तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

बढ़ते जल संकट और मानव समाज द्वारा उदासीन रवैये से परंपरागत जल स्रोतों पर संकट मंडरा रहा है इसी पर आधारित अनुपम मिश्र का यह वीडियो।
पर्यावरणविद और परियोजना विशेषज्ञों का मानना है कि सतलुज नदी पर बिजली परियोजनाओं के कारण गंभीर संकट पैदा हो गया है। सतलुज की तीन सौ बीस किलोमीटर की लंबाई में डेढ़ सौ किलोमीटर को बिजली परियोजनाओं की सुरंगे घेर लेंगी। ऐसे में इस बात की पूरी आशंका है कि कहीं केदारनाथ जैसी तबाही हिमाचल में भी न घटित हो जाए। किन्नौर जिले में यह आभास होने लगा है। किन्नौर को बचाने के लिए जरूरी है कि उत्तराखंड में उत्तरकाशी से गंगोत्री तक को जिस तरह पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया जा रहा है, वैसे इस क्षेत्र को भी किया जाए।
यों तो हिमाचल अपने ठंडे मौसम, ठंडे मिजाज, प्राकृतिक सुंदरता और संपदा के लिए जाना जाता है। लेकिन हाल के कुछ सालों से स्थितियाँ बदल रही हैं। इसका प्राकृतिक वैभव नष्ट हो रहा है, नदियों की लूट मची है। अपने भविष्य को लेकर आशंकित सीधे-सादे लोगों का मिजाज गरम हो रहा है। इस सबके पीछे अगर सबसे बड़ी कोई वजह है तो चारों तरफ फैल गई पनबिजली कंपनियां।पर्यावरणविद और परियोजना विशेषज्ञों का मानना है कि सतलुज नदी पर बिजली परियोजनाओं के कारण गंभीर संकट पैदा हो गया है। सतलुज की तीन सौ बीस किलोमीटर की लंबाई में डेढ़ सौ किलोमीटर को बिजली परियोजनाओं की सुरंगे घेर लेंगी। ऐसे में इस बात की पूरी आशंका है कि कहीं केदारनाथ जैसी तबाही हिमाचल में भी न घटित हो जाए। किन्नौर जिले में यह आभास होने लगा है। किन्नौर को बचाने के लिए जरूरी है कि उत्तराखंड में उत्तरकाशी से गंगोत्री तक को जिस तरह पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया जा रहा है, वैसे इस क्षेत्र को भी किया जाए।
यों तो हिमाचल अपने ठंडे मौसम, ठंडे मिजाज, प्राकृतिक सुंदरता और संपदा के लिए जाना जाता है। लेकिन हाल के कुछ सालों से स्थितियाँ बदल रही हैं। इसका प्राकृतिक वैभव नष्ट हो रहा है, नदियों की लूट मची है। अपने भविष्य को लेकर आशंकित सीधे-सादे लोगों का मिजाज गरम हो रहा है। इस सबके पीछे अगर सबसे बड़ी कोई वजह है तो चारों तरफ फैल गई पनबिजली कंपनियां।
पसंदीदा आलेख