़वाल, हिमाचल प्रदेश एवं दून घाटी के भूमिगत जल में रेडॉन-222 के मिलने की वैज्ञानिक पुष्टि हुई है।

बेंगलुरु शहर के भूमिगत जल में रेडॉन की मात्रा सहनशीलता की सीमा 11.83बीक्यू/लीटर से ऊपर है। कहीं-कहीं यह सौ गुना अधिक है। यहां पर रेडॉन की औसत मात्रा 55.96 बीक्यू/लीटर से 1189.30 बीक्यू/लीटर तक पाई गई है।

बेंगलुरु शहर में भूमिगत जल की तुलना में सतही जल में कम रेडॉन पाए गए क्योंकि वायुमंडल के संपर्क में रहने के कारण यह गैस जल से वायुमंडल में आसानी से घुल जाती है।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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सूखे का मुकाबला तालाबों से

Submitted by Shivendra on Mon, 09/08/2014 - 09:51
Author
बाबा मायाराम
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water harvesting
हाल ही मुझे उत्तर प्रदेश के महोबा में इन किसानों से मिलने और उनके तालाब देखने का मौका मिला। जहां कजली मेला में किसानों के सम्मान का भव्य कार्यक्रम था। यहां 13 अगस्त को सैकड़ों की तादाद में किसान एकत्रित हुए। अपना तालाब अभियान किसान महोत्सव का आयोजन महोबा संरक्षण एवं विकास समिति, नगर पालिका परिषद और अपना तालाब अभियान ने किया था। यहां आए कई किसानों ने न केवल अपने खेतों में तालाब का निर्माण किया है बल्कि कई और किसानों को तालाब बनाने के लिए प्रोत्साहित किया है।कजली मेला में किसानों को जल प्रहरी सम्मान से नवाजा गया। दूसरे दिन हम बरबई, काकुन और चरखारी गांवों में तालाब देखने गए और किसानों से मिले।

जल से ही बचेगी जमीन

Submitted by Shivendra on Sun, 09/07/2014 - 12:30
Author
दिलीप कुमार यादव
Source
कल्पतरु एक्सप्रेस, जुलाई 2014
जल नहीं होगा तो कल नहीं होगा। यह स्लोगन संकेत देता है कि कृषि को बचाने के लिए भी जल को बचाना होगा। बरसात के जल का उपयोग खेती में किस तरह किया जा सकता है और मृदा को कैसे बचाया जा सकता है, अलनीनो जैसे संकटों से बचने के लिए भी यह जरूरी है। इन मुद्दों पर प्रकाश डाल रही है दिलीप कुमार यादव की रिपोर्ट।

.भूमि एवं जल प्रकृति द्वारा मनुष्य को दी गई दो अनमोल संपदा हैं, जिनका कृषि हेतु उपयोग मनुष्य प्राचीन काल से करता आया है। परंतु, वर्तमान में इनका उपयोग इतनी लापरवाही से हो रहा है कि इनका संतुलन बिगड़ गया है तथा भविष्य में इनके संरक्षण के बिना मनुष्य का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। मानसून की बेरुखी ने ऐसी संभावनाओं की प्रासंगिकता को और बढ़ाया है।

असल में हमारे देश की आर्थिक उन्नति में कृषि का बहुमूल्य योगदान है।

देश में लगभग 70 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि वर्षा पर निर्भर है। उत्तराखंड में तो लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर है तथा लगभग 90 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि वर्षा पर निर्भर है।

भूमिगत जल में रेडॉन का जहर

Submitted by Shivendra on Sun, 09/07/2014 - 10:20
Author
डॉ. नितीश प्रियदर्शी
Source
प्रजातंत्र लाइव, 07 सितंबर 2014
.भारत के बेंगलुरु, मध्य प्रदेश के किओलारी नैनपुर, पंजाब के भटिंडा एवं गुरदासपुर, उत्तराखंड का गढ़वाल, हिमाचल प्रदेश एवं दून घाटी के भूमिगत जल में रेडॉन-222 के मिलने की वैज्ञानिक पुष्टि हुई है।

बेंगलुरु शहर के भूमिगत जल में रेडॉन की मात्रा सहनशीलता की सीमा 11.83बीक्यू/लीटर से ऊपर है। कहीं-कहीं यह सौ गुना अधिक है। यहां पर रेडॉन की औसत मात्रा 55.96 बीक्यू/लीटर से 1189.30 बीक्यू/लीटर तक पाई गई है।

बेंगलुरु शहर में भूमिगत जल की तुलना में सतही जल में कम रेडॉन पाए गए क्योंकि वायुमंडल के संपर्क में रहने के कारण यह गैस जल से वायुमंडल में आसानी से घुल जाती है।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
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Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
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Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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