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कभी टेम्स नदी एक विशाल एवं प्रदूषित नाले में तब्दील हो चुकी थी। लेकिन जागरूकता और अनुशासन के जरिए आज यह सब नदियों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गई है। हमें भी यह सोचना होगा कि गोमती नदी आखिर कैसे अपना पुराना स्वरूप और प्रतिष्ठा वापस प्राप्त कर सकती है। इसके लिए निश्चय ही तात्कालिक उपाय पर्याप्त एवं प्रभावकारी नहीं हो सकते, क्योंकि रोग के निदान तथा उपचार से अधिक उससे बचाव की अधिक आवश्यकता है। जो संपूर्ण जीवन शैली द्वारा निर्धारित होता है।
गोमती अपने जल से भारत के सबसे बड़े एवं उपजाऊ समतल बेसिन में रहने वाले उ.प्र. के लाखों लोगों का प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूपों से पालन एवं भरण-पोषण हजारों सालों से करती आ रही है। इन भौतिक सम्पदाओं के अतिरिक्त गोमती वेद-पुराण, उपनिषद आदि ग्रन्थों द्वारा प्रतिष्ठित अनादि काल से मोक्षदायिनी उद्घोषित हो चुकी है।जिस देश में गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, सिन्धु तथा कावेरी के पवित्र जल के सन्निधान की प्रत्येक जल में कामना रहती है, उस देश में नदियां असहाय सी अपनी रक्षा के लिए देश की जनता का मुख देख रही हैं। दुर्भाग्यवश आज धरती पर जल की मात्रा का तो निरंतर ह्रास हो ही रहा है, साथ ही शुद्ध जल की मात्रा अत्यंत अपर्याप्त है।
जल के परंपरागत स्रोत विशेषतः मानवकृत धर्म के परिणामस्वरूप उत्खनित तालाब, कुएँ, बावली आदि नष्टप्राय हैं। पर्वतों से छेड़छाड़ के कारण निर्झर-स्रोतों में भी न्यूनता आई है।
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पार्टियां अनसुना न करें लोकादेश का जलादेश
विश्व जल दिवस : ऊर्जा से पानी और पानी से बचेगी ऊर्जा
अविरल-निर्मल एवं सजला गोमती की जरूरत क्यों
कभी टेम्स नदी एक विशाल एवं प्रदूषित नाले में तब्दील हो चुकी थी। लेकिन जागरूकता और अनुशासन के जरिए आज यह सब नदियों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गई है। हमें भी यह सोचना होगा कि गोमती नदी आखिर कैसे अपना पुराना स्वरूप और प्रतिष्ठा वापस प्राप्त कर सकती है। इसके लिए निश्चय ही तात्कालिक उपाय पर्याप्त एवं प्रभावकारी नहीं हो सकते, क्योंकि रोग के निदान तथा उपचार से अधिक उससे बचाव की अधिक आवश्यकता है। जो संपूर्ण जीवन शैली द्वारा निर्धारित होता है।
गोमती अपने जल से भारत के सबसे बड़े एवं उपजाऊ समतल बेसिन में रहने वाले उ.प्र. के लाखों लोगों का प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूपों से पालन एवं भरण-पोषण हजारों सालों से करती आ रही है। इन भौतिक सम्पदाओं के अतिरिक्त गोमती वेद-पुराण, उपनिषद आदि ग्रन्थों द्वारा प्रतिष्ठित अनादि काल से मोक्षदायिनी उद्घोषित हो चुकी है।जिस देश में गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, सिन्धु तथा कावेरी के पवित्र जल के सन्निधान की प्रत्येक जल में कामना रहती है, उस देश में नदियां असहाय सी अपनी रक्षा के लिए देश की जनता का मुख देख रही हैं। दुर्भाग्यवश आज धरती पर जल की मात्रा का तो निरंतर ह्रास हो ही रहा है, साथ ही शुद्ध जल की मात्रा अत्यंत अपर्याप्त है।
जल के परंपरागत स्रोत विशेषतः मानवकृत धर्म के परिणामस्वरूप उत्खनित तालाब, कुएँ, बावली आदि नष्टप्राय हैं। पर्वतों से छेड़छाड़ के कारण निर्झर-स्रोतों में भी न्यूनता आई है।
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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